वेनिस का बाँका/षष्ठ परिच्छेद

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षष्ठ परिच्छेद।

दूसरे दिन अरुणोदय के समय माटियोने अबिलाइनो को बुलाकर कहा 'सुनो मित्र आज पहले पहल तुमारी परीक्षा की जायगी॥

अबिलाइनो—(गंभीर स्वर से) "आज? भला वह कौन पुरुष है जिसपर मैं अपने ओजस्वी कर का प्रहार करूंगा और अपना जौहर दिखलाऊंगा।"

माटियो—यदि सच पूछो तो वह एक नवयौवना युवती है, परन्तु नवशिक्षित मनुष्यको आदि में कठिन कार्य न देना चाहिये। मैं स्वयं तुमारे साथ चलकर देखूँगा, कि तुम इस पहली परीक्षा में कैसा उतरते हो।

इस पर अबिलाइनो ने हूँ हूँ कह कर माटियो को एकदृष्टि से नख शिख तक तोला।

माटियो—आज चारबजे तुम डालाविलाके रम्योपवन में जो वेनिस की दक्षिण दिशा में है मेरे साथ चलो। हम तुम दोनों स्वरूप बदल लेंगे। उस उपवन में उत्तमोत्तम तड़ाग [ २७ ]निर्मित हैं जहाँ महाराज की भ्रातृजा कोमलाङ्गी किशोरवयस्का रोज़ाविला मज्जन कर प्रायः एकाकी बिहरती फिरती है। बस अब शेष विषय समझ जाओ,,॥

अविलाइनो―और तुम भी मेरे साथ चलोगे?

माटियो―मैं तुम्हारी प्राथमिक क्रिया का कौतुक अव- लोकन करने चलूँगा, इसी प्रकार में प्रत्येक व्यक्ति के साथ करता हूँ।

अबिलाइनो―आज कै इंच गहराब्रण मुझे लगाना होगा?

माटियो―अजी पूरा कटार तैरा देना चाहिये, पूरा कटार, उसकी मृत्यु होनी चाहिये पुरस्कार तो मनोभिलषित प्राप्त होगा। रोजाविला मरी और हम लोग आयुभर के लिये धनाढ्य और वैभववान हुये।

इसके उपरान्त और सब बातों की तत्काल मीमांसा हो गई और ज्यों ही घड़ियाली ने चार बजाया माटियो और अवि- लाइनो चल खड़े हुये। कियत काल में दोनों डोलाविला के उपवन में जा पहुँचे तो क्या देखते हैं कि उस दिन नियम के विरुद्ध बहुत से लोग परिभ्रमण के लिये आये हैं। प्रत्येक छाया वान कुञ्जों में स्त्री पुरुष बेढंग भरे हैं। रविशों पर वेनिस के प्रख्यात लोग टहल रहे हैं। प्रत्येक कोनों में प्रियतम और प्रेयसी निशागमन की प्रतीक्षा में उसासें भर रही हैं। और प्रत्येक दिशा से गाने और वाद्ययन्त्रों की मीठी मीठी सुरीली ध्वनि चली आती है। अबिलाइनां भी उस भीड़ में जा मिला। उसके शिर पर कृत्रिम आकुञ्वित केशों की एक बड़ी चमत्कार सम्पन्न टोपी रक्खी हुई थी जिसने उसकी आननाकृति के अवगुणों को छिपा लिया था वह उन बृद्ध मनुष्यों के समान जिन्हें गठिये का रोग होता है छड़ी टेकता शनैः शनैः सबों से मिलता जुलता चला जाता था। उसके [ २८ ]बहुमूल्य परिच्छद के कारण प्रत्येक मनुष्य उसकी अभ्यर्थना करता था और कोई ऐसा वहाँ न था जो अबिलाइनो से ऋतुपरिवर्तन, वेनिस के व्यापार और उस के शत्रुओं के विचारों के विषय में कथनोपकथन न करता हो। ए महात्मा तो सर्वगुणसम्पन्न थे ही इन बातों से कब घबराते थे, प्रत्येक पुरुष का उत्तर यथोचित देते थे। इस सूत्र से अबिलाइनो का काम निकल आया और उसने अपना पूरा इतमीनान कर लिया कि रोजाबिला अब तक उप- बनही में है और अमुक प्रणाली का परिच्छद धारण किये अमुक स्थान पर सुशोभित है।

निदान वह उसी पते पर चल निकला और माटियो भी उसके पीछे हो लिया। जाते जाते वह एक वृक्षाच्छादित सघन कुञ्ज के समीप पहुँचा जो वाटिका भर में सबसे निराले में थी। इसमें रोजाविला जिसके समान वेनिस में अपर स्त्री स्वरूपवती और सुन्दरी न थी बैठी हुई दृष्टिगोचर हुई। अबिलाइनो ज्यों ही उसके भीतर प्रविष्ट हुआ उसके दोनों पाँव इस प्रकार लरखराये जैसे निर्बलता के कारण गिराही चाहता हो, उसने पुकार कर टूटती हुई वाणी से कहा कष्ट का विषय है, ऐसा कोई नहीं जो मुझ वृद्धतर को थोड़ी सी आश्रय दे। रोजाविला यह सुनते ही झपट कर तत्काल अविलाइनो के टेकाने के लिये आई एवम् मीठी मीठी बातें कह स्नेह के साथ पूछने लगी, बूढ़े बाबा तुम्हारा चित्त कैसा है? अबिलाइनो ने कुञ्ज की ओर संकेत किया रोजाविला उसे सहारा देकर वहाँ लेगई और एक स्थान पर बैठा दिया। अबिलाइनो ने क्षीणवाणी से कहा "राजतनये! परमेश्वर तुमको इस उदारता का प्रतिफल दे" और शिर उठा कर रोजाबिला की ओर देखा। ज्यों ही उसकी आँख उस [ २९ ]कोमलाङ्गी, क्षामोदरी, की आँखों से लड़ी अबिलाइनो लज्जा से पानी पानी हो गया। रोजाबिला अपने घातक की साम- यिक अवस्था देख अश्रु पूरित नेत्र से उसके सामने खड़ी थी जिससे वह अविलाइनो को और भी प्रिय ज्ञात होने लगी। कियत कालोपरान्त वह अत्यन्त कोमल स्वर से पूछने लगी 'क्यों अब तुमको कुछ सुख जान पड़ता है, उस कपटी ने धीमी वाणी से कहा' हाँ सुख है, सुख है, तुम्ही वर्त्तमान महाराज की भ्रातृजा रोजाविला हो,।

"जी हाँ मैं ही हूँ,,

अबिलाइनो―सुनो राजकुमारी मुझे तुम से कुछ कहना है देखो सावधान और सजग रहो, घबराओ नहीं, जो कुछ मैं कहने वाला हूँ वह तुम्हारे बड़े लाभ की बात है और उसके लिये बड़ी बुद्धिमत्ता आवश्यक है, हे नारायण! संसार में ऐसे कठोरचेता लोग भी हैं, राजनन्दिनी तुम्हारा प्राण बड़ी आपत्ति में पड़ा चाहता है,।

रोज़ाबिला यह सुनकर कांप उठी, कपाल स्वेदाक्त होगया और आनन पीत वर्ण।

अबिलाइनो―तुम अपने नाशक को देखा चाहती हो? तुम्हारा बालतक बीका न होगा, परन्तु यदि तुम अपना जीवन चाहती हो तो मौन रहो।

रोज़ाबिला की संज्ञा उस समय लुप्तप्राय थी, और चित्त ठिकाने न था कि कुछ बोलती, उस वृद्ध पुरुष की बातों से उसके छक्के छूट गये, और उसे मूर्छा आच्छादन करने लगी।

अबिलाइनो―राजात्मजे! तुम किसी प्रकार का भय मत करो, जब तक मैं यहाँ हूँ तुम्हारे लिये यह भय का स्थान नहीं [ ३० ]है, इस कुञ्ज से प्रस्थान के प्रथम तुम अपने नाशक का शव यहाँ तड़पता देखोगी।

उस समय रोज़ाविला ने चाहा कि निकलभागे परन्तु अकस्मात् वह बृद्ध, जो पहले अत्यन्त निर्बल था जिसके मुख से अल्पकाल हुआ कि बात कठिनता से निकलती थी और एक वृक्षके आश्रय से बैठा हुआ था-कड़क कर उठ खड़ा हुआ और उसको हाथ पकड़ कर खींच लिया।

रोजाविला―परमेश्वर के लिये मुझे छोड़ दो कि भाग जाऊँ।

अविलाइनो―राजकन्यके! अल्पभय न करो मैं तुम्हारी प्राण रक्षा के लिये उपस्थित हूँ।

यह कहकर उसने अपनी जेब से एक सीटी निकाल कर मँह से लगायी और उसको जोर से बजाया। सीटी के साथ ही माटियो जो कुछ दूर वृक्षों की ओट में छिपा था अपने स्थान से निकल कर कुञ्ज के भीतर घुस पड़ा। अविलाइनो रोजाबिला का परित्यापन कर कई क़दम माटियो की ओर बढ़ा और उसके समीप पहुँच कर कटार को उसके हृदय में भोंक दिया। माटियो के मुख से शब्द तक न निकला और वह अविलाइनों के चरणों के समीप गिर पड़ा। किश्चित् काल पर्य्यन्त कर पद पटकने के उपरान्त उसकी आत्मा ने यमलोक को प्रस्थान किया। उस समय अबिलाइनो ने फिर कुञ्ज की ओर दृष्टिपात किया तो देखा रोजाबिला कर पग परिचालना हीन मूर्ति की सी अवस्था में खड़ी है।

अविलाइनो―मेरी षोड़शाब्दा! कोमलाङ्गी!! रोजा- विला!!! देखो उस दुष्टात्मा का शरीर जो मुझको तुम्हारे नाश करने के लिये यहाँ लाया था, वह पड़ा है। चित्त ठिकाने करो और अपने घर जाकर अपने पितृव्य महोदय से कहो कि [ ३१ ]तुम्हारे जीवन की रक्षा अबिलाइनो ने की रोजाबिला को बात करने की शक्ति न थी उसने अपना हाथ अबिलाइनो की ओर बढ़ाया और उसका हाथ अपने हाथ में लेकर धन्यबाद प्रदान की भांति चूम लिया। अविलाइनों हर्ष और आश्चर्य्य की दृष्टि से उस कृशोदरी को देख रहा था, मेरी अनुमति तो यह है कि संसार में कोई पुरुष ऐसा नहीं है जो ऐसी दशा में अपने को अधिकार में रख सकता। एक तो रोजाबिलाका षोड़श अथवा सप्तदशाब्द का वयःक्रम, युवावस्था का प्रारम्भ, दूसरे सुन्दर स्वेत परिच्छद, असित प्रमादपूरित अँखड़ियाँ, स्वच्छ विशाल भाल, स्वर्ण-वर्ण आकुञ्चित केश-जाल, पाटल सरस-दलोपमेय कपोल, और पतले पतले विम्बाफल समकक्षी ओष्ठ, ऐसे थे जिन्हें देखकर देवजात का मन धैर्य्यरहित हो हाथ से जाता रहे। स्वरूप देखने से परमेश्वर की शक्ति स्मरण होती थी और यही ज्ञात होता था कि उस रचयिता ने इस लावण्य-पुत्तलिका को स्वकर-कमलों से विरचित किया है। नख से शिख पर्य्यन्त सिवाय सद्गुण के कोई अवगुण दिखलाई नहीं देता था। ऐसी कोमलाङ्गी को यदि अबिलाइनो हक्का बक्का खड़ा देखा किया और कतिपय क्षण के आनन्द के लिये सदैव की उद्विग्नता मोल ली तो कोई आश्चर्य्य की बात नहीं! निदान कुछ काल के उपरान्त वह कर्कश स्वर से बोल उठा "शपथ है परमेश्वर की, रोज़ाबिला तेरी सुन्दरता अद्भुत और अलौकिक है, वलीरिया भी तुझसे अधिक सुन्दर न थी।" यह कहकर उसने रोजाबिला के कपोलों का एक बार चुम्बन किया! रोजाबिला भय से काँप उठी और कहने लगी “ऐ भयंकर व्यक्ति तू मेरे समक्ष से अन्तर्हित हो, परमेश्वर के लिये चला जा,।

अबिलाइनो―हाय! रोज़ाबिला तू इतनी सुन्दर क्यों है [ ३२ ]और मैं―क्यों रोजाबिला तू जानती है कि किसने तेरे कपोलों का चुम्बन किया? जा अपने पितृव्य महाशय से कह दे कि वह अबिलाइनों बाँका था।

यह कहकर वह कुञ्ज से झपटकर निकल गया।