विकिस्रोत:आज का पाठ/३१ दिसम्बर
आधुनिक काल (प्रकरण २) महादेवी वर्मा रामचंद्र शुक्ल द्वारा रचित हिन्दी साहित्य का इतिहास का एक अंश है जिसके दूसरे संस्करण का प्रकाशन काशी के नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा १९४१ ई॰ में किया गया।
"छायावादी कहे जाने वाले कवियों में महादेवीजी ही रहस्यावाद के भीतर रही हैं। उस अज्ञात प्रियतम के लिये वेदना ही इनके हृदय का भाव-केंद्र है जिससे अनेक प्रकार की भावनाएँ छूट छूटकर झलक मारती रहती हैं। वेदना से इन्होंने अपना स्वाभाविक प्रेम व्यक्त किया है, उसी के साथ वे रहना चाहती हैं। उसके आगे मिलन-सुख को भी वे कुछ नहीं गिनतीं। वे कहती हैं कि "मिलन का मत नाम ले मैं विहर में चिर हूँ।"..."(पूरा पढ़ें)