वेनिस का बाँका/पाँचवाँ परिच्छेद

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पाँचवाँ परिच्छेद।

बिलाइनो को वेनिस में रहते एकमास से अधिक हो चुके थे परन्तु अब तक उसके कटार को कोश से निकलना नहीं पड़ा था। इसका कारण कुछ तो यह था कि उस समय तक उसको नगर की गली और रास्तों से अभिज्ञता नहीं हुई थी और कुछ यह कि कोई दुष्टात्मा वधिक ऐसा नहीं दृष्टिगोचर हुआ, जिसको यमलोक की यात्रा कराने की आवश्यकता हो। इस रीतिसे अकर्म्मा बनकर बैठे रहना उसको अत्यन्त अनुचित ज्ञात होता था और उसका हृदय यही चाहता था कि किस दिन कोई कार्य प्रान पड़े और मैं अपना गुण दिखाऊँ। प्रतिदिन वह वेनिस के राजमार्गों पर उद्विग्न और ब्यग्रभमण किया करता था और प्रत्येक परग पर शीतल-उच्छवास मुखसे बाहर निकालता था। उसने नगरके सम्पूर्ण मुख्य मुख्य प्रासादों, उपवनों, मदिरालयों और क्रीड़ा कौतुकादि के प्रत्येक स्थानों को छान मारा परन्तु हर्ष और उत्कर्ष का स्वरूप उसे कहीं दृष्टिगोचर न हुआ।

एक दिन का यह समाचार है कि वह एक उपवन में जो एक अति सुन्दर द्वीप में लगा हुआ था, लोगों के जमघटे से छुटकर आगे निकल गया और प्रत्येक कुञ्ज में होता हुआ जलराशि के कूल पर जा पहुँचा। यहाँ वह बैठकर निखरी हुई चाँदनी में उसकी तरंगों का कौतुक अव-लो कन करने लगा। अकस्मात् कुछ शोकपूरित और पश्चातापमय बिचारों ने उसके अन्तःकरण में प्रवेश किया और वह एक तप्त उच्छ्वास से दग्ध होकर बोला "चार वर्षका समय व्यतीत हुआ कि
[ २३ ]ऐसी ही धवल-निशा में मैंने पहले पहल वलीरिया के शोणाधर का चुम्बन किया था और उसी शुभ दिवस को उसने कोकिलालाप से कथन किया कि मैं तुमको चाहती हूँ"। इतना कथन कर वह चुप हो रहा और उन्हीं शोकमय विचारों पर जो उसके मस्तिष्क में समाये हुए थे तर्क वितर्क करने लगा। उस समय सन्नाटे की यह अवस्था थी कि बायु की सनसनाहट तक का परिज्ञान न होता था परन्तु अबिलाइनों के अन्तःकरण में एक शोकका प्रचंड-प्रभंजन उठ रहा था।" चार वर्ष का समय हुआ कि मुझको इस बात का अणुमात्र भी ज्ञान न था कि एक दिन मैं वेनिस में डाकुओं का काम करूंगा? न जाने वह दिन क्या हुए जब कि बड़ी बड़ी आशायें और भारी भारी कामनायें मेरे हृदय में उमड़ती थीं। इस समय मैं एक डाकू हूँ जिससे भिक्षा मांगना कहीं उत्तम है। नारायण! नारायण!! वह भी एक समय था जब कि मेरे पितृ चरण स्नेह की उमंग में मेरी ग्रीवा में हाथ डाल कर कहा करते थे 'बेटा तू रुसाल्वो का नाम संसार में प्रख्यात करेगा, और मैं वस्त्रों में फूला नहीं समाता था, कैसे कैसे विचार उस समय अन्तःकरण में उप्तन्न होते थे, क्या क्या न मैं सोचता था! और कौन ऐसा महत् कर्म और उत्कृष्ट कार्य था जिसके करने की अपने मन में कामना न करता था! हा हन्त! पिता तो स्वर्गवासी हुआ और पुत्र वेनिस में डाकू का काम करता है। जब मेरे शिक्षक मेरी प्रशंसा करते और उमंग में आकर मेरी पीठ ठोकते और कहते थे युवराज! तेरे कारण रुसाल्वो के प्राचीन-वंश का नाम सदैव स्मरण रहेगा, तो मुझे एक स्वप्न सदृश वह अवस्था ज्ञात होती और उस की तरंग में आगामी समय उत्तमोत्तम दृष्टि गोचर होता। जिस समय कोई बड़ा कार्य करके मैं गृह को पलट आता।
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और वलीरिया प्रोत्साहित हो मेरे मिलने के लिये दौड़ती और परिरम्भन कर हृदय से लगा मधुर बाणी से कहती कि रुसाल्वोसे व्यक्तिको कौन प्यार न करेगा, तो परमेश्वर ही जानता है कि क्या आनन्द चित्त को प्राप्त होता। परन्तु अब मैं इन गत आनन्दों का स्मरण न करूंगा, नहीं तो निस्सन्देह मुझको उन्माद हो जायगा।

अबिलाइनो कुछ देर तक चुप रहा और अपना ओष्ठक्रोध से दंशन करता रहा, फिर एक हाथ आकाश की ओर उठा और दूसरे से शिर ठोंक कर बोला "डाकू, कायर-शिरोमणि दुष्टात्माओं का दास और वेनिस के छटे हुए डाकुओं का सहकारी, बस अब रूसाल्वो की यही पदवी है। धिक है ऐसे जीवन पर! फिटकार है ऐसी वृत्ति पर! पर क्या करू भाग्य जो चाहे कराये असमर्थ हूँ।"

इतना कह कर वह फिर प्रतिमा समान हस्त पद परिचालना हीन होगया और देर तक इस दशा में रहा। पुनः अकस्मात् वह उछल पड़ा, आंखें चमकने लगा और मुख का वर्ण अरुण हो गया ।" निस्सन्देह युवराज रूसाल्वो की सी बड़ाई तो मुझे प्राप्त नहीं हो सकती परन्तु यदि वेनिस का छटा अथवा बांका बनकर मुख्याति लाभ करूं तो कौन रोक सकता है, ऐ स्वर्गीय लोगो!(यह कह कर उसने अपने दोनों हाथोंको बांध कर श्राकाश की ओर उठाया, मानो अत्यन्त कठिन शपथ करना चाहता था) ऐ मेरे पूज्यपाद पिता की आत्मा! ऐ प्राणाधिका वलीरिया की आत्मा! मैं तुम लोगों का नाम न हँसाऊँगा। यदि तुम्हारी आत्मायें कहीं मेरे पास पास हों तो मेरे शपथ और प्रतिक्षाको सुन रक्खें कि अविलाइनो अपने पूर्व पुरुषों के चिरस्मरणीय नामको लांछित न करेगा और न उन आशाओं को व्यर्थ होने देगा जो तुम लोगों के
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प्राण प्रयाण के समय तुम लोगों की शान्ति और समाधान का कारण थीं। यदि मेरा जीवन है तो मैं एकाकी ऐसे कार्य करूंगा जिससे भविष्यत् में लोग उस नामका सम्मान करेंगे जो मेरे सत्कर्मों के कारण विख्यात होगा "अब उस ने अपना मस्तक इतना नीचे झुकाया कि कपाल देश पृथ्वी से लग गया और नेत्रोंसे अशु प्रवाह होने लगा। बड़े बड़े बिचारों ने उसके हृदय में स्थान ग्रहण किया था, विविध प्रकार के भाव उसके चित्त में समाये हुये थे और वह बड़ी बड़ी बातें सोच रहा था यहां तक कि उसका शिर चक्कर में आ गया। दो घंटे तक वह इसी हेर फेर में रहा, इसके उपरांत अचाञ्चक उठ कर उनके पूर्ण करने के लिये चल निकला, और यह प्रण ठाना, “मैं पांच निकृष्ट और नीच प्रतारकों का सहकारी होकर मनुष्य को दुख देने में कदापि प्रयत्न न करूँगा वरन एकाकी सम्पूर्ण वेनिस को भयग्रस्त और त्रस्त रक्खूँगा और एकही सप्ताह के भीतर वह युक्ति करूँगा जिससे ए दुष्टात्माशूली पर लटकते दृष्टिगोचर हों। वेनिस में पांच प्रतारकों के रहने को कुछ आवश्यकता नहीं केवल एक ही पुरुष ऐसा रहेगा जो स्वयं महाराज का सामना करेगा और भलाई बुराई को देखता रहेगा और अपने परामर्श के अनुसार लोगों को पुरस्कार और दण्ड देगा। एक सप्ताह के भीतर यह देश इनपाँचों दुष्टाग्रगण्यों से रहित हो जायगा और तब मैं अकेला कार्यक्षेत्र का स्वामी हूँगा। उस समय बेनिस के सम्पूर्ण उत्पातप्रिय लोग जिन्होंने आज तक मेरे साथियों के कटार से काम लिया है मेरे पास अपनी कामना लावेंगे और मुझे उन कायरों वधिकों और उन माननीय विषयियों के नाम ज्ञात होंगे जिन्होंने अब तक भाटियो और उसके साथियों के द्वारा निरपराधियों की ग्रीवा पर
[ २६ ]छूरिका फिरवाई है और प्रत्येक ओर अबिलाइनो अबिलाइनो की पुकार मचेगी। सुन रख ऐ वेनिस इस नाम को और डर!"॥

इन आशाओं ने उसको इतना उन्मत्त कर दिया कि वह उस बाटिका से अकुलाकर निकला और एक लघुनौका पर सवार होकर झटपट सिन्थिया के गृह में प्रविष्ट हुआ जहाँ उसके साथी पहले ही से पड़े सो रहे थे॥