विकिस्रोत:आज का पाठ/२६ अक्टूबर
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कुमारमणिभट्ट रामचंद्र शुक्ल द्वारा रचित हिन्दी साहित्य का इतिहास का एक अंश है जिसके दूसरे संस्करण का प्रकाशन काशी के नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा १९४१ ई॰ में किया गया था।
"इनका कुछ वृत्त ज्ञात नहीं। इन्होंने संवत् १८०३ के लगभग "रसिक रसाल" नामक एक बहुत अच्छा रीतिग्रंथ बनाया। ग्रंथ में इन्होंने अपने को हरिवल्लभ का पुत्र कहा है। शिवसिंह ने इन्हें गोकुलवासी कहा है। इनका एक सवैया देखिए-
गावैं वधू मधुरै सुर गीतन, प्रीतम सँग न बाहिर आई।
छाई कुमार नई छिति में छवि, मानो बिछाई नई दरियाई॥
ऊँचे अटा चढ़ि देखि चहूँ दिलि बोली यों बाल गरो भरि आई।
कैसी करौं हहरैं हियरा, हरि आए नहीं उलहीं हरियाई॥..."(पूरा पढ़ें)