सौ अजान और एक सुजान/२३

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सौ अजान और एक सुजान  (1944) 
द्वारा बालकृष्ण भट्ट
[ १२३ ]

तेईसवाँ प्रस्ताव

राजा करे सो न्याव, पासा पड़े सो दाँव।

नंदू का बुरा परिणाम देख इन बाबुओं को कुछ ऐसा भय-सा समा गया कि उसी दिन से इन्हें चेत हो आई । जैसा किसी को दीवानापन सवार हो गया हो, और लगातार किसी अकसीर दवा के सेवन से जब दीवानापन उतर जाय, अथवा सोने से जैसा कोई जाग पड़ा हो, या कोई मादक द्रव्य—भाँग, अफीम, शराब इत्यादि-पीकर मतवाला हो बकता फिरे, मद उतर जाने पर अथवा भूत सवार हो झार- फूँ क के उपरांत उतर जाने से होश आने पर अपने किए को पछताता हुआ मुॅह छिपाता फिरे, वही हाल इस समय दोनों बाबुओं का था। अब जो इन्हें चेत आई, तो एकांत में बैठे ये घंटों तक ऑसू बहाया करते और पछताते। सबसे अधिक पछतावा इन्हें बड़े सेठ साहब की बनी हुई बात के बिगड़ जाने और असंख्य धन के निकल जाने का था । "हाय ! इस बदमाश नंदू ने मुझे अपने जाल में फॅसाय मेरी कौन-कौन-सी दुर्गति करा डाली।" अब इनको यह खयाल आया कि जिस बात में अब भी किसी तरह ज़रा भी उस बदमाश का लगाव रह जायगा, उसमें कुशल नहीं । “यत्रास्ते विषसंसर्गोऽमतं तदपि मृत्यवे ।" अपने चचा बुड्ढे मानिकचंद का नंदू को बाबू ने मुखतार आम कर दिया था। उस मुखतारनामे को अदालत से मंसूख करा दिया, और नंदू की . सलाह मान मानिकचंद [ १२४ ]का माल-मताल अपने कब्जे में लाने की जो अभिसंधि की थी, उससे भी अपने को अलग कर जो कुछ काग़ज उस बूढ़े सेठ का नंदू संदूक से उड़ा लाया था, और जो कुछ जायदाद थी, सब मिट्ठू को बुलाय सिपुर्द कर चंदू को उसका मुखतार कर दिया, और ये दोनों बाबू बड़े सेठ हीराचंद के चलाए पथ पर चलने लगे । परिणाम में कुछ दिन उपरांत हीराचंद के घराने की प्रतिष्ठा फिर वैसी ही हो गई । पाठक, देखिए, सौ अजान में एक सुजान कैसा गुनकारी हुआ कि सब अजानों को फिर राह पर अंत को लाया ही, नहीं तो कौन आशा थी कि ये दोनों सेठ के लड़के कभी कुढंग पर आ सुधरेगे। दूसरे यह कि जो सुकृती हैं, उनके सुकृत का फल अवश्यमेव औलाद पर आता है। हीराचंद-से सुकृती की औलाद दूषित-चरित की हों, यह अचरज था।

अंत को हम अपने पढ़नेवालों को सूचित करते हैं कि आप लोगों में यदि कोई अबोध और अजान हों, तो हमारे इस उपन्यास को पढ़ आशा करते हैं सुजान बने। इस किस्से के अजानों को सुजान करने को चंदू था, और आप लोगो को हमारा यह उपन्यास होगा।

॥इति॥