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साहित्य सीकर/१७—चीन के अखबार

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प्रयाग: तरुण भारत ग्रंथावली, पृष्ठ १२३ से – १२६ तक

 
१७-चीन के अख़बार

जिस देश में जितने अधिक समाचार-पत्र होते हैं वह उतनी ही अधिक उन्नत अवस्था में समझा जाता है। यदि इस विचार से देखा जाय तो मानना पड़ेगा कि चीन दिन पर दिन अधिकाधिक उन्नति करता जाता है। सात वर्ष पहले यहाँ चीनियों का एक भी अखबार न था। परन्तु आज चीन में दो सौ से अधिक ऐसे अखबार निकलते हैं जिनके स्वामी, सम्पादक और प्रबन्धकर्त्ता चीनी ही हैं। पेकिन महानगरी में एक ऐसा दैनिक पत्र है जिसका सम्पादन और प्रबन्ध केवल स्त्रियाँ ही करती हैं। इस पत्र का उद्देश्य स्त्रियों की दशा सुधारना है। चीन की गवर्नमेंट भी पत्रों के ग्राहक बढ़ाने और मूल्य इकट्ठा करने में खास-खास अखबार वालों को मदद देती है। प्रान्तिक शासन-कर्त्ता भी इस काम में उनकी सहायता करते हैं। मंचूरिया के राज-प्रतिनिधि ने मकदन नगर के चौक में एक बड़ी भारी इमारत बनवाई है। वहाँ पर एक विद्वान् मुख्य-मुख्य समाचार-पत्रों को पढ़ कर सर्वसाधारण लोगों को नित्य सुनाता है। पेकिन में भी कई पढ़े-लिखे आदमी गली-गली अखबारों को ज़ोर-ज़ोर से पढ़ते फिरते हैं। इस प्रकार निरक्षर मनुष्यों को भी देश की दशा और संसार की मुख्य-मुख्य घटनाओं का ज्ञान हो जाता है।

चीनी अखबार दो तरह के होते हैं। एक तो वे जो अत्यन्त पतले कागज़ पर एक ही तरफ छापे जाते हैं। दूसरे वे जो दोनों तरफ छपते हैं और जिनका कागज़ भी मोटा होता है। दूसरे प्रकार के अखबारों को लोग अधिक पसन्द करते हैं। इन पत्रों में विदेशी तार-समाचारों की अच्छी भरमार रहती है। इसके सिवा भिन्न-भिन्न विषयों पर सम्पादकीय लेख भी रहते हैं।

चीन अत्यन्त संरक्षणशील देश है। पर आजकल वहाँ बड़ी शीघ्रता से परिवर्तन हो रहा है। यह बात अखबारों के लेखों की अपेक्षा विज्ञापनों से अधिक प्रकट होती है। एक उदाहरण लीजिये। अब तक चीन देशवासी पृथिवी को चिपटी मानते थे। परन्तु अब चीनी समाचार-पत्रों में वर्तुलाकार पृथिवी के (Globes) के विज्ञापन बहुत छपते हैं। इसी प्रकार अन्य सैकड़ों प्रकार की यूरोपियन चीज़ों के विज्ञापन, ठेठ चीनी अखबारों में धड़ाधड़ प्रकाशित होते हैं।

किसी-किसी अखबार में चीनी भाषा के साथ साथ अंग्रेज़ी के भी कई कालम रहते हैं। वहाँ अँगरेजी भाषा का प्रचार दिन पर दिन बढ़ता जाता है। अँगरेजी में तार-समाचारों के सिवा शिक्षा, राजनीति और समाज सुधार-सम्बन्धी लेख भी रहते हैं। इससे मालूम होता है कि चीन देशवासी अब जाग उठे हैं और समझने लगे हैं कि हमारी क्या दशा है और हमें क्या करना चाहिये।

उन्नति की इच्छा रखने वाली अन्य जातियों की तरह चीनी जाति के शिक्षित युवक भी अपने देशवासियों को जगाने का प्रयत्न कर रहे हैं। हम लोगों के इस उद्देश की पूर्त्ति करने वाले कई पत्र निकलते हैं। यद्यपि सर्वसाधारण लोग इन पत्रों को बहुत पसन्द करते हैं, तथापि राजकर्मचारी और विदेशी लोगों की कोप-दृष्टि इन पर अकसर पड़ा करती है। तिस पर भी इस प्रकार पत्र दिन-दिन उन्नति करते जाते हैं।

अखबार वाले अपनी स्वतन्त्रता-प्राप्ति के लिये बड़ा आन्दोलन कर रहे हैं। इसके सिवा वे लोग डाक और तार का महसूल भी कम करना चाहते हैं। और सरकारी कारवाइयों को प्रकाशित करने तथा बिना विचार के जेल में ठूँस न दिये जाने का अधिकार भी चाहते हैं। परन्तु गवर्नमेंट उनकी इन प्रार्थनाओं पर ध्यान नहीं देती और उनको अपने पञ्जे में दबाये रखना चाहती है। बड़ी लज्जा की बात है। कि पूर्वोक्त अधिकारों से केवल चीनी-पत्र ही वञ्चित रक्खे जाते हैं, विदेशी लोगों के पत्र स्वच्छन्दतापूर्वक उनका उपभोग कहते हैं। चीनी गवर्नमेंट ने अखबारों के लिए एक नया कानून बनाया है। उसकी रू से पत्रों के प्रकाशक, सम्पादक और मुद्रक वही हो सकते हैं जिनकी अवस्था बीस वर्ष से अधिक हो, होश हवाश दुरुस्त हों और सजायाफ़्ता न हों। अङ्कशास्त्र, चित्रकारी और शिक्षा-सम्बन्धी पत्रों को छोड़कर प्रत्येक पत्र के लिए उसके सञ्चालकों को सवा दो रुपये की जमानत देनी पड़ती है। प्रत्येक अङ्क की एक कापी स्थानिक मैजिस्ट्रेट के पास और दूसरी पेकिन के किसी उच्च राज-कर्मचारी के पास भेजी जाती हैं।

जो पत्र सरकारी गुप्त भेदों को प्रकाशित करते हैं उन्हें बड़ी कड़ी सजा दी जाती है। राज-विरुद्ध, शान्ति-भंगकारी अथवा रस्म-रिवाज के विरुद्ध लेख लिखने वालों को छः महीने से लेकर दो वर्ष तक का जेल दिया जाता है। राजनैतिक दाँव पेंच की बातें प्रकाशित करनेवाले पत्र कभी-कभी कुछ दिन के लिए बन्द भी कर दिये जाते हैं।

पत्र सम्बन्धी कानून पर बड़ी सख्ती से अमल किया जाता है। कुछ दिन हुए टांकाई नामक एक विख्यात अखबार वाले ने किसी राज-विद्रोही पत्र से एक लेख अपने पत्र में उद्धृत किया। फिर क्या था, अधिकारी-गण क्रोध से अन्धे हो गये। उन लोगों ने झट सिंग महाशय को गिरफ़्तार किया और बिना विचार के जेल में ठूँस दिया। इसी तरह पिछले साल एक अखबार वाले के इतने बेंत लगाये गये कि वह मर ही गया। कुछ समय से चीनी गवर्नमेंट अपने पत्र अलग निकालने और विदेशी पत्रों पर प्रभाव जमाने की चेष्टा कर रही है। यह बात वह इसलिए करती है जिसमें अन्य जातियों से झगड़ा होने पर उसका पक्ष प्रबल रहे। पर उसकी यह चेष्टा व्यर्थ और अनुचित है। इस तरह उसके उद्देश की सिद्धि नहीं हो सकती। बेहतर है कि वह चीनी अखबारों को काफी स्वाधीनता प्रदान करे। क्योंकि जब तक चीनी अखबार स्वतन्त्र और प्रबल न होंगे तब तक चीन की पूरी उन्नति न होगी।

यद्यपि चीनी अखबार अभी बाल्यावस्था ही में है तथापि उन्होंने थोड़े ही दिनों में बहुत कुछ उन्नति कर ली है और उनका बल बराबर बढ़ता जाता है। इससे विदेशियों के हृदय में वे काँटे की तरह चुभने लगे। जो हो एक उठती हुई जाति के प्रबल-वेगवाही आकांक्षा-स्रोत को कोई रोक नहीं सकता।

[अप्रैल, १९०९