सौ अजान और एक सुजान/शब्दार्थ-सूची

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सौ अजान और एक सुजान  (1944) 
द्वारा बालकृष्ण भट्ट
[ १२५ ]

टिप्पणी-सहित कठिन-शब्दार्थ-सूची

सांकेतिक शब्द—(सं॰ से संस्कृत। अलं॰ से अलंकार। अ॰ से अरबी। फ़ा॰ से फ़ारसी। अँग॰ से अँगरेज़ी।)

पहला प्रस्ताव

खोटा—(सं॰ क्षुद्र) दुष्ट।
तातो—(सं॰ तप्त) जलता
हुआ, गरम।
दुर्व्यसनी—बुरा शौक़ करने-
वाला; फ़िज़ूल-ख़र्च;
अपव्ययी।
"दुर्व्यसनी……लगे हैं"—
यहाँ पर उपमा अलंकार है।
"मानो प्रकृतिदेवी……
चाहती है"—इसमें उत्प्रेक्षा
अलंकार है।
प्रेयसी—प्यारी, प्रियतमा।
"मानो हँस-सा रहे हैं"—
उत्प्रेक्षा अलं॰।
"जिसकी सम-विषम……
व्याप रही है"—उपमा
अलं॰।
सम-विषम भू-भाग—ऊबड़-
खाबड़ धरती।

वितान—चँदवा।
"मानो वितान रूप……
दिया गया है।"…उत्प्रेक्षा
अलं॰।
"मालूम होता है……होड़
लगाए हुए हैं"—उत्प्रेक्षा
अलं॰।
होड़—स्पर्धा।
"मोती-से चमकते……
उपहार बन रहे हैं"—
समासोक्ति अलं॰।
निशानाथ—(निशा=रात,
नाथ=स्वामी) ; चंद्रमा।
निशा-वधूटी—रात्रिरूपी नव
(नई) वधू (बहू)।
"चाँदनी……धरती"—
अपहृुति अलं॰।
"यहाँ कन्या……प्रस्तुत
है"—समासोक्ति अलं॰।

[ १२६ ]

कचलपटी—(सं॰ कछ-
लंपटता)—आवारगी।
छिछोरपन—क्षुद्रता; नीचता।
आय—(पुरानी हिंदी के
'आसना' 'आहना' [होना]
क्रिया का पूर्वकालिक।
रूप; शुद्ध शब्द 'आहि'
है। प्रायः भट्टजी ने पुरानी

हिंदी के अनुसार धातुओं का
पूर्वकालिक रूप ऐसा ही
लिखा है। अन्य स्थानों में
भी जैसे "पकड़ाय", "बुलाय"
इसी तरह से समझना
चाहिए) आकर।
सोवत हैं—सोते हैं (प्रयाग के
आस-पास की यही भाषा है)।

दूसरा प्रस्ताव

जलप्राय-जलमय, वह प्रदेश । बहुश्रुत-( बहु - बहुत ; या स्थान, जहॉ जल अधिकता श्रुत% सुना हुआ या शास्त्र) से हो। जिसने बहुत सुना हो, अर्थात् हरित - तृण-आच्छादित विद्वान्, पंडित। हरी-हरी घास से ढकी हुई। ग्रथ-चुबक-( ग्रंथ = पुस्तक; मरकतमई-सी-मानो पन्ने चुंबक = चूमनेवाला) जो (एक प्रकार का हरा मणि) किसी विषय का पूर्ण विद्वान् से जडी। न हो, वरन् ग्रंथो का केवल बॉकुरे-बंक, बाँका (यह पाठ-मात्र कर गया हो, उसके शब्द प्रायः वीर शब्द के साथ विषय को समझा न हो। श्राता है, जैसे “वीर अल्पज्ञ। बाँकुरे")। साक्षर-मात्र-जो थोडा भी पुण्यतोया-पवित्र जलवाली। पढा-लिखा हो। सरिद्वरा-नदियो में श्रेष्ठ । वृत्ति-दान। अनुशीलन-अभ्यास, अध्य वेदरेग-विना सोचे-समझे। यन। वेजा-अनुचित । [ १२७ ]१२६ सौ श्रजान और एक सुजान जनखा-( फ्रा० - शब्द ) | नितांत-श्रत्यंत । हिजड़ा, नपुंसक। स्फूर्ति-प्रकाश, प्रतिभा । सुमिरनी-जपने की २७ दानों नवनता-नम्रता। की माला। तीसरा प्रस्ताव विद्वन्मंडली • मंडनशिरो- । मानसिक-मन-संबंधी। । मणि-विद्वानों के समूह में । मोतकिद-कायल । सवश्रेष्ठ । "शांति और क्षमा...कुसु- दुरूह-कठिन। | · मौकर"-इसमें रूपक अलं- अनुपपन्न-असमर्थ। कारों की लडी की लड़ी है। गुजरान-(फ्रा० - शब्द ) | तृष्णालता गहन 'वन- व्यतीत, जीविका-निर्वाहार्थ।। लोभरूपी लताओं का धना श्रुताध्ययनसंपन्न-विद्वान् । जंगल। सवृत्त-अच्छा चरित्रवाला, अज्ञानतिमिर-मूर्खतारूपी सदाचारी। अंधकार। लिलार-(सं० ललाट) सहस्रांशु-( सहस्र = हज़ार; मस्तक, माथा । अंशु-किरण ) हजार दामिनि-(सं० दामिनी) किरणवाला; सूर्य । बिजुली। दुराग्रह-किसी बात पर आर्ष-ऋषियों का बनाया हुश्रा। मूर्खता के साथ हठ करना। संथा-पाठ । कूरग्रह-पापग्रह (सितारे); भासतीथी-मालूम होता था। शनिश्चर, राहु, केतु आदि । मनमानस-मनरूपी मान अस्ताचल-(अस्त = डूबना; सरोवर; रूपक अलंकार। छिपना । अचल = जो न कायिक-शरीर-संबंधी। चले; पर्वत या पहाड ) पुराने [ १२८ ]१२७ टिप्पणी-सहित कठिन-शब्दार्थ-सूची सिद्धांत के अनुसार जहाँ सूर्य, सौजन्य - सुमन-साधुतारूपी चंद्रमा श्रादि ग्रह अस्त फूल। (छिप) हो जाते हैं। कुसुमाकर-वसंत; वाटिका । उदयगिरि-वह पर्वत, जहाँ रीझ गए-प्रसन्न हो गए। 'से सूर्य आदि ग्रह उदय पट्टशिष्य-मुख्य शिष्य । होते है। अनुहार-समानता। उपशम-शांति । वाक्पाटव-बोलने में चतुराई। चौथा प्रस्ताव बेइंतिहा-असंख्य । जहाँ दो चीज़ों के बीच से कार्य आकृति-शकल, सूरत। और कारण का संबंध होता है। "मानो . ...महीने हैं अंक-चिह्न; चंद्रमा में कलंक । यहाँ उत्प्रेक्षा अलंकारों की सामुद्रिकशास्त्र-ज्योतिषशास्त्र एक लडी है, जिसमें रूपक का एक अंग, जिससे हस्त-रेखा अलंकार भी गौण रूप से । आदि का विचार किया विद्यमान है। जाता है। . थैसुधात सागर पुण्य का सामुद । समाय सकेसमा सके (इस बीजांकुर -न्याय-बीज और तरह का रूप भी भट्टजी की अंकुर में जो परस्पर में संबध हिंदी की खास विशेषता है। है, उसी को देखकर इस न्याय इसी तरह से "जाय सके", की उत्पत्ति हुई है, अर्थात् "खाय सके" इत्यादि)। बीज अंकुर का कारण है, उसी लल्लोपत्तो-चापलूसी, खुशा- तरह से अंकुर भी बीज का भद। कारण है। यह न्याय ,ऐसे खुचुर-(सं० कुचर ) व्यर्थ स्थान पर व्यवहार होता है, का दोष निकालना । [ १२९ ]- १२८ सौ अजान और एक सुजान खसूसियत-विशेषता।।। शिकार ) अमीरों का शिकार खार खाते हैं-डाह करते है। करनेवाला। जब एक अमीर अल्हड़पन-अक्खडपन, बेपर के लडके को बिगाड़ चुके, तब वाही। दूसरे, फिर तीसरे, इसी तरह दर्पदाह ज्वर-अभिमानरूपी अमीरों के लड़कों को बिगाड़- जलन पैदा करनेवाला ज्वर । कर उनके धन द्वारा जो श्राप दाह-जलन । मज़ा लूटते है। सदुपदेश शीतलोपचार खूसट-(सं० कौशिक) उल्लू, अच्छे-अच्छे उपदेशरूपी ठंडक मनहूस। पहुँचानेवाले सामान । कलामतों-(सं० कलावंत) कारगर-(फा०-शब्द)उपयोगी, किसी फ़न या हुनर में उस्ताद। लाभकारक, असर करनेवाली। दोगले-(अरबी-शब्द) वर्ण- मीर शिकार-( अमीर J संकर । पाँचवाँ प्रस्ताव चहले-(सं० । किचिल) । सलोनापन-. लावण्य, कीचड़। लुनाई। नै बै-(सं० नै नई । बै (वय) उमंग-इच्छा, जोश, उल्लास। उमर) नई उमर, जवानी। | अनिर्वचनीय-अकथनीय, . दारुण-कठोर । जिसका वर्णन न हो सके। सुखद-सुख देनेवाला। दाख-(फाo-शब्द) अंगूर । वयस्संधि-लडकपन और कुसुमबान-जिसका बाण । जवानी की उमर के मिलने का समय, नवयौवन । ' पुष्पधन्वा भी कहते हैं, काम तरेर-डुबाकर । देव। . अपिच-बल्कि। ऊष्मा-गर्मी। कुसुम (फूल) का हो; जिसे [ १३० ]टिप्पणी-सहित कठिन-शब्दार्थ-सूची २६ तरल तरंगिणी-तुल्य-चंचल । बरहम-क्रोधित ।। नदी के समान । रन्तजप्त-मेलजोल ।' तारुण्यकुतर्की-जवानीरूपी तकरीब-(अं०-शब्द) उत्सव, दुष्ट बकवादी। जलसा। चोखा ( चोक्ष)--शुद्ध और शीशे पालात-(फा०-शब्द) उत्तम । शीशे के यंत्रसाट, फानूस अजहद-बहुत अधिक। आदि। तिउरी-निगाह, दृष्टि । -: छठा प्रस्ताव सन्नहटा-नीरव, शब्दाभाव । । शीतस्पर्शवत्याप.- कणाद तिग्मांशु-(तिग्म = तेज़। मुनि ने पांचों तरवों में से 'अशु-किरण) सूर्य । जल तत्व की परिभाषा में तीखी--(सं. तीक्ष्ण ) तेज़ । लिखा है कि जल वह तत्व है, खरतर-तेज। जो छूने मे शीतल हो। ब्रह्मांड-~जगत्, संसार । दंडायमान-लंबा। तचा-तप्त। . ललाटंतप-ललाट (खोपडी) लोहपिंड-लोहे का गोला। को तपानेवाला, अत्यंत गरम, अनुहार-समानता। .. चैलाफाढ़ धाम । स्थावर-अचल, स्थिर, जो चडांशु (चंड तेज, गरम । चले नहीं, जैसे पेड इत्यादि। अशु-किरण) सूर्य । जंगम-चलनेवाला, चरिष्णु, उच्चाटन-तंत्र के छै अभि. जैसे मनुष्य, पशु इत्यादि । चारी या प्रयोगो में-से, एक ; यावत-जितने।' नाश। स्वगिंद्रिय-स्पशेंद्रिय, जिस | रूपगर्विता-अपने सुंदरापे के इंद्रिय से स्पर्श का ज्ञान हो। । घमंड में भरी हुई। [ १३१ ]२७ सौ अजान और एक सुजान - अगरैतिन-परिश्रम करनेवाली, घिष्टपिष्ट-हरा मेलजोल । मेहनतिन । केड़े-(सं० करीर) नया पौधा विक्षेप-खलल। या अंकुर, नवयुवक । ककशा-लड़ाकिन, कटु- गुलछरे-आनंद, भोग-विलास। भाषिणी। निर्गधोज्झित पुष्प-वह प्रेमालाप-प्रेम की बातचीत। फूल, जो सुगंध न रहने से सहिष्णुता-सहन करने की । फेक दिया गया हो। शक्ति । ठौर-(सं० स्थान) जगह । सौहार्द-प्रेम। कुलप्रसूत-उत्तम वंश में अठखेली-(सं० अष्टक्रीड़ा) पैदा हुआ। ,मस्तानी या मतवाली चाल। नटखट-धूर्त, कपटी। अकालजलदोदय-समय में वलीअहंद-स्थानापन्न, वारिस । मेघों का उदय होना ।' उद्घाटन-प्रकट करना, कदर्य-नीच, तुच्छ हृदय खोल देना।' सातवाँ प्रस्ताव ईशानकोण-पूर्व और उत्तर । तीर्थलियों-(सं० तीर्थस्थली) के बीच की दिशा। तीर्थ के पुजारी और पंडे। देवखात-किसी. मंदिर के । फूटीझंझी-फूटी कौड़ी, (यहाँ पास का कुंड। के दलालों की बोली)। हलका-घेरा। चिरबत्ती-चिथडा-चिथडा। बइयरबानी-कुलीन स्त्री। विटप-वृक्ष । अभिसंधि-षड्यंत्र, 'चुपचाप आतप-धाम । कई श्रादमियों के मिलकर जियारत-पूजा। एक कोई खास काम करने परिशिष्ट-बची हुई। की सलाह। लहलहे-विकसित, हरे-भरे। [ १३२ ]हो।' टिप्पणी-सहित कठिन-शब्दार्थ-सूची - आठवाँ प्रस्ताव धृष्टता-ढिठाई, निर्लज्जता। । पौफट-(स० प्रस्फुट) सूर्य अशालीनता-निर्लजता ; का उदय । ढिठाई। . "पौफट......छा गई"- निरंकुश-स्वतंत्र, स्वेच्छा रूपक अलं०। चारी। "बने बने के..... गायब हृद्गत भाव-वह भाव, जो होने लगे ।"-उत्प्रेक्षा हृदय के भीतर हो। थैमाने । हरकसे बाशद-चाहे कोई कालकैवत-कालरूपी मल्लाह। आजुर्दा-( फ़ाo-शब्द ) "कालकैवर्त...समेट खिन्न, दुखी। लिया।"~-रूपक अलं० । बेनजीर-अनुपम ; बेजोड़; "सूर्य लका कबूतर... लासानी । चुग गया"-उपमा अलं० । 'जहूड़ा-(अ. जहूर) ठाठ, रक्तोत्पल . सहश-लाल दृश्य, दिखाव। कमल के समान। मनहूस-कदम-चौपटचरण, वासर-श्री-दिन की शोभा। जिनका पाना अशुभदायक "प्रात. संध्या......इकदा कर रही है"-समासोक्ति कुंदेनातराश-जाहिल, मूर्ख।। अल। ब्राह्मी बेला-सूर्योदय के पहले प्रभाकर-सूर्य। की चार घडी। "अपने विजयी...होगया"--- मंगला आरती-वैष्णव उत्प्रेक्षा अलं०। संप्रदाय में प्रातःकाल की । शनैः शनैः-धीरे-धीरे। पहली भारती। उदयाचल बालमंदार-[ १३३ ], सौ अजान और एक सुजान . उदयाचल पर्वत पर उगा । पैरा-( पैर ) आगमन हुश्रा छोटा मंदार नामी श्राना। . स्वर्गीय वृक्ष। . . , परख-(सं. परीक्षा पूर्वदिगंगना-पूर्वदिशारूपी । जाँच। ., . . अंगना (स्त्री)। .। । तीर्थोदक-तीर्थ जैसे गंगा, श्रोत्रिय-वेदज्ञ, वेदपाठी यमुना का जल ।। ब्राह्मण ।।। ओछा-( सं० तुच्छ । ख्नुमारी-नशा। . 'प्राकृत उच्छ) शुद्र, छिछोरा। फ्रारिरा-छुट्टी। । टुच्चा '-(सं० तुच्छ ) नीच, खैरख्वाही भलाई चाहना । • कमीना, छिछोर। ' नुमाइश-बनावट । तिहीदस्ती-तंग हाथ, ग़रीबी। गुंजायश-स्थान, · जगह, 'तरहदारी-शौक़ीनी। .. , समाई। | नफीस-उम्दा। 'नवाँ प्रस्ताव सरहंग-धृष्ट, प्रगल्भ, बागी। | दॉताकिटकिट-लडाई,झगडा। दसवाँ प्रस्ताव । गैरत-लज्जा। तरहदारी-सजधज का ढंग । शिष्टता-भलमनसाहत । हमशीरा-वहन। । परतेकद-नाटा। . तस्बी-मुसलमानी माला। परिचारक-सेवक ; भत्य । जप्त किए था-चुप था। जघन्य-नीच। . रुखसत-बिदा। । ___ग्यारहवाँ प्रस्ताव वसीह-लंबा-चौड़ा। । डाइंग रूम-(अंग० शब्द ) आरास्ता-( फ्रा०-शब्द ) सजने या कपडा पहनने का सजा हुश्रा, सुसजित । कमरा, दर्शनगृह, लोगों [ १३४ ]- - टिप्पणी-सहित कठिन-शब्दार्थ-सूची .१३३ से मिलने . जुलने का । विकसित - पंडरीक - नेत्र- कमरा। खिले हुए कमल-समान नेत्र । हुस्नपरस्त-सौंदर्योपासक। "यह अपने . कर रही क्यक्रम-उन्न। थी"--उपमा अलं० . .. संजीदगी-गांभीर्य । कोकिलकंठी-कोयल शऊर-सलीक़ा। समान शब्दवाली। अलकावली-छल्लेदार बाल । । मुश्ताक-इच्छुक। , बारहवाँ प्रस्ताव । नेचरिये-(अंग. Nature), 'बर्क-चतुर, चमकीला । नास्तिक, जो ईश्वर को न | बेलौस-पक्षपात-रहित । मानकर केवल प्रकृति या तर्रार-चालाक । नेचर ही को संसार का कर्ता- लियाकत में खाम-बुद्धि धर्ता मानते हैं। 'में कमी हाफकास्ट-(अँग०-शब्द) दामनगीर-संलग्न । ' केरानी, यूरेशियन, दोग़ले। | तहफे-नज़र, भेट, सौगात । कुम्मेद-(तुर्की कुमैत) वह गौ-(सं० गम्य) घात, दाँच, घोडा, जिसका रंग स्याही मतलब। लिए लाल हो। इस रंग का गुर्गा-(सं० गुरुग) गुरु का घोड़ा बहुत मज़बूत और तेज अनुगामी, जासूस, दूत । होता है। मरदूद-जड़-बुद्धि ; मूर्ख। आठो गाँठ कुम्मैद-अत्यंत उपासनाकांड-श्राराधना, चतुर, छटा हुअा, चालाक, पूजा। दारमदार-निर्भर। . सरिश्ते-विभाग। गुट्ट-(सं० गोष्टी) समूह; तदीही-सरती, सजा। मुद, दल। ।। [ १३५ ]सौ अजान और एक सुजान केंडिडेट-(अँग० . शब्द) । असरैत-आसरे' या भरोसे उम्मेदवार । पर रहनेवाले, सहारा पाने. फरमाइशें-श्रादेश, माँग। वाले, नौकर-चाकर। मुहैया-उपस्थित करना। गदहपचीसी-प्रायः १६ से २५ 'सिफतें-गुण। । वर्ष तक की अवस्था। जिसमें मुहताज-दरिद्र, निकिचन । लोगों का विश्वास है कि जेहननशीन-(फा०-शब्द ) मनुष्य अनुभव-हीन रहता है, दिल में बैठ जाना। और उसकी बुद्धि अपरिपक ताड़बाज़-भॉपनेवाला। रहती है। ___.' तेरहवाँ प्रस्ताव फितनाअंगेजी-(फ्रा०-शब्द) । खशनवीसी-सुदर असर दुष्टता। लिखने की कला। सकलगुणवरिष्ट-सब गुणों उजरत-मेहनताना। में श्रेष्ठ । समानसख्यम्-समान शील श्रावक-जैन गृहस्थ, सरावगी। स्वभाव के तथा समान दुख में थाती-धरोहर, अमानत। पड़े हुए लोगों में मैत्री होती है। कीमियागर-(फा०-शब्द ) घात-दाँव । रसायन बनानेवाला। । अभिप्राय-मतलब । चौदहवाँ प्रस्ताव ताबड़तोड़-लगातार, बरा; | पलित-जर्जर, शिथिल । बर, शीघ्र । । । चोली-दामन का साथ-बहुत छाबतरी-घटाव, बिगाड, अधिक साथ या घनिष्ठता। अवनति, बुराई। इश्तियालक-उत्तेजना। यक्षवित्त-कुबेर के समान बेखरखशे-बेखटके। धनवाला। | देहकानी-ग्रामीण। [ १३६ ]टिप्पणी-सहित कठिन-शब्दार्थ -सूची पंद्रहवाँ प्रस्ताव अटकटारा-(सं० उष्ट्रकंट) | रचना, जो अनजान में उसी एक कटीली झाड़ी, जिसे ऊँट प्रकार हो जाय, जिस प्रकार बडे चाव से खाता है। घुनों के खाते-खाते लकडी में नीचैर्गच्छति ...."चक्रनेमि- - ‘अक्षरों की तरह से बहुत-से क्रमेण-मनुष्य की दशा चिह्न या लकीरें बन जाती हैं। पहिए के चाके के समान कभी इस न्याय का प्रयोग ऐसे ऊपर कभी नीचे को जाती है, स्थलों पर करते हैं, जहाँ किसी अर्थात् कभी अच्छी दशा के द्वारा ऐसा अाकस्मिक कार्य होती है, और कभी खराब । हो जाता है, जो उसे ज्ञात व • ग्रीष्म-संताप-तापित-गर्मी की | अभीष्ट न रहा हो। - ताप से जली हुई। "दिन में हो जाता है"- वसुधा-पृथ्वी। उपमा अलं। नववारिद-नए बादल । सम-विषम-भाव-ऊबढ़- वन-उपवन-बाग़-बगीचे । खाबड़ स्वरूप या दशा। वदान्य-उदार । तत्त्वदर्शी-ब्रह्म का जानने- कथानक-उपन्यास, किस्सा।। वाला, ब्रह्मज्ञानी। "नदी-नाले 'बह निकले" "पृथ्वी पर... जाता ही उपमा अलं। रहा"-उपमा अलं०। कलध्वनि-मीठा शब्द । शगल-काम। "विमल - जल"."लायक नववारिद - समागम-नए हुए"-उपमा श्रलं। वादल का श्रागमन । । "सूर्य-चंद्रमा..... पुजवाने भेकमंडली-मेंढकों का समूह। लगे"-उपमा अलं। वाचाट-मुखर, वकवादी, घुणाक्षर-न्याय-ऐसी कृति या | गपोदिया। [ १३७ ]सौ अजान और एक सुजान ' प्ररुओं-पक्षियों। कज्जाक-(तुर्की शब्द) डाकू, जशन-(फ़ा०-शब्द)जलमा। लुटेरा, चालाक ।' . सोलहवाँ प्रस्ताव पैगंबर-अवतार, ईश्वर-दूत । । गुनहगार-पापी। सत्रहवाँ प्रस्ताव चंपत हुआ-ग़ायब हुआ। । डामिल-(अ-दायमुल्ह हन्स) छनक-भड़क । जन्म कैद । हैरतअंगेज-भय-जनक । । फरोग-उन्नति, वृद्धि। साजनादिर-कभी को या तकमीला-पूर्णता। कभी-कभी। अठारहवाँ प्रस्ताव सुर्खरई-प्रशंसा। हकीर-(फा०-शब्द) तुच्छ । हमनिवाले सहभोजी। - उन्नीसवाँ प्रस्ताव अवसान-अंत, पोर। बहिमि-बाहर की भोर; ईर्षा - कलुषित-दाह से - बहिरी ओर। । काली। भौचक्की-घबराई हुई। बीसवाँ प्रस्ताव निस्वार्थ-विना मतलब के। श्राज सबेरे ही अशुभ दर्शन नामसंकीर्तन-नामोल्लेख । हुआ। . चारुचंचरीक-भ्रमर, भरा। आलबाल-थावला। अद्यप्रातरेवानिष्टदर्शनम्- तोफ़गी-उम्दगी । [ १३८ ]टिप्पणी-सहित कठिन-शब्दार्थ-सूची १३७ इक्कीसवॉ प्रस्ताव वानीमुबानी-जड जसाने- तौहीन-अपमान । वाला। वाईसवाँ प्रस्ताव तजवीज- फा०-शब्द ) राय, | कातिव-( अ० . शब्द ) फैसला। लेखक । तेईसवाँ प्रस्ताव यत्रास्ते.. तदपि मृत्यवे-मिलावट है, उससे भी मृत्यु जिस अमृत में विप की कुछ भी । ही होती है ।