सङ्कलन/७ सबसे बड़ा हीरा

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सबसे बड़ा हीरा


दक्षिणी अफरीक़ा में बोर लोगों की पुरानी राजधानी प्रिटोरिया नगर है। उसके पास प्रीमियर नाम की एक हीरे की खान है। उसमें, कुछ समय हुआ, एक बहुत बड़ा हीरा निकला है। यह हीरा आज कल लन्दन में विराज रहा है। बड़ी खबरदारी के साथ ट्रांसवाल से वह लन्दन पहुँचाया गया है। जितने बड़े बड़े हीरे इस समय तक पाये गये हैं, उनसे यह कई गुना बड़ा है। देखने में वह काँच के एक छोटे ग्लास के बराबर है। जिस समय उसके निकलने की खबर दूर दूर तक पहुँची, उस समय उसकी क़ीमत अन्दाज़न एक करोड़ रुपए के कूती गई। जिन्होंने उसे देखा है, वे इस अन्दाज़ को गलत नहीं बतलाते। मह विशाल हीरा नाप में ४×२÷१२×११÷४ इञ्च है। इसका वजन ३०३२ कैरट है। अर्थात् कोई तीन पाव के क़रीब!

यह हीरा प्रायः निर्दोष है। एक आध निशान इसमें कहीं कहीं पर हैं। पर काट कर सुडौल करते समय वे निकल जायँगे और हीरे के आकार में विशेष कमी न होगी। यह बिल-
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कुल सफ़ेद और पारदर्शक है। देखने में यह बर्फ़ का एक बड़ा टुकड़ा सा जान पड़ता है। एक विलायती जौहरी का मत है कि आज तक जितने अच्छे अच्छे हीरे मिले हैं, उन सब से यह अधिक स्वच्छ और पानीदार है। इसकी बनावट से मालूम होता है कि अपनी स्थिति में यह हीरा बेहद बड़ा रहा होगा। मुमकिन है, इसका वजन मनों रहा हो! इस प्रचण्ड रत्न-राज के नीचे का हिस्सा भर शेष रह गया है; और सब कई टुकड़ों में होकर उड़ गया है। नहीं मालूम, ये उड़े हुए टुकड़े कहाँ गये, या क्या हुए अथवा वे कभी किसी को मिलेंगे या नहीं।

आश्चर्य की बात है कि हीरे की उत्पत्ति कोयले से होती है। कोयले के समान काली चीज से हीरे के समान दीप्तिमान रत्न निकलता है! पृथ्वी के पेट में भरी हुई असीम उष्णता के योग से हीरे बनते हैं। जब वह उष्णता अतुल वेग के साथ पृथ्वी की तहों को तपाती और फाड़ती हुई ऊपर आती है, तब किसी किसी जगह एक विशेष प्रकार की रासायनिक प्रक्रिया शुरू होती है। जिस जगह इस प्रक्रिया की सहायक सब सामग्री रहती है, उस जगह हीरे की उत्पत्ति होती है। दक्षिणी आफ्रीका की खानों से यह साफ जाहिर होता है कि वहाँ पर किसी समय ज्वालामुखी पर्वतों के मुँह से बहुत ही भयङ्कर स्फोट हुए हैं। जिन मुँहों से होकर पृथ्वी के पेट से आग निकली है, वे अब तक बने हुए हैं। उन्हीं के आस-पास,
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एक प्रकार की पीली जमीन में, गड़े हुए हीरे मिलते हैं। पर उस जमीन की बनावट से यह मालूम होता है कि जो हीरे वहाँ निकलते हैं, वे वहीं नहीं बने। वे उससे भी बहुत दूर नीचे बने थे। वहाँ से ज्वालागर्भ पर्वतों के स्फोट के समय वे ऊपर फेंक दिये गये हैं। विषम ज्वाला और अतिशय दबाव के कारण, वहीं, उतनी गहराई में, कोयले के साथ और और चीजों का रासायनिक संयोग होने से वे उत्पन्न हुए होंगे। प्रीमियर खान के पास जो ज्वाला-वमन हुआ होगा, उसका वेग बहुत ही प्रचण्ड रहा होगा। वेग ही की प्रचण्डता के कारण, जो हीरा निकला है, उसकी शिला के टुकड़े टुकड़े हो गये होंगे।

इस रत्न-शिला का जो टुकड़ा निकला है, वह छोटा नहीं है। वह बहुत बड़ा है। खान के मालिक उसकी प्राप्ति से बेहद खुश हैं। यह इस तरह की खुशी है कि इसने उनको अन्देशे में नहीं, खतरे तक में डाल दिया है। उनको यह विशाल हीरक-रत्न बोझ सा मालूम हों रहा है। कोई मामूली आदमी तो उसे ख़रीद ही नहीं सकता। यदि कोई खरीदेगा तो राजा या राज- राजेश्वर। परन्तु राजेश्वरों को भी इसकी कीमत देते खलेगा। इस हीरे की कीमत नियत करना केवल एक काल्पनिक बात है; सिर्फ एक खयाली अन्दाजा है। १७५० से १८७० ईसवी तक हीरे का दाम उसके वजन के वर्ग-मूल के हिसाब से लगाया जाता था । दूसरे देशों में हीरे की तौल कैरेट से होती है। एक कैरट में चार ग्रेन होते हैं और एक माशे में कोई १५ ग्रेन। [ ५१ ]प्रत्येक हीरे की कीमत उसके रूप और द्युति के अनुसार होती है। किसी की थोड़ी होती है, किसी की बहुत। कल्पना कीजिए कि किसी हीरे की कीमत फी कैरट १०० रुपये के हिसाब से निश्चित हुई, तो दो कैरट की कीमत २×२ = १०० = ४०० रुपये और तीन कैरट की कीमत ३×३×१०० = ९०० रुपये हुए। अब यह जो नया हीरा निकला है, इसकी कीमत इसी हिसाब से लगाइए। इसका वज़न है ३०३२ कैरट। अतएव ३०३२×३०३२×१०० = ९१९,३०,२,४०० रुपये कीमत हुई। एक अरब के करीब। कौन इतनी कीमत देगा? जब से आफ- रीका में हीरे निकलने लगे, तब से हीरों की कीमत नियत करने का यह तरीका उठ गया। परन्तु जौहरियों का अन्दाजा है कि यह विशाल हीरा ७५,००,००० से १,५०,००,००० रुपये तक बिक जायगा। इतना रुपया क्या थोड़ा है! बहुधा ऐसा होता है कि बड़े बड़े हीरों को काट काट कर छोटे छोटे टुकड़े कर डाले जाते हैं। इस तरह उन्हें बेचने में सुभीता होता है। सम्भव है, इस हीरे की भी यही दशा हो। परन्तु इतने अच्छे और इतने बड़े हीरे को छिन्न-भिन्न कर देना बड़ी क्रूरता का काम होगा। तथापि बड़े बड़े हीरों को रखना धोखे और खतरे में पड़ना है। इतिहास इस बात की गवाही दे रहा है कि जिनके पास बड़े बड़े हीरे रहे हैं, उन्हें अनेक आपदाओ में फँसना पड़ा है।

टिफ़ानी नाम की खान से ९६९ कैरट वज़न का जो हीरा निकला था, वह आज तक सब से बड़ा समझा जाता था। पर
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इस नये हीरे ने बड़ेपन में उसका भी नम्बर छीन लिया। जिस समय यह हीरा तराश कर ठीक किया जायगा, उस समय उसकी सूरत और ही तरह की हो जायगी और वजन भी उसका कम हो जायगा। जिस पर भी यह दुनिया भर के हीरों से कई गुना बड़ा रहेगा। प्रसिद्ध कोहेनूर हीरा काटने से, वज़न में बहुत कम हो गया है। उसका आकार भी छोटा हो गया है। पहले उसका वज़न ७९३ कैरट था। परन्तु जिस आदमी ने उसे काट छाँट कर ठीक किया, वह हीरा-तराशी के काम को अच्छी तरह न जानता था। इसका फल यह हुआ कि कोहेनूर का वज़न सिर्फ़ २७९ कैरट रह गया। वह एक बार फिर तराशा गया। इस बार कम होकर उसका वज़न १०६ ही कैरट रह गया। इस हीरे का इतिहास पाठकों को मालूम ही होगा। इसलिए पिष्ट-पेषण की क्या ज़रूरत ?

प्रिंस आरलफ़ नाम का हीरा भी एक बहुत प्रसिद्ध हीरा है। वह रूस-राज के पास है। उसका आकार गुलाब का जैसा है। उसका वज़न १९४×३÷४ कैरट है। फ्लाटाइन नामक हीरा पीले रङ्ग का है। वह आस्ट्रिया के राजभवन की शोभा बढ़ा रहा है। उसका वज़न १३३ कैरट है। स्टार आफ़ साउथ अर्थात् "दक्षिण का तारा" नाम का हीरा ब्रेज़ील में एक हबशी को १८५३ ईसवी में मिला था। उसका वज़न २५४ कैरट है। दक्षिणी अमेरिका में जितने हीरे निकले हैं, यह उनमें सबसे बड़ा है। काटने पर इसका वज़न १२४ कैरट रह गया है। रूस-
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राज के पास एक और बहुत बड़ा हीरा है। उसका नाम है ग्रेट (बड़ा) मोग़ल। वज़न उसका २७९ कैरट है। सांसी नामक हीरा भी बहुत दिनों तक रूस-राज के पास था। पर १७९९ में उसे एक जौहरी ने २,१०,००० रुपये में मोल ले लिया। यह हीरा कई आदमियों के पास रह चुका है। यह सांसी नाम के एक आदमी के पास था। इसी लिए इसका नाम सांसी पड़ा। एक दफे उस सांसी ने इसे राजा तीसरे हेनरी के पास भेजा। जो आदमी उसे लेकर चला, उसे रास्ते में चोरों ने मार डाला। पर उसने मरने के पहले ही वह हीरा निगल लिया था; इससे वह चोरों को न मिला। सांसी ने उसे उस आदमी के मेदे को फाड़ कर निकाल लिया।

इस तरह कोई चौदह पन्द्रह हीरे इस समय संसार में बहुत क़ीमती समझे जाते हैं। पर यह नया हीरा द्युति और विशालता में उन सब से बढ़कर है।

[ अक्तूबर १९०५.
 


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