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वेनिस का बाँका/पञ्चदश परिच्छेद

विकिस्रोत से
वेनिस का बाँका
अनुवादक
अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध'

बनारस सिटी: पाठक एंड सन भाषा भंडार पुस्तकालय, पृष्ठ ९४ से – १०० तक

 

पञ्चदश परिच्छेद।

अबिलाइनो की इस नवीन धृष्टता पर जिसका वर्णन परिच्छेद के अन्त में हो चुका है वेनिस के सब लोग अत्यन्त क्रुद्ध हुए और उसके पकड़ने का प्रयत्न तन मन से करने लगे। इसका कारण यह था कि वेनिस राज्य के स्थापित होने के समय से लेकर उस समय पर्यन्त किसी चोर अथवा डाकू को इतना साहस न हुआ था कि वहाँ की प्रख्यात पुलिस के साथ ऐसी तुच्छता से व्यवहार करे जैसी कि अवि- लाइनो के विज्ञापन से प्रगट थी और न तब तक नृपति महा- शय का सामना किसी ने इस धृष्टता के साथ किया था। इस दुर्घटना के कारण सम्पूर्ण नगर में हलचल मच गई थी। जिसको देखिये वह अविलाइनो के अनुसन्धान में था, प्रहरी अधिक कर दिये गये थे, पुलीस प्रत्येक ओर पता लगाती फिरती थी परन्तु किसी को अबिलाइनो का तनिक भी सुन- गुन हस्तगत न होता था।

इसके अतिरिक्त पादरी इत्यादि ईश्वराराधन के समय वर याचना करते और मनौती मानते थे कि ऐ परमेश्वर इस दुष्टा- त्मा को अपने कोपानल में भस्म कर। युवती स्त्रियाँ अपिलाइनो के नाम से अचेत हो जाती थीं क्योंकि उनको सदा खटका रहता था कि ऐसा न हो कहीं अविलाइनो मेरे समीप भी वैसे ही आकर उपस्थित हो जैसे कि रोजाबिला के समीप आया था। अब रहीं बृद्ध स्त्रियाँ वे इन बातों पर सहमत थीं कि अबिलाइनोंने अपने को दुर्दैवके हाथ बेंच डाला है और उसकी सहायता से वेनिस निवासियों के साथ ऐसी दुष्टता करता है। पादरी गान्जेगा और उनके सहबासियों को अपने नूतन सहकारी पर अभिमान (फख़र) था। और उनको पूर्ण आशा हो गई थी कि अब हमारे सम्पूर्ण कार्य्य सिद्ध हो जायँगे। बेचारे कुनारी के स्त्री-पुत्रादि अबिलाइनो के लिये परमेश्वर से उसकी अनिष्ट के प्रार्थी थे और यह चाहते थे कि उनकी अश्रु प्रवाहजनित सरिता उस दुष्टात्मा को बहाले जाय जो उनके बंशकी अवनति का कारण हुआ। परन्तु कुनारी की मृत्यु का शोक जितना नृपति महाशय और उनके दोनों मन्त्रदाताओं को था, अन्य को न था, उन लोगों ने निश्चय कर लिया था कि जब तक हम लोग उस दुष्ट के रहने का स्थान न खोज लेंगे, और उसको दण्ड न दे लेंगे उस समय तक हमारे लिये सुख और आराम अबिहित होगा।

एक दिन नृपति अंड्रियास अपने मुख्य आयतन में अकले बैठे हुए थे कि अकस्मात् उनको अबिलाइनो का कुछ स्मरण हो आया और वह स्वगत कहने लगे "अच्छा जो कुछ हुआ सो हुआ पर इसमें संदेह नहीं है कि यह अविलाइनो अद्भुत व्यक्ति है क्योंकि जो पुरुष ऐसे कार्य कर सकता है जैसे इस समय पर्य्यन्त अबिलाइनो ने किये हैं उसमें (पूर्ण विश्वास है कि) योग्यता और पराक्रम इतना होगा कि यदि उसके अधिकार में कुछ सेना हो तो वह आधे संसार को बिजय करले। परमेश्वर करता कि मैं भी उसको एक बार अवलोकन कर लेता"। "अच्छा ऊपर देखिये" यह वाक्य अविलाहनो ने लल- कार कर कहा और उसी के साथ महाराज के कन्धे पर धीरे से ठोंक दिया। अंड्रियास चौंक उठा। क्या देखता है कि उसके सम्मुख एक पर्वत से डील डोल का मनुष्य असित परिच्छद धारण किये खड़ा है और उसका ऐसा भयानक स्व- रूप है कि विश्वमें वसा किसीका न होगा। नृपति महाशयने घबरा कर पूछा "तू कौन है"।

अबिलाइनों―"तू मुझे देखता है और फिर भी पहचान नहीं सकता? मैं अविलाइनो तुम्हारे स्वर्गीय कुनारी का मित्र और इस राज्य का आश्रित सेवक हूँ"।

अबिलाइनो की इस धृष्टता से उस समय बोर अंड्रियास का धैर्य्य कतिपय क्षणके लिये हाथ से जाता रहा। जिसे कभी स्थल अथवा जल संग्राम से भय उत्पन्न नहीं हुआ था और जिसका साहस किसी भयोत्पादक घटना के कारण से न छूटा था उस पर अचाञ्चक ऐसा आतंक छा गया कि वह कुछ काल पर्यन्त अबिलाइनो को जो अत्यंत निर्भयता और निश्शं- कता के साथ अंड्रियास के सामने खड़ा था चित्रसदृश परि- चालना हीन होकर देखता रहा। यह दशा देखकर अबिलाइनो ने अंड्रियास से निर्भयों की भाँति संकेत किया और अत्यन्त विलक्षणता से कीशों के समान दन्तदर्शन पूर्वक हास्य किया। जब नृपति महाशय को चैतन्य प्राप्त हुआ तो उनकी जिह्वा से यही निकला कि "अबिलाइनो तू इस योग्य है कि मनुष्य तुझ से त्रस्त हो और घृणा करे"।

अबिलाइनो―"मैं इस योग्य हूँ कि मनुष्य मुझसे भयभीत हो! तूभी ऐसा विचार करता है? अच्छा, मैं इसको श्रवण कर अत्यन्त प्रफुल्लित हुआ। मैं इस योग्य हूँ कि मुझसे मनुष्य घृणा करे, कदाचित मैं ऐसा हूँ अथवा नहीं हूँ। मैं स्वीकार करता हूँ कि प्रगट में मेरे जैसे कर्म हैं उनसे निस्सन्देह यही आशा हो सकती है कि कोई मुझे हृदय में अच्छा न समझता होगा पर यह बात पक्की है कि हम और तुम दोनों एक ही मार्ग पर गमन कर रहे हैं, क्योंकि वेनिस में इस समय हमीं दो बड़े व्यक्ति हैं, तुम अपने ढङ्ग पर और मैं अपने ढङ्ग पर"॥

उसके इस निश्शंक संभाषण पर नृपति महाशय को बड़ी हँसी आई॥

अबिलाइनो―"न न न महोदय मेरे कथन को असत्य समझ कर न हँसिये, मान लिया कि मैं डाकू हूँ, पर मैं महाराज की समानता निस्सन्देह कर सकता हूँ, मेरे निकट यह कोई महत्व की बात नहीं है कि मैं अपने को ऐसे व्यक्ति के तुल्य कहता हूँ जो मेरे अधिकार में है और इस लिये मेरे अधोभाग में उसका संस्थान है"॥

अब नृपति महाशय इस रीति से उठकर खड़े हुये जैसे उनकी इच्छा निकल भागने की हो। इस पर अबिलाइनों ने असभ्य रीति से अट्टहास किया और उनका पथावरोध कर कहा "ऐसी शीघ्रता नहीं, क्योंकि संयोग से कभी दो ऐसे बड़े लोग ऐसे संकीर्ण और संकुचित स्थान में जैसी यह कोठरी है एकत्र होते हैं। तुम जहाँ हो वहीं ठहरे रहो, अभी तुमसे कुछ और बातें करनी हैं"॥

अंड्रियास―(अत्यन्त गंभीरता से) "सुन ऐ अबिलाइनो परमेश्वर ने तुझमें योग्यता कूट कूट कर भरी है फिर तू उन्हें इस प्रकार क्यों व्यर्थ व्यय करता है। मैं तुझसे सत्यता पूर्वक बचन बद्ध होता हूँ, कि यदि तू उस पुरुष का नाम बतला दे जिसने कुनारी का बध कराया, अपनी जीवनवृत्ति से घृणा करे और इस राज्य की सेवा स्वीकार करे, तो मैं तेरे अपराधों को क्षमा कर दूँ और अगत्या तेरा सहायक रहूँ यदि यह भी तुझे स्वीकार न हो तो तत्काल बेनिस के राज्य से निकल जा नहीं तो मैं शपथ करता हूँ कि"॥

"अहा! आप क्षमा और सहायता की चर्चा करते हैं, बहुत काल हुआ कि मैंने ऐसी व्यर्थ बातों का ध्यान छोड़ दिया। अबिलाइनो आप अपनी रक्षा बिना दूसरे व्यक्ति की सहायता के कर सकता है। रही क्षमा सो कोई मनुष्य मुझे ऐसे अपराधों से जो मैंने किये हैं मुक्त नहीं कर सकता। उस दिन जब कि सब लोग निजकृत अपराधों की तालिका अर्पण करेंगे मैं भी अपनी उपस्थित करूँगा परन्तु अभी कदापि नहीं। आप उस पुरुष का नाम जानना चाहते हैं। जिसने कुनारी को मेरे पुष्टकरों से वध कराया? अच्छा आपको ज्ञात हो जायगा परन्तु आज नहीं। आप कहते हैं कि मैं वेनिस से निकल जाऊँ? क्यों? मैं वेनिस से नहीं डरता, बरन वेनिस मुझसे स्वयं भय करता है। आपकी इच्छा है कि मैं अपने काम को छोड़ दूँ बहुत उत्तम परन्तु एक नियम के साथ-"॥

अंड्रियास―(परमानु राग से) "कहो! यदि तुमको दश सहस्र स्वर्ण मुद्रायें मिलें तब तो यहाँ से चले जावोगे?"॥

अबिलाइनो―"मैं आप तुमको अत्यन्त प्रसन्नता से द्विगुण दूँगा यदि तुम अपने इस अयोग्य विवार को छोड़ दो कि अबिलाइनो ऐसे तुच्छ द्रव्य को अंगीकार करेगा। नहीं अंड्रियास केवल एक ही रीति मुझे प्रसन्न करने की है! तुम अपनी भ्रातृजा का विवाह मेरे साथ कर दो क्योंकि मैं रोज़ा- बिला पर मोहित हूँ"॥

अंड्रियास―"ऐ दुष्टात्मा यह कैसा अपमान है"॥

अबिलाइनो―(अट्टहास करके) "सुनो चचा क्या तुम मेरे कथन को न स्वीकार करोगे?"॥

अंड्रियास―"तुम जितनी मुद्रायें चाहो मैं अभी उपस्थित करूँगा परन्तु इस नियम के साथ कि तुम अभी वेनिस से निकल जावो। यदि वेनिस को दश लक्ष स्वर्ण मुद्रायें भी देनी पड़ेंगी, तो वह अपना लाभ समझेगा क्योंकि उसकी वायु तुम्हारे विषमय श्वास से परिष्कृत हो जायगी।

अविलाइनो―"सच कहो! तुम्हारे निकट मानो दश लक्ष मुद्रा बहुत है, अभी मैंने पँच लक्ष स्वर्ण मुद्रा पर तुम्हारे दोनों मित्र लोमेलाइनो और मानफ्रोनके बध करने का बीड़ा लिया है! यदि रोजाविला को मुझे अर्पण करो तो मैं अभी इस कर्म से हाथ उठाता हूँ"॥

अंड्रियास―"हा! दुष्टात्मा अभागे! तेरे ऊपर परमेश्वर का कोप भी नहीं होता"॥

अबिलाइनो―"अच्छा तो ज्ञात हुआ कि आप मेरे कथन को न स्वीकार कीजियेगा, स्मरण रखिये कि साठ दण्ड के बाद मानफ़रोन और लोमेलाइनो जलचरों के भक्ष्य होंगे। बस अबि- लाइनो ने कह दिया"॥

यह कहकर अबिलाइनो ने अपनी बगल से एक पिस्तौल निकाली और उसे अंड्रियाल के मुख पर छोड़ दीं। अंड्रियास बारूद के धूम्र और पिस्तौल के अचाञ्चक छूटने से व्यस्त होकर हटगये और एक सज्या पर गिर पड़े। परन्तु कुछ काल के बाद जब उनको चेतना हुई तो वह अपने स्थान से बेग से उठे, इसलिये कि सिपाहियों को पुकारें और अविलाइनो को पकड़वायें परन्तु अविलाइनो इतने समय में अन्तर्हित हो गया था॥

उसी दिन सन्ध्या-समय परोज़ी, और उसके मित्र, पादरी गान्जे़नाके प्रशस्त प्रासाद में एकत्र थे, पात्रों में भाँति भाँति के व्यञ्जन और पदार्थ भरे हुए थे और मदपान उमंग से हो रहा था। प्रत्येक व्यक्ति प्रलाप में उन्मत्त था। पादरी गान्जे़गा कह रहे थे कि मैंने इन दिनों महाराज के स्वभाव में अधिकार लाभ किया है और उनके हृदय में यह बात बैठाल दी है कि तुम लोग मान्य पदों पर नियुक्त किये जाने के योग्य हो। काण्टेराइनो का अनुमान था कि कुनारी के पद पर मैं नियुक्त किया जाऊँगा, परोजी समझता था कि रोजाबिला मेरे हस्तगत होगी और जब वह दोनों कंटक लोमेलाइनो और मानफ़रोन निकल जायँगे तो उनमें से किसीका पद प्राप्त हो जायगा। अभिप्राय यह कि इसी प्रकार की बात चीत परस्पर हो रही थी कि घड़ियालीने बारह का गजर बजाया, द्वारका कपाट अकस्मात् खुल गया और अबिलाइनो उन लोगों के सामने आ कर विद्यमान हुआ॥

अविलाइनो―"सुरा दो! सुरा! मैं उनका नाश कर चुका लोमेलाइनो और मानफरोन जलचरों का न्योता करने गये।" इस शुभ समाचार को श्रवण कर सब उछल पड़े, और अबिलाइनो को आश्चर्य्य की दृष्टि से अवलोकन करने लगे॥

अबिलाइनो―"और मैंने महाराज को भी ऐसा डरा दिया है कि कदाचित् कठिनता से उनकी सुधि ठिकाने होगी। अब कहो तुम लोग मुझसे प्रसन्न हुए?"॥

परोजी―अब फ्लोडोआर्डो का वध करना चाहिये"॥

अबिलाइनो―(दांत पीसकर) "फ्लोडोआर्डो का, यह कोई साधारण बात नहीं है॥