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अद्भुत आलाप/दिव्य दृष्टि

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अद्भुत आलाप
महावीर प्रसाद द्विवेदी

लखनऊ: गंगा ग्रंथागार, पृष्ठ ४४ से – ४७ तक

 
४--दिव्य दृष्टि

लदन से एक मासिक पुस्तक अँगरेज़ी में निकलती है। उसमें अनेक अद्भुत-अद्भुत बातें रहती हैं। विशेष कर के अध्यात्म-विद्या से संबंध रखनेवाली बातों की चर्चा उसमें रहती है। उसके एक अंक में दिव्य दृष्टि का एक विचित्र उदाहरण हमने पढ़ा है। उसे थोड़े में हम लिखते हैं---

दिव्य दृष्टि से हमारा मतलब उस दृष्टि से है, जिसमें किसी चीज़ के अवरोध से बाधा न पहुँचे। पदार्थों का सन्निकर्ष चक्षुरिद्रिय से होने ही से उनका चाक्षुप ज्ञान होता है। यह सर्वसम्मत मत है। पर इसमें अब परिवर्तन की जरूरत जान पड़ती है, क्योंकि किसी-किसी विशेष अवस्था में सन्निकर्ष, संघ या योग न होने से भी पदार्थों का ज्ञान हो सकता है। एलिस नाम के एक आदमी के घर पर एक बार तीन आदमी बैठे थे। उनके नाम हैं-- फ़ेल्टन, मोरले ओर गेट्स। इन लोगों को मेस्मेरिज्म अर्थात् अध्यात्म-विद्या से बहुत प्रेम है। इन्होंने दृष्टि-विषयक एक विचित्र तजुर्बा करने की मन में ठानी। मोरले को एक आराम-कुर्सी पर बिठलाकर फ़ेल्टन ने उस पर पाश देना शुरू किया। थोड़ी देर में मोरले सो गया, अर्थात् उसे आध्यात्मिक निद्रा आ गई। इसके बाद वह सचेत किया गया, और उसके सिर के पीछे एक किताब खोली गई। किताब में फ्रेडरिक दि ग्रेट-नामक बादशाह की ज़िंदगी का हाल था। जो पृष्ट खोला गया, उसमें एक लड़ाई का चित्र था। कितने

ही मरे और घायल सिपाही पड़े हुए दिखलाए गए थे। मोरले से पूछा गया, तुम क्या देखत हो? उसने कहा, मैं एक तसवीर देख रहा हूँ, जिसमें बहुत-से सिपाही इधर-उधर पड़े हुए हैं। इस बात को सुनकर कमरे में जितने आदमी थे, सबको आश्चर्य हुआ। इसी तरह की एक और तसवीर के विषय में भी उससे प्रश्न किया गया। इस तसवीर को भी उसने पहचान लिया। याद रहे, यह तसवीर उसकी आँखों के सामने न थी, बल्कि उसके पीछे, सिर को तरफ़, थी। मानो मोरले की आँखें उसके सिर के पीछे थीं, चेहरे पर नहीं। इसी तरह और भी उसकी कई परीक्षाएँ हुईं, और प्रायः सबमें वह पास हो गया। जो तसवीर उसको दिखलाई जाती थी, वह उसकी पीठ की तरफ़, सिर से कोई गज़-भर के फ़ासले पर, रक्खी जाती थी, बहुत पास भी नहीं। तिस पर भी वह उसे पहचान लेता था।

इसके बाद और तरह से भी उसकी परीक्षा लेना निश्चय हुआ। मोरले से कहा गया कि गेट्स कमरे के बाहर चला गया है। यह कथन झूठ था। गेट्स कमरे के भीतर ही था, पर मोरले ने इस बात पर विश्वास कर लिया। उस कमरे में एक घड़ी लगी थी। गेट्स उसके सामने इस तरह खड़ा हो गया कि घड़ी उसले ढक गई। अर्थात् घड़ी का डायल उसकी पीठ के पीछे हो गया, और उसके काँटे लोगों की नज़र से छिप गए। तब मोरले से पूछा गया, बतलाइए, क्या वक्त, है? मोरले ने दीवार पर लगी हुई घड़ी का वक्त ठीक-ठीक बतला दिया।
गेट्स इस घड़ी के सामने खड़ा था। पर मोरले की दृष्टि से वह लोप था; अथवा वह पारदर्शक हो गया था!

इसके बाद मोरले से एलिस बातें करने लगा, और गेट्स तथा फेल्टन जरा देर के लिये कमरे के बाहर चले गए। बाहर जाकर उन्होंने अपने कोट परस्पर बदल डाले। फ़ेल्टन ने गेट्स का कोट पहना और गेट्स ने फ़ेल्टन का। यह करके वे फिर कमरे के भीतर आए। गेट्स ने क्या किया कि फ़ेल्टन का कोट पहने हुए वह कमरे में इधर-उधर घूमने लगा। यह उसने इसलिये किया, जिसमें मोरले की नज़र उस पर पड़े। मोरले इस समय एलिस से बातें कर रहा था। पर गेट्स को देखते ही वह क़ह-क़हा मारकर हँस पड़ा। उसने गेट्स को तो न देखा, पर फ़ेल्टन के कोट को, जो गेट्स के बदन पर था, देख लिया। जब मोरले की हँसी रुकी, तब एलिस ने पूछा, मामला क्या है? क्यों इतने ज़ोर से हँसे? उसने कहा, अजी, वह कोट निराधार आकाश में उड़ रहा है! क्या तुम्हें वह नहीं देख पड़ता? तुम अजब आदमी हो। क्या तुम अंधे हो? मतलब यह कि मोरले ने गेट्स को तो नहीं देखा, क्योंकि पूर्व वासना के अनुसार वह उसकी दृष्टि से अदृश्य हो चुका था, उसे उसने देख लिया। इसी से उसको कोट निराधार मालूम हुआ। तब उसका ध्यान फ़ेल्टन की तरफ़ आकृष्ट किया गया। उसने गेट्स का कोट पहन रक्खा था। वह कोट मोरले को नहीं देख पड़ा। मोरले ने फ़ेल्टन को सिर्फ कमीज़ पहने देखा। इसी तरह और भी कितनी ही परीक्षाएँ हुई। मोरले की नज़र से चिड़ियाँ, मोमबत्तियाँ, तंबाकू, बिल्ली और एक स्त्री, सब चीजें, सिर्फ़ झूठ विश्वास दिलाने ही से अदृश्य हो गईं। एक स्त्री कमरे में आ गई थी। उसके बारे में मोरले से कहा गया कि वह चली गई। इस पर उसने विश्वास कर लिया, और वह स्त्री सचमुच ही उसकी नज़र से ग़ायब हो गई। यहाँ तक कि मोरले जब आराम-कुर्सी से उठकर दूसरी जगह जाने लगा, तब रास्ते में उस स्त्री के पैर से ठोकर खाकर गिरने से बचा!

आध्यात्मिक निद्रा से जगने पर मोरले की यह विलक्षण शक्ति जाती रही।

इन परीक्षाओं से सिद्ध होता है कि जगत् के मिथ्या होने का उपदेश जो वेदांत देता है, वह बहुत दुरुस्त है। इस संसार के सारे पदार्थ मायामय हैं; केवल कल्पना-प्रसूत हैं; उनमें कुछ भी सार नहीं। सब चीज़ों का अस्तित्व केवल ख़याली है। उस ख़याल को किसी तरह दूर कर देने से वे चीज़ें भी आदमी की दृष्टि में प्रभाव को प्राप्त हो जाती हैं। जिसका यह खयाल दृढ़ हो जाता है कि जगत् सचमुच ही मिथ्या है, और उसमें जितने पदार्थ हैं, सचमुच ही काल्पनिक हैं, वह दिव्य दृष्टिमान् हो जाता है। जड़ पदार्थों का व्यवधान उसकी दिव्य दृष्टि को बाधा नहीं पहुँचा सकता।

मार्च, १९०६