साहित्य सीकर/१८—विलायत का टाइम्स नामक प्रसिद्ध समाचार पत्र

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१८—विलायत का "टाइम्स" नामक प्रसिद्ध समाचार-पत्र

आज हम, इस लेख में, विलायत के सबसे अधिक प्रभुत्वशाली और विख्यात पत्र टाइम्स के विषय में कुछ लिखने का साहस कर रहे हैं। जिस सामग्री के आधार पर हम यह लेख लिखने जा रहें हैं वह पुरानी है। अतएव, सम्भव है; इसकी कुछ बातें आज वैसी ही न हों जैसी कि इसमें लिखी गई हैं। तथापि, आशा है, फिर भी पाठकों का कुछ न कुछ मनोरञ्जन और ज्ञानवर्द्धन इससे अवश्य ही होगा।

इस युग में समाचार-पत्र संसार की एक बड़ी प्रबल शक्ति है। समाचार-पत्रों का वैभव और महत्व पाश्चात्य देशों में ही देखने को मिलता है, भारत में तो अभी उनका बाल्यकाल ही है। जहाँ एक-एक पत्र के तीस-तीस चालीस-चालीस हजार ग्राहक हो जाना तो एक सामान्य सी बात है। वहाँ अनेक ऐसे पत्र हैं जिनकी ग्राहक-संख्या लाखों तक पहुँची है। भारतीय सम्पादकों और लेखकों की तरह पाश्चात्य देशों के संपादकों और लेखकों से लक्ष्मीजी की शत्रुता नहीं। वहाँ ऐसे मनुष्यों की संख्या बहुत बड़ी है जो केवल लेख लिखकर अथवा संवाददाता होकर या समाचार-पत्र के लिये सामग्री देकर कार्य चलाते हैं। सेंट निहालसिंह के लेख पाठकों ने पढ़े होंगे। आप भारतवासी हैं। आप पहले अमेरिका में थे। अब कुछ समय से आप विलायत की राजधानी लन्दन में विराजमान हैं। आप नामी लेखक हैं। समाचार पत्रों और सामयिक पुस्तकों में लेख लिखकर ही आपने [ १२८ ]ख्याति पाई है। आपके लेख भारत ही के नहीं, योरप और अमेरिका के भी समाचार पत्रों में निकला करते हैं। लेख लिखना ही आपका व्यवसाय है। उससे आपकी आमदनी भी बहुत काफी होती होगी। जब एक विदेशी मनुष्य विलायत में इस व्यवसाय से जीवकोपार्जन कर सकता है तब वहीं के रहने वाले सुयोग्य लेखकों की आमदनी का तो कहना ही क्या है। विलायत के प्रायः सभी निवासी समाचार पत्र पढ़ने का शौक रखते हैं। वहाँ किसी समाचार-पत्र की एक कापी से दस-बीस आदमियों का काम नहीं निकलता। जूतों में टाँके लगाने वाला मोची भी, फुरसत के वक्त, ताजा देनिक परचा खरीदता और पढ़ता है। इन्हीं कारणों से योरप और अमेरिका के छोटे छोटे देशों और प्रदेशों तक में समाचार-पत्रों की संख्या सैकड़ों हज़ार तक पहुँचती हैं। योरप के एक बहुत ही छोटे से देश, स्वीटजरलेंड ही में, छः सौ से अधिक समाचार पत्र हैं। इस समय ग्रेट ब्रिटेन, अर्थात् अँगरेजों की विलायत में, तीन हजार से भी अधिक समाचार-पत्र निकल रहे हैं। वहाँ के पत्रों में "टाइम्स" सब से अधिक प्रभावशाली समझा जाता है। उसी का कुछ हाल नीचे दिया जाता है:—

१७८५ ईसवी की पहली जनवरी को इस पत्र का जन्म हुआ। इसके जन्मदाता का नाम था जान वाल्टर। पहले इस पत्र का नाम था—दि लंदन डेली यूनीवरसल रजिस्टर (The London Daily Universal Register) उत्पत्ति के तीन वर्ष बाद इसका नाम "टाइम्स" पड़ा। टाइम्स का संचालक जान वाल्टर एक स्वतन्त्र प्रकृति का मनुष्य था। वह अपने पत्र का संपादन भी बड़ी स्वतंत्रता और निर्भीकता से करता था। वह कुछ तत्कालीन राजपुरुषों के दुराचार न देख सका। अतएव वह उसके कारनामों को अपने पत्र में प्रकाशित करने लगा। फल यह [ १२९ ]हुआ कि उसे दो वर्ष के भीतर तीन दफे जुर्माना देना पड़ा। यही नहीं, उसे जेल की हवा खानी पड़ी। १८०३ ईसवी में उसने टाइम्स का प्रबन्ध अपने द्वितीय पुत्र जान वाल्टर के हाथों में सौंप दिया। पुत्र ने अपने पत्र की विशेष उन्नति की। वह अपने पिता से भी अधिक स्वतंत्रता प्रेमी निकला। उसने तत्कालीन मंत्रि-मंडल के कामों की बड़ी ही तीव्र आलोचना की इस कारण टाइम्स में जो गवर्नमेंट के विज्ञापन छपते थे उनका दिया जाना बन्द हो गया। कहा तो यह भी जाता है कि शासक-दल ने टाइम्स के साथ यहाँ तक सलूक किया कि विदेशों से आनेवाले उसके समाचार बन्दरों ही पर रोक लिये जाने लगे। परन्तु द्वितीय जान वाल्टर इन बातों से जरा भी विचलित न हुआ। उसने विदेशी समाचार मँगाने का दूसरा किन्तु पहले से भी अच्छा, प्रबन्ध कर लिया। १८१४ ईसवी में उसने छापने की कलों में भी ऐसा सुधार कर लिया कि एक घण्टे में टाइम्स की ग्यारह सौ कापियाँ निकलने लगी। उस समय तक इतना तेज चलनेवाला और इतना अधिक काम देनेवाला और कोई प्रेस कहीं अन्यत्र न था। टाइम्स के सम्पादकीय विभाग में भी उन्नति की गई। पत्र का आकार, लेखों की संख्या और उनकी उत्तमता बढ़ गई। यह सब हो जाने पर ग्राहक-संख्या में भी अच्छी वृद्धि हुई। १८१५ में काई पाँच हज़ार ग्राहक थे। १८३४ में वे दस हज़ार हो गये, १८४८ में १८,३०००; १८२४ में २३,०००; १८५१ में ४०,००० और १८४४ में ५१,०००।

१८५० ईसवी के बाद टाइम्स की उन्नति बड़े वेग से होने लगी। उस समय उसके मालिकों को यह चिन्ता हुई कि छापने की कलों में और ऐसे सुधार होने चाहिये जिससे और भी कम समय में अधिक कापियाँ छप सकें। इस पर, १८४६ ईसवी में, टाइम्स के कार्यालय के एक कर्मचारी ने एक ऐसी युक्ति निकाली जिससे दोनों तरफ एक ही साथ कागज छपने लगा। १८६९ में एक और भी सुधार हुआ। [ १३० ]टाइम्स के मालिकों ने "वाल्टर" प्रेस की आविष्कार किया। तब टाइम्स की बारह हज़ार कापियाँ एक घण्टे में छपने लगीं। १८९५ में हो-नामक एक साहब के बनाये हुये प्रेस काम में आने लगे। उन प्रेसो ने छापेखाने के व्यवसाय में अभुतपूर्व हलचल पैदा कर दी। उन्होंने संसार को चकित-सा कर दिया। उनकी बदौलत एक ही घंटे में छत्तीस हजार कापियाँ निकलने लगीं। इतना ही नहीं, प्रेस की मशीन से एक कल ऐसी भी लगा दी गई जो छपे हुये कागजों को साथ ही साथ पुस्तक का रूप देकर उनकी सिलाई भी कर देने लगी।

टाइप कम्पोज करने में बहुत समय लगता था। १८७९ ईसवी में यह कठिनता या त्रुटि भी दूर कर दी गई। टाइम्स के कार्यालय के जर्मनी-निवासी एक कारीगर ने एक ऐसी कल ईज़ाद कर दी जो एक घंटे में टाइम्स पत्र की २९८ सतरें वा १६,३८८ भिन्न-भिन्न प्रकार के टाइप कम्पोज करने लगी। इस कल को टाइम्स के मालिकों ने उस कारीगर से मोल ले लिया।

पारलियामेंट की कामन्स सभा की वक्तृताओं को सर्वसाधारण के पास तक सबसे पहले पहुँचाने का भी प्रबन्ध किया गया। १८८५ ईसवी में पारलियामेंट के भवन से लेकर टाइम्स के कार्यालय तक टेलीफोन लग गया। उधर पारलियामेंट में वक्तृतायें होती थीं, इधर टाइम्स के कार्य्यालय में कम्पोजीटर लोग मैशीन द्वारा उन्हें कम्पोज करते जाते थे। इसके कुछ काल बाद पारलियामेंट का काम आधी रात से आरम्भ होने लगा। तब से टेलीफोन की जरूरत न रही। संवाददाताओं ही के द्वारा प्राप्त हुई वक्तृताओं की नकल छाप दी जाने लगी।

टाइप कम्पोज करनेवाली मैशीनों के कारण समय की बड़ी बचत हुई परन्तु छापने के बाद टाइपों के निकालने और उन्हें उनके [ १३१ ]भिन्न-भिन्न स्थानों में रखने में बहुत समय व्यय होता था। पूर्वोक्त जर्मन कारीगर ने एक कल और तैयार की जो टाइपों को निकाल-निकालकर उनके निश्चित स्थानों में पहुँचा देती थी। परंतु इस कल से आशाजनक सफलता न हुई। इसी बीच में विक्स नाम के एक साहब ने टाइप ढालने की एक कल ऐसी तैयार की थी जो टाइपों को बहुत शीघ्र और साथ ही पुराने टाइपों से बहुत उम्दा और थोड़े ही खर्च में ढाल देती थी। १८९९ ई॰ में यह लाइनों टाइप (Lino type) मैशीन तैयार हुई। टाइम्स के मालिकों ने विक्स साहब को अपने लिये टाइप ढालने का ठेका दे दिया। आज-कल टाइम्स के कार्य्यालय में जो टाइप एक बार काम में आ जाता है उससे फिर काम नहीं लिया जाता। वह गला डाला जाता है। मैशीन-द्वारा टाइप आप ही ढलते और मैटर कम्पोज होता जाता है।

१९०४-०५ में रूस-जापान-युद्ध हुआ था। उस समय युद्ध समाचार पाने के लिए टाइम्स के मालिकों ने अपने कार्य्यालय से युद्ध-स्थल के एक जहाज़ तक बेतार का तार लगा दिया था। इस अभूतपूर्व प्रबन्ध-कुशलता की जितनी तारीफ की जाय कम है।

टाइम्स में विज्ञापनों की भरमार रहती है। ज्यों-ज्यों उसकी ख्याति बढ़ती गई त्यों-त्यों विज्ञापनों की संख्या में भी वृद्धि होती गई। विज्ञापनों से टाइम्स को आमदनी भी बहुत होती है। टाइम्स में बड़े आकार के बीस पच्चीस पृष्ठ रहते हैं। यह पृष्ठ संख्या कभी-कभी अधिक भी हो जाती है। साम्राज्य दिन (Empireday) पर टाइम्स के अङ्क का आकार बहुत बढ़ जाता है। उसका वह अङ्क कभी-कभी ७२ पृष्ठों का निकलता है।

समाचारों की सत्यता, साहित्य-सम्बन्धिनी चर्चा और गवेषण-पूर्ण लेखों की महत्ता के लिये टाइम्स बहुत प्रसिद्ध है। उसके लेखक [ १३२ ]योग्य—बहुत योग्य—और विद्वान् होते हैं। उनमें एक खास बात पाई जाती है। वे लोग प्रायः अपना नाम गुप्त रखते हैं। अथवा वे किसी काल्पनिक नाम से लेख देते हैं। उसके संवाददाताओं की संख्या भी बहुत अधिक है। उनकी संख्या सैकड़ों है। विदेश के बड़े-बड़े नगरों में सर्वत्र उसके संवाददाता रहते हैं। टाइम्स के प्रचाराधिक्य और उसकी उन्नति का एक कारण यह भी है कि कोई और किसी श्रेणी का मनुष्य अपनी शिकायत लिख भेजे, तथ्यांश होने पर, टाइम्स उसे बहुत करके बिना छापे नहीं रहता। समाचार मंगाने का प्रबन्ध जितना अच्छा टाइम्स का है उतना और किसी भी पत्र का नहीं।

टाइस के समाचारों की सत्यता के विषय में एक घटना उल्लेख योग्य है। १८४० ईसवी में टाइम्स के एक संवाददाता ने पेरिस से यह समाचार भेजा कि जालसाजों के एक बड़े भारी दल ने जाली हुण्डियाँ बनाई हैं और वे शीघ्र ही एक दिन योरप के बड़े-बड़े बैंकों में पेश की जायँगी। टाइम्स ने सारी जिम्मेदारी अपने ऊपर लेकर इस समाचार को, कुछ जालसाजों के नाम सहित, प्रकाशित कर दिया। समाचार सत्य निकला। फल यह हुआ कि कितने ही बैंक ठगे जाने से बच गये। एक आदमी ने, जो जालसाजों के दल का बताया गया था, टाइम्स के ऊपर मान हानि की नालिश ठोंक दी। अभियोग बहुत दिनों तक चला। अंत में टाइम्स ही की जीत हुई। परन्तु पचहत्तर हज़ार रुपया मुकद्दमें बाजी में स्वाहा हो गया। इस पर ग्राहकों ने टाइम्स की सहायता के लिए चन्दा किया; परंतु उसके स्वाभिमानी मालिकों ने चन्दे की रक़म लेना नामंजूर कर दिया और जो रुपया चन्दे से एकत्र हुआ था उसे उन्होंने एक स्कूल को दान कर दिया।

सर्व-साधारण की सेवा करते हुये टाइम्स को और भी कई बार आर्थिक हानि उठानी पड़ी है। उन्नीसवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध के अन्त [ १३३ ]में इँगलैंड में बहुत सी ऐसी रेलवे कम्पनियाँ खड़ी हुईं जो थोड़े ही दिन चल कर टूट गईं। इन कम्पनियों के नाम पर धूर्त लोग सर्वसाधारण को खूब ठगते थे। १८४५ ईसवी में टाइम्स ने इन धूर्तों के विरुद्ध घोर आन्दोलन किया। फल यह हुआ कि टाइम्स को उन विज्ञापनों के न मिलने से बड़ी आर्थिक हानि उठानी पड़ी जो उन कम्पनियों की ओर से उसमें छपते थे। परन्तु उसकी तो हानि हुई, जन-साधारण को बहुत लाभ पहुँचा। लोग ठगे जाने से बच गये।

यद्यपि विदेश में टाइम्स के स्वतन्त्र संवाददाताओं की कमी नहीं, तथापि रूटर की संवाददायिनी एजेन्टों से भी उसका गहरा सम्बन्ध है। इस एजेन्सी के जन्मदाता का नाम जूलियट रूटर था। १८४९ ई॰ में उसने इस एजेन्सी की स्थापना पेरिस में की थी। पेरिस और बर्लिन के बीच में तार लगा था। इसलिये इन दोनों स्थानों के समाचार तार द्वारा आते थे। फ्रांस और जर्मनी के अन्य स्थानों और बड़े-बड़े नगरों से समाचार मँगाने का काम कबूतरों से लिया जाता था। ज्यों-ज्यों तार का प्रचार बढ़ता गया त्यों त्यों एजेन्सी भी अपना काम बढ़ाती गई। उनसे टाइम्स का सम्बन्ध १८५० ईसवी में हुआ था।

टाइम्स के दैनिक संस्करण के अतिरिक्त और भी कई संस्करण निकलते हैं! सप्ताह में तीन बार निकलने वाले संस्करण का नाम "मेल" (Mail) है। १८७७ ईसवी से एक साप्ताहिक संस्करण भी निकलता है। १८८४ ईसवी में कानूनी बातों की आलोचना के लिये "ला रिपोर्टस" (Law Reports) का जन्म हुआ। "कमर्शल केसेज" (Commercial Cases) वाणिज्य-व्यवसाय की चर्चा रहती है। १८९७ में साहित्य-सम्बन्धी विषयों की विवेचना के लिये टाइम्स के "लिटरेचर" (Literature) अर्थात् साहित्य नाम के एक [ १३४ ]साप्ताहिक संस्करण का जन्म हुआ था। पर वह पत्र शायद औरों को दे दिया गया है। उसके स्थान में दैनिक टाइम्स के वृहस्पतिवार के अङ्क के साथ एक साहित्य-सम्बन्धी क्रोड़-पत्र निकलता है। इस क्रोड़-पत्र से अँगरेजी साहित्य का बड़ा उपकार हुआ है। लोगों ने इसे बहुत पसन्द किया है। १९०४ से दैनिक टाइम्स में व्यापार सम्बन्धी (Financial and Commercial Supplement), १९०५ में भवन-निर्माण-सम्बन्धी (Engineering Supplement) और १९१० से स्त्रियों के लिये (Women's Supplement) नामक क्रोड़पत्र भी सप्ताह में एक-एक बार निकलते हैं।

टाइम्स का पुस्तकालय बहुत विशाल है। उसके कार्यालय से बहुत सी अप्राप्य और अमूल्य पुस्तकें भी समय पर प्रकाशित होती रहती हैं। अँगरेजी विश्वकोश (Encyclopedia Britanica) के पिछले संस्करण वहीं से निकले हैं। मूल्य भी उसका बहुत कम रक्खा गया है। जर्मनी के प्रसिद्ध राजनीतिक विस्मार्क का गुप्त जीवन चरित, दक्षिणी अफ्रीका के युद्ध सम्बन्धी ग्रन्थ और रूस जापान के युद्ध का इतिहास आदि भी टाइम्स ही के कार्य्यालय से प्रकाशित हुये हैं, और भी अनेक अनमोल ग्रंथ उसकी बदौलत सर्व-साधारण को पढ़ने को मिले हैं। ग्रन्थों का प्रकाशन-कार्य्य उसने अब तक बराबर जारी रक्खा है।

[अगस्त, १९२६