विकिस्रोत:आज का पाठ/२५ दिसम्बर
खड़ी बोली पद्य की तीन धाराएँ रामचंद्र शुक्ल द्वारा रचित हिन्दी साहित्य का इतिहास का एक अंश है जिसके दूसरे संस्करण का प्रकाशन काशी के नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा १९४१ ई॰ में किया गया।
"निराला जी की रचना का क्षेत्र तो पहले से ही कुछ विस्तृत रहा। उन्होंने जिस प्रकार 'तुम' और 'मैं' में उस रहस्यमय 'नाद वेद आकार सार' का गान किया, 'जूही की कली' और 'शेफालिका' में उन्मद प्रणय-चेष्टाओं के पुष्प-चित्र खड़े किए उसी प्रकार 'जागरण वीणा' बजाई, इस जगत् के बीच विधवा की विधुर और करुण मूर्ति खड़ी की और इधर आकर इलाहाबाद के पथ पर एक पत्थर तोड़ती दीन स्त्री के माथे पर श्रम-सीकर दिखाए। सारांश यह कि अब शैली के वैलक्षण्य द्वारा प्रतिक्रिया-प्रदर्शन का वेग कम हो जाने से अर्थभूमि के रमणीय प्रसार के चिह्न भी छायावादी कहे जाने वाले कवियों की रचनाओं में दिखाई पड़ रहे हैं।..."(पूरा पढ़ें)