विकिस्रोत:आज का पाठ/२९ अक्टूबर
प्रतापसाहि रामचंद्र शुक्ल द्वारा रचित हिन्दी साहित्य का इतिहास का एक अंश है जिसके दूसरे संस्करण का प्रकाशन काशी के नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा १९४१ ई॰ में किया गया था।
"ये रतनसेन बंदीजन के पुत्र थे और चरखारी ( बुंदेलखंड) के महाराज विक्रमसाहि के यहाँ रहते थे। इन्होंने संवत् १८८२ में 'व्यंग्वार्थ-कौमुदी' और संवत् १८८६ में 'काव्य-विलास' की रचना की । इन दोनों परम प्रसिद्ध ग्रंथों के अतिरिक्त निम्नलिखित पुस्तकें इनकी बनाई हुई और हैं-
जयसिंह प्रकाश ( सृ० १८५२), श्रृंगार-मंजरी ( स० १८८६), श्रृंगार शिरोमणि (सं० १८६४), अलंकार-चिंतामणि ( सं० १८९४), काव्य-विनोद ( १८६६), रसराज की टीका ( स० १८९६), रत्नचंद्रिका ( सतसई की टीका स० १८६६), जुगल नखशिख ( सीताराम को नखशिख वर्णन ), बलभद्र नखशिख की टीका ।
इस सूची के अनुसार इनका कविता-काल सं० १८८० से १९०० तक ठहरता है ।..."(पूरा पढ़ें)