संग्राम/४.१

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संग्राम  (1939) 
द्वारा प्रेमचंद
[ २१६ ]
 

चतुर्थ अंक

[ २१८ ]


पहलादृश्य

(स्थान—मधुबन,थानेदार,इन्सपेक्टर, और कई सिपाहियोंका प्रवेश)

इन्सपेक्टर—एक हजारकी रकम एक चीज होती है।

थानेदार—बेशक!

इन्स०—और करना कुछ नहीं। दो-चार शहादतें बनाकर खानातलाशी कर लेनी है।

थानेदार—गांववाले तो सबल सिंह के खिलाफ ही होंगे।

इन्सपेक्टर—आजकल बड़ेसे बड़े आदमीको जब चाहें फांस दें। कोई कितना ही मुअज्जिज हो, अफसरोंके यहां इसकी कितनी ही रसाई हो, इतना कह दीजिये कि हुजूर वह भी सुराजका हामी है, बस सारे हुक्काम उसके जानी दुश्मन हो जाते हैं। फिर वह गरीब अपनी कितनी ही सफाई दिया करे, अपनी वफादारीके कितने ही सबूत पेश करता फिरे, कोई उसकी नहीं सुनता। सबल सिंहकी इज्जत हुक्कामकी नजरों में कम नहीं थी। उनके साथ दावतें खाते थे। घुड़दौड़में शरीक होते थे, हरएक [ २१९ ]जलसे में शरीक किये जाते थे, पर मेरे एक फिकरेने हजरतका सारा रङ्ग फीका कर दिया। साहबने फौरन हुक्म दिया कि जाकर उसकी तलाशी लो और कोई सबूत दस्तगाब हो तो गिरफ्तारीका वारंट ले जाओ।

थानेदार—आपने क्या फिकरा जमाया था?

इन्सपेक्टर—अजी कुछ नहीं,महज इतना कहा था कि आज कल यहाँ सुराजकी बड़ी धूम है। ठाकुर सबलसिंह पंचायतें कायम कर रहे हैं। इतना सुनना था कि साहबका चेहरा सुर्ख हो गया। बोले—दगाबाज आदमी है। मिलकर वार करना चाहता है, फौरन उसके खिलाफ सबूत पैदा करो। इसके कब्ल मैंने कहा था, हजूर यह बड़ा जिनाकार आदमी है, अपने एक असामीकी औरतको निकाल लाया है। इसपर सिर्फ मुसकिराये, तोवरोंपर जरा भी मैल नहीं आई। तब मैंने यह चाल चली। यह लो गांवके मुखिये आ गये। जरा रोब जमा दूँ।

(मँगरू, हरदास फत्तू आदिका प्रवेश। सलोनी भी पीछे
पीछे पाती है और अलग हो जाती है)

इन्सपेक्टर—आइये शेखजी, कहिये खैरियत तो है?

फत्तू—(मनमें)सबल सिंहके नेक और दयावान होनेमें संदेह नहीं। कभी हमारे ऊपर सख्ती नहीं की! हमेशा रिआयत ही करते रहे, पर आंखका लगना बुरा होता है। पुलिसवाले न जाने उन्हें [ २२० ]किस-किस तरह सतायेंगे। कहीं जेहल न भिजवादें। राजेश्वरीको वह जबरदस्ती थोड़े ही ले गये। वह तो अपने मनसे गई। मैंने चेतनदास बाबाको नाहक इस बुरे काममें मदद दी। किसी तरह सबल सिंहको बचाना चाहिये। (प्रकट) सब अल्लाहका करम है।

इन्सपेक्टर—तुम्हारे जमींदार साहब तो खूब रङ्ग लाये। कहाँ तो वह पारसाई और कहां यह हरकत।

फत्तू—हजूर हमको तो कुछ मालूम नहीं।

इन्स०—तुम्हारे बचानेसे अब वह नहीं बच सकते अब तो आगये, शेरके पंजेमें। अपना बयान दीजिये। वहाँ गाँवमें पञ्चायत किसने कायम की?

फत्तू—हजूर गांवके लोगोंने मिलकर कायम की, जिसमें छोटी २ बातोंके पीछे अदालतकी ठोकरें न खानी पड़ें।

इन्स०—सबल सिंहने यह नहीं कहा कि अदालतमें जाना गुनाह है?

फत्तू—हजूर उन्होंने ऐसी बात तो नहीं कही, हां पंचायतके फायदे बताये थे।

इन्स०—उन्होंने तुम लोगोंको बेगार बन्द करनेकी ताकीद नहीं की? सच बोलना, खुदा तुम्हारे सामने है।

फत्तू—(बगल झांकते हुए) हजूर उन्होंने यह तो नहीं कहा। हां! यह जरूर कहा कि जो चीज दो उसका मुनासिब दाम लो। [ २२१ ]इन्स०—वह एक ही बात हुई। अच्छा उस गांवमें शराबकी दूकान थी। वह किसने बन्द कराई?

फत्तू—हजूर ठीकेदारने आप ही बन्द कर दी। उसकी बिक्री न होती थी।

इन्स०—सबल सिंहने सबसे यह नहीं कहा कि जो उस दूकानपर जाय जसे पंचायतमें सजा मिलनी चाहिये?

फत्तू—(मनमें) इसको जरा-जरा सी बातोंकी खबर है। (प्रगट) हजूर मुझे याद नहीं।

इन्सपेक्टर—शेखजी, तुम कन्नी काट रहे हो, इसका नतीजा अच्छा नहीं है। दारोगाजीने तुम्हारा जो बयान लिखा है उसपर चुपके से दस्तखत कर दो वरना जमींदार तो न बचेंगे। तुम अलबत्ता गेहूँके साथ धुनकी तरह पिस जाओगे।

फत्तू—हजूरका अखतियार है जो चाहें करें, पर मैं तो वही कहूँगा जो जानता हूँ।

इन्सपेक्टर—तुम्हारा क्या नाम है?

मंगरू—(सामने आकर) मंगरू।

इन्सपेक्टर—जो पूछा जाय उसका साफ २ जवाब देना। इधर-उधर किया तो तुम जानोगे। पुलिसका मारा पानी नहीं माँगता। यहां गावमें पंचायत किसने क़ायम की?

मंगरू—(मनमें) मैं तो जो यह चाहेंगे वही कहूंगा। पीछे [ २२२ ]देखा जायगा। गालियाँ देने लगें या पिटवाने ही लगें तो इनका क्या बना लूंगा। सबल सिंह तो मुझे बचा न देंगे। (प्रगट) ठाकुर सबल सिंहने।

इन्सपेक्टर—उन्होंने तुम लोगोंसे कहा था न कि सरकारी अदालतों में जाना पाप है। जो सरकारी अदालतमें जाय उसका हुक्का-पानी बन्द कर दो।

मंगरू—(मनमें) यह तो नहीं कहा था, खाली अदालतोंके खर्चसे बचने के लिये पंचायत खोलनेकी ताकीद की थी। पर ऐसा कह दूं तो अभी यह जामेसे बाहर हो जायगा। (प्रगट) हां हजूर कहा था। बात सच्ची कहूँगा। जमींदार आकबत में थोड़े ही साथ देंगे।

इन्स०—सबल सिंहने यह नहीं कहा था कि किसी हाकिमको बेगार मत दो।

मंगरू—(मनमें) उन्होंने तो इतना ही कहा था कि मुनासिब दाम लेकर दो। (प्रगट) हां हजूर कहा था। बरमला कहा था। सच्ची बात कहने में क्या डर?

इन्स०—शराब और गांजेकी दूकान तोड़वाने की तहरीर उनकी तरफसे हुई थी न?

मंगरू—बराबर हुई थी। जो शराब-गांजा पिये उसका हुक्का पानी बन्द कर दिया जाता था। [ २२३ ]इन्स०—अच्छा, अपने बयानपर अंगूठे का निशान दो। तुम्हारा क्या नाम है जी? इधर आओ।

हरदास—(सामने) हरदास।

इन्स०—सच्चा बयान देना जैसा मंगरूने दिया है, वरना तुम जानोगे।

हरदास—(मनमें) सबल सिंह तो अब बचते नहीं,मेरा क्या बिगाड़ सकते हैं। यह जो कुछ कहलाना चाहते हैं मैं उससे चार बात ज्यादा ही कहूँगा। यह हाकिम हैं, खुश होकर मुखिया बना दें तो सालमें सौ दो सौ रुपये अनायास ही हाथ लगते रहे। (प्रगट) हजूर जो कुछ जानता हूं वह रत्ती २ कह दूंगा।

इन्स०—तुम समझदार आदमी मालूम होते हो। अपना नफ़ा नुकसान समझते हो। यहां पचायतके बारेमें क्या जानते हो?

हरदास—हजूर,ठाकुर सबल सिंहने खुलवाई थी। रोज यही कहा करें कि कोई आदमी सरकारी अदालतमें न जाय। सरकारके इसटाम क्यों खरीदो। अपने झगड़े आप चुका लो। फिर न तुम्हें पुलिसका डर रहेगा न सरकारका। एक तरहसे तुम अदालतोंको छोड़ देनेसे ही सुराज पा जाओगे। यह भी हुकुम दिया था कि जो आदमी अदालत जाय उसका हुक्का पानी बन्द कर देना चाहिये।

इन्स०—बयान ऐसा होना चाहिये। अच्छा सबल सिंहने बेगारके बारे में तुमसे क्या कहा था? [ २२४ ]हरदास—हजुर, वह तो खुल्लमखुल्ला कहते थे कि किसीको बेगार मत दो, चाहे बादशाह ही क्यों न हो। अगर कोई जबरदस्ती करे तो अपना और उसका खून एक कर दो।

इन्सपेक्टर—ठीक। शराब-गांजेकी दूकान कैसे बन्द हुई?

हरदास—हजूर, बन्द न होतो तो क्या करती, कोई वहां खड़ा नहीं होने पाता था। टाकुर साहबने हुकुम दे दिया था कि जिसे वहां खड़े, बैठे, या खरीदते पाओ उसके मुंहमें कालिख लगाकर सिरपर सौ जूते लगाओ।

इन्स०—बहुत अच्छा। अंगूठेका निशान कर दो। हम तुमसे बहुत खुश हुए।

(सलोनी गाती है।)

"सैयां भये कोतवाल, अब डर काहेका।"

इन्स०—यह पगली क्या गा रही है। अरे पगली इधर था।

सलोनी—(सामने आकर)

सैयां भये कोतवाल अब डर काहेका।

इन्स०—दारोगाजी, इसका बयान भी लिख लीजिये।

सलोनी—हां लिख लो। ठाकुर सबल सिंह मेरी बहूको घरसे भगा ले गये और पोतेको जेहल भेजवा दिया।

इन्स०—यह फजूल बातें मैं नहीं पूछता। बता यहां उन्होंने पंचायत खोली है न? [ २२५ ]सलोनी—यह फजूल बातें मैं क्या जानूं! मुझे पञ्चायतसे क्या लेना-देना है। जहाँ चार आदमी रहते हैं वहां पंचाइत रहती ही है। सनातनसे चली आती है, कोई नई बात है! इन बातोंसे पुलिससे क्या मतलब! तुम्हें तो देखना चाहिये सरकारके गजमें भले आदमियों की आबरू रहती है कि लुटती है। सो तो नहीं पंचाइत और बेगारका रोना ले बैठे। बेगार बन्द करने को सभी कहते हैं। गांवके लोगोंको आपही अखरता है। सबल सिंहने यह कह दिया तो क्या अंधेर हो गया। शराब, ताड़ी, गांजा, भांग पीनेको सभी मना करते हैं। पुरान, भागवत, साधु, सन्त सभी इसको निखिद्ध कहते हैं। सबल सिंहने यहा तो क्या नई बात कही। जो तुम्हारा काम है वह करो, उटपटांग बातों में क्यों पड़ते हो?

इन्स०—बुढ़िया शैतानकी खाला मालूम होती है।

थानेदार—तो इन गवाहोंको अब जाने दूं?

इन्स०—जी नहीं अभी (Rehersal) तो बाकी है। देखो जी तुमने मेरे रूबरू जो बयान दिया है वही तुम्हें बड़े साहबके इजलासपर देना होगा। ऐसा न हो, कोई कुछ कहे कोई कुछ। मुकदमा भी बिगड़ जाय और तुम लोग भी गलतबयानीके इज- लाममें घर लिये जाओ। दारोगाजी शुरू कीजिये। तुम लोग सब साथ-साथ वही बातें कहो जो दारोगाजी की जवानसे निकालें।

दारोगा—ठाकुर सबल सिंह कहते थे कि सरकारी अदालतों[ २२६ ]की जड़ खोद डालो, भूलकर भी वहां न जाओ। सरकारका राज अदालतोंपर कायम है। अदालतोंको तर्क कर देनेसे राजकी बुनि- याद हिल जायगी।

(सबके सब यही बात दुहराते हैं।)

दारोगा—अपने मुआमले पञ्चायतोंमें तै कर लो।

सबके सब—अपने मुआमिले पचायतोंमें से कर लो।

दारोगा—उन्होंने हुक्म दिया था कि किसी अफसरको बेगार मत दो।

सबके सब—उन्होंने हुक्म दिया था कि किसी अफसरको बेगार मत दो।

दारोगा—बेगार न मिलेगी तो कोई दौरा करने न आयेगा। तुम लोग जो चाहना करना। यह सुराजकी दूसरी सीढ़ी है।

सबके सब बेगार न मिलेगी नो कोई दौरा करने न आयेगा। यह सुराजकी दूसरी सीढ़ी है।

दारोगा—यह और कहो-तुम लोग जो जी चाहे करना।

इन्स०—यही जुमला तो जान है।

सबके सब—तुम लोग जो जी चाहे करना।

दारोगा—उन्होंने हुक्म दिया था कि जो नशेकी चीजें खरीदे उसका हुक्का-पानी बन्द कर दो।

सबके सब—उन्होंने हुक्म दिया था कि जो नशेकी चीजें [ २२७ ]खरीदे उसका हुक्का पानी बन्द कर दो।

दारोगा—अगर इतने पर भी न माने तो उसके घरमें आग लगा दो।

सबके सब—अगर इतनेपर भी न माने तो उसके घरमें आग लगा दो।

दारोगा—उसके मुँहमें कालिख लगाकर सौ जूते लगाओ।

सबके सब—उसके मुँहमें कालिख लगाकर सौजूते लगाओ।

दारोगा—जो आदमी विलायती कपड़े खरीदे उसे गधेपर सवार कराके गांवभरमें घुमाओ।

सबके सब—जो आदमी विलायती कपड़े खरीदे उसे गधे पर सवार कराके गांवमें घुमायो।

दारोगा—जो पंचायतका हुक्म न माने, ससे उल्टे लटकाकर पचास बेंत लगाओ।

सबके सब—जो पंचायतका हुक्म न माने उसे उल्टे लटकाकर पचास बेंत लगाओ।

दारोगा—(इन्सपेक्टरसे) इतना तो काफी होगा।

इन्स०—इतना उन्हें जहन्नुम भेजने के लिये काफी है। तुम लोग देखो खबरदार, इसमें एक हर्फका भी उलट फेर न हो। अच्छा अब चलना चाहिये। (कानिसटिब्लोंसे) देखो, बकरे हों तो पकड़ लो।

सिपाही—बहुत अच्छा हजूर, दो नहीं चार। [ २२८ ]दारोगा—एक पांच सेर घी भी लेते चलो।

सिपाही—अभी लीजिये सरकार।

(दारोगा और इन्सपेक्टरका प्रस्थान)

सलोनी गाती है—सैयां भये कोतवाल अब डर काहेका।
अब तो मैं पहनूं अतलसका लहँगा।
और चवाऊं पान।
द्वारे बैठ नजारा मारूं॥
सैयां भये कोतवाल अब डर काहेका।

फत्तू—काकी गाती ही रहेगी?

सलोनी—जा तुझसे नहीं बोलती। तू भी डर गया।

फत्तू—काकी इन सभोंसे कौन लड़ता। इजलासपर जाकर जो सच्ची बात है वह कह दूंगा।

मंगरू—पुलिसके सामने जमींदार कोई चीज नहीं।

हरदास—पुलिस के सामने सरकार कोई चीज नहीं।

सलोनी—सच्चाई के सामने जमींदार,सरकार कोई चीज नहीं।

मंगरू—सच बोलनेमें निबाह नहीं है।

हरदास—सच्चे की गर्दन सभी जगह मारी जाती है।

सलोनी—अपना धर्म तो नहीं बिगड़ता। तुम सब कायर हो। तुम्हारा मुंह देखना पाप है। मेरे सामनेसे हट जाओ।

(प्रस्थान)

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