सर्वोदय/५-उपसंहार

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उपसंहार

महान रस्किन के लेखों का खुलासा हम देख चुके। ये लेख यद्यपि कितने ही पाठकों को नीरस मालूम होंगे, तथापि जिन्होंने इसे एक बार पढ़ लिया हो उनसे हम दुबारा पढ़ने की सिफ़ारिश करते हैं। 'इण्डियन ओपिनियन' [ ६४ ]के[१] सब पाठकों से यह आशा रखना कि वे इन पर विचार कर इनके अनुसार आचरण करेंगे शायद बहुत बड़ी अभिलाषा कही जाय। पर यदि थोड़े पाठक भी इनका अध्ययन कर इनके मार को ग्रहण करेंगे तो हम अपना परिश्रम सफल समभंगे। ऐसा न हो सके तो भी रस्किन के अन्तिम परिच्छेद के अनुसार हमने अपना जो फर्ज कर दिया उसमें फल का समावेश हो जाता है, इसलिए हमें तो सदा ही सन्तोष मानना उचित है।

रस्किन ने जो बाते अपने भाईयों—अंग्रेजों के लिए लिखी है वह अंग्रेजों के लिए यदि एक हिस्सा लागू होती है, तो भारत वासियों के लिए हज़ार हिस्से लागू होती है। हिन्दुस्तान में नए विचार फैल रहे है। आजकल [ ६५ ]के पाश्चात्य शिक्षा प्राप्त युवकों में जोश है यह तो ठीक है, पर जोश का अच्छा उपयोग होने से और बुरा होने पर बुरा परिणाम होता है। एक ओर से यह आवाज़ उठ रही है कि स्वराज्य प्राप्त करना चाहिए और दूसरी ओर से यह आवाज आ रही है कि विलायत जैसे कारखाने खोलकर तेजी के साथ धन बटोरना चाहिए।

स्वराज्य क्या है, इसे हम शायद ही समझने हो। नेटाल स्वराज्य में है, पर हम कहते हैं कि नेटाल में जो हो रहा है हम भी वहीं करना चाहते हो तो ऐसा स्वराज्य नरक राज्य है। नेटाल वाले काफिरों को कुचलते हैं भारतीयों के प्राण हरण करते है। स्वार्थ में अन्धे होकर स्वार्थ राज्य भोग रहे है। यदि काफिर और भारतीय नेटाल में चले जायें तो वे आपस में कट मरे। [ ६६ ]

तब क्या हम ट्रान्सवाल जैसा स्वराज्य प्राप्त करेंगे? जनरल स्मट्स उसके नायको में से एक हैं। वह लिखित या जबानी दिये हुए वचनों का पालन नहीं करते। कहते कुछ हैं और करते कुछ। अँग्रेज उनसे ऊब उठे हैं। रुपया बचाने के बहाने उन्होंने अँग्रेज सैनिकों की लगी रोजी छीनकर उनके स्थान में डच लोगों को रक्खा है। हम नहीं मानते कि इससे अन्त में डच भी सुखी होंगे। जो लोग स्वार्थ पर दृष्टि रखते हैं वे पराई जनता को लूटने के बाद अपनी जनता को लूटने के लिए सहज ही तैयार हो जायँगे।

संसार के समस्त भागों पर दृष्टि डालने से हम देख सकते हैं कि जो राज्य स्वराज्य के नाम से पुकारा जाता है, वह जनता की उन्नति और सुख के लिए पर्याप्त नहीं है। एक सीधा उदाहरण लेकर हम आसानी से इस बात को देख सकते हैं। लुटेरों के दल में स्वराज्य हो जाने [ ६७ ]से क्या फल होगा, यह सभी ज्ञान सकते हैं। उनपर किसी ऐसे मनुष्य का अधिकार हो जो स्वच लुटेरा न हो, तभी वह अन्न में सुखी हो सकता है। अमेरीका, फ्रान्स, निदरलेण्ड ये सभी बड़े-बड़े राज्य हैं; पर यह मानने के लिए कोई आधार नहीं है कि वे सचमुच सुखी हैं।

स्वराज्य का वास्तविक अर्थ है अपने ऊपर रख सकता। यह वही मनुष्य कर सकता है जो स्वयं नीति का पालन करता है, दूसरों को धोखा नहीं देता—माना-पिता, स्त्री, बच्चे, नौकर-चाकर, पड़ोसी—सबके प्रति अपने कर्त्तव्य का पालन करता है। ऐसा मनुष्य चाहे जिगस देश में हो, फिर भी स्वराज्य ही भोग रहा है। जिस राष्ट्र से ऐसे मनुष्यों की संख्या अधिक हो उसे स्वराज्य मिला हुआ ही समझना चाहिए।

एक राष्ट्र का दूसरे राष्ट्र पर शासन करना साधारणतः बुरा कहा जा सकता है। अंग्रेजों [ ६८ ]का हमपर राज करना एक उल्टी बात है, परन्तु यदि अंग्रेज़ भारत से कूच कर जायँ तो यह न मानना चाहिए कि भारतीयों ने कोई बहुत बड़ा काम कर लिया। वे हम पर राज्य करते है, इसका कारण खुद हमी है। हमारी फूट, हमारी अनीति और हमारा अज्ञान इसका कारण है। ये तीन बातें दूर हो जायें तो हमे एक उंगली भी न उठानी होगी और अंग्रेज चुपचाप भारत से चले जायेंगे। यही नही हम भी सच्चे स्वराज्य को भोग सकते हैं।

बमबाजी से बहुत से लोग ख़ुश होते दिखाई देते है। यह केवल अज्ञान और नासमझी की निशानी है। यदि सब अंग्रेज़ मार डाले जा सके तो उन्हें मारने वाले ही भारत के मालिक बनेगा। अर्थात् भारत अनाथ ही रहेगा। का नाश करने वाले बम अंग्रेजों के चले जाने पर भारतीयों पर बरसेगे। फ्रांस के [ ६९ ]


प्रजातन्त्र के प्रत्यक्ष—राष्ट्रपति—को मारनेवाला, फ्रैंच ही तो था। अमेरिका के राष्ट्रपति क्लीव लैण्डक को मारनेवाला एक अमेरिकन ही था। इसलिए हमें उचित है कि हम लोग उतावली करके बिना विचारे पाश्चात्य राष्ट्रों का अन्ध अनुकरण कदापि न करें।

जिस तरह पाप कर्म से—अँग्रेजों को मारकर सच्चा स्वराज्य नहीं प्राप्त किया जा सकता, उसी तरह भारत में कारखाने खोलने में भी स्वराज्य नहीं मिलने का। रस्किन ने इस बात को पूरी तरह साबित कर दिया है कि सोना चांदी एकत्र हो जाने में कुछ राज्य नहीं मिल जाता। यह स्मरण रखना चाहिए कि पश्चिम में सुधार हुए अभी सौ ही वर्ष हुए हैं, बल्कि सच पूछिए तो पचास ही कहे जाने चाहिएँ। उतने ही दिनों में पश्चिम की जनता वर्णसकरगी होती दिखाई देने लगी है। हमारी यही प्रार्थना है कि यूरोप की भी अवस्था भारत की [ ७० ]कदापि न हो। यूरोप के राष्ट्र एक दूसरे पर घात लगाये बैठे है। केवल अपनी तैयारी में लगे होने के ही कारण सब शान्त है। किसी समय जोरों की आग लगेगी तब यूरोप में नरक ही दिखाई देगा।[२] यूरोप का प्रत्येक राज्य काले आदमियों को अपना भक्ष्य मान बैठा है। जहाँ केवल धन का ही लोभ है वहाँ कुछ और हो ही कैसे सकता है? उन्हें यदि एक भी देश दिखाई देता है, तो वह उसी तरह उस पर टूट पड़ते हैं जिस तरह चील और‌ कौवे मांस पर टूटते है। यह सब उनके कारखानों के ही कारण होता है, यह मानने के लिए‌ हमारे पास कारण है।

अन्त में भारत को स्वराज्य मिले, यह समस्त भारतवासियों की पुकार है और यह उचित ही [ ७१ ]है: परन्तु स्वराज्य हमें नीति मार्ग से प्राप्त करना है। वह नाम का नहीं, वास्तविक स्वराज्य होना चाहिए। ऐसा स्वराज्य नाशकारी उपायों में नहीं मिल सकता। उद्योग की आवश्यकता है; पर उद्योग सच्चे रास्ते से होना चाहिए। भारतभूमि एक दिन स्वर्णभूमि कहलाती थी, इसलिए कि भारतवासी स्वर्णरूप थे। भूमि तो वही है; पर आदमी बदल गये हैं, इसलिए वह भूमि उजाड़-सी हो गई है। इसे पुनः सुवर्ण बनाने के लिए हमें सद्गुणों द्वारा स्वर्ण-रूप बनाना है। हमें स्वर्ण बनानेवाला पारसमणि दो अक्षरों में अन्तर्निहित है और वह है 'सत्य'। इसलिए यदि प्रत्येक भारतवासी 'सत्य' का ही आग्रह करेगा तो भारत को घर बैठे स्वराज्य मिल जायेगा। [ विज्ञापन ] 

‘लोक साहित्य माला’ की पुस्तकें
१-गाँव की कहानी (स्व॰ गौड़जी) ॥)
२-महाभारत के पात्र-१ (नानाभाई) ॥)
३-संतवाणी (वियोगी हरि) (वियोगी हरि) ॥)
४-अँग्रेजी राज्य मे हमारी दशा (डा॰ अहमद) ॥)
५-लोक-जीवन (काका कालेलकर) ॥)
६-राजनीति प्रवेशिका (हेरल्ड लास्की) ॥)
७-अधिकार और कर्त्तव्य (कृष्णचन्द्र) ॥)
८-सुगम चिकित्सा (चतुरसेन शास्त्री) ॥)
९-महाभारत के पात्र-२ (नानाभाई) ॥)
१०-पिता के पत्र पुत्री के नाम (ज॰ नेहरू) ॥)


‘नवजीवन माला’ की पुस्तकें
१-गीतावोध (गाँधीजी) –)॥
२-मंगल प्रभात " –)॥
३-अनासक्तियोग (गाँधीजी) =)
" श्लोक सहित=) सजिल्द ।)
४-सर्वोदय (गाँधीजी) –)
५-नवयुवको से दो बाते (क्रोपाटकिन) –)
६-हिन्द स्वराज्य (गाँधीजी) =)
[  ]
७-अनुदानकी माया (आनन्द कोगल्याचन) ↗)
८-किसानों का सवाल (डा॰ अहमद) ⇗)
९-ग्राम सेवा (गाँधीजी) ↗)
१०-खादी-गाडी की लडाई (विनोवा) ⇗)
११-मधुमक्यखी पालन (शां॰ मो॰ चित्रं॰) ⇗)
१२-गाँवाे का आर्थिक सवाल ।)
 

आगे होनेवाले प्रकाशन
१-जीवन शोधन—किशोरलाल मास्वाला
२-समाजबाद पुँजीवाद—
३-फेमिन्टवाद
४-नया शासन विधान—(फेडरेशन)
४-ब्रह्मचर्य (गाँधीजी)
६-हमारी आजादी की लड़ाई (दो भाग)
७-सरल विज्ञान—१ (चन्द्रगुप्ता वार्प्णच)
८-संसार की शासन पद्धतियाँ (रामचन्द्र वर्मा)
९-हमारे गाँव (चौ॰ मुख्तार सिंह)
१०-गाँधी साहित्य माला—(इसमें गांधीजी के
[  ] १६-समयिक साहित्य माला-सामयिक समस्याओ पर मान्य नेताओ की लिखी छोटी-छोटी पुस्तके
चुने हुए लेखो का संग्रह होगा—इस माला मे २० पुस्तके निकलेगी। प्रत्येक का दाम ॥) होगा। पृष्ठ संख्या २००-२५०
११-टाल्स्टाय ग्रन्थावलि—(टाल्स्टाय के चुने हुए निवन्धो, लेखो और कहानियों का संग्रह। प्रत्येक का मूल्य॥)।
१२-चाल साहित्य माला—(वालोपयोगी पुस्तके)
१३-लोक साहित्य माला—(इसमे भिन्न-भिन्न विषयो पर २०० पुस्तके निकलेगी। प्रत्येक का दाम ॥)।
१४-नवराष्ट्र माला—इसमे संसार के प्रत्येक स्वतन्त्र राष्ट्रनिर्मातओ और राष्ट्रों का परिचय होगा। पुस्तके सचित्र होगी। प्रत्येक का भू° ।।।) होगा।
१५-नवजीवनमाला—छोटी-छोटी नवजीवनदायी पुस्तके।

  1. इस नाम का गुजराती-अंग्रेजी साप्ताहिक पत्र महात्माजी ने दक्षिण अफ्रिका में रहते समय डरबन से निकाला था। अब भी यह निकल रहा है।
  2. सन् १९१४ में महासमर की आग लगने पर यह भविष्यवाणी सत्य प्रमाणित हो चुकी है।