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विकिस्रोत:आज का पाठ/५ अक्टूबर

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सगुण धारा रामभक्ति-शाखा रामचंद्र शुक्ल द्वारा रचित हिन्दी साहित्य का इतिहास का एक अंश है जिसके दूसरे संस्करण का प्रकाशन काशी के नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा १९४१ ई॰ में किया गया था।


"जगत प्रसिद्ध स्वामी शंकराचार्य जी ने जिस अद्वैतवाद का निरूपण किया था वह भक्ति के सन्निवेश के उपयुक्त न था । यद्यपि उसमें ब्रह्म की व्यावहारिक सगुण सत्ता का भी स्वीकार था, पर भक्ति के सम्यक प्रसार के लिये जैसे दृढ़ आधार की आवश्यकता थी वैसा दृढ आधार स्वामी रामानुजाचार्य जी ( सं० १०७३ ) ने खड़ा किया ! उनके विशिष्टाद्वैतवाद के अनुसार चिदचिद्विशिष्ट ब्रह्म के ही अंश जगत् के सारे प्राणी हैं जो उसी से उत्पन्न होते हैं और उसी में लीन होते हैं अतः इन जीवो के लिये उद्धार का मार्ग यही है कि वे भक्ति द्वारा उस अंशी का सामीप्यलाभ करने का यत्न करें। रामानुजजी की शिष्य-परंपरा देश में बराबर फैलती गई और जनता भक्तिमार्ग की ओर अधिक आकर्षित होती रही । रामानुज जी के श्री संप्रदाय मे विष्णु या नारायण की उपासना है। इस संप्रदाय मे अनेक अच्छे साधु महात्मा बराबर होते गए।..."(पूरा पढ़ें)