आज भी खरे हैं तालाब
आज भी खरे हैं तालाब (2004) द्वारा |
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तालाब
पर्यावरण कक्ष ।। गांधी शांति प्रतिष्ठान
आज भी खरे हैं
तालाब
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पर्यावरण कक्ष, गांधी शांति प्रतिष्ठान
नई दिल्ली
आलेख : अनुपम मिश्र
शोध और संयोजन : शीना, मंजुश्री
सज्जा और रेखांकन : दिलीप चिंचालकर
मूल्य : ७५ रुपए
पहला संस्करण, जुलाई १९९३ ३००० प्रतियां
दूसरा संस्करण, मार्च १९९४ ४००० प्रतियां
तीसरा संस्करण, मार्च १९९८ ३ooo प्रतियां
चौथा संस्करण, जुलाई २००२ ३००० प्रतियां
पांचवां संस्करण, मई २००४ १०००० प्रतियां
प्रकाशक : गांधी शांति प्रतिष्ठान, २२१ दीनदयाल उपाध्याय मार्ग, नई दिल्ली - ११०००२
मुद्रक : सिस्टम्स विज़न, नई दिल्ली-११००२०
इस पुस्तक की सामग्री का किसी भी रूप में उपयोग किया जा सकता है, स्रोत का उल्लेख करें तो अच्छा लगेगा।
अनेक पाठकों संस्थाओं और प्रकाशकों ने इस पुस्तक को और आगे बढ़ाया है। इनमें से कुछ के बारे में हमें जानकारी मिल सकी है।
ये संस्करण इस प्रकार हैं:
भारत ज्ञान विज्ञान परिषद, नई दिल्ली (संक्षिप्त संस्करण) | १९९५ | २५००० प्रतियां |
अभिव्यक्ति, राज्य संसाधन केन्द्र, भोपाल, मध्यप्रदेश | १९९९ | ५०० प्रतियां |
मध्यप्रदेश जन संपर्क विभाग, भोपाल, मध्यप्रदेश | २००१ | २५००० प्रतियां |
उत्थान माहिती, अहमदाबाद, गुजरात | ५०० प्रतियां | |
वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली | २००३ | ११०० प्रतियां |
स्वराज प्रकाशन समूह, नागपुर, महाराष्ट्र | २००३ | ५००० प्रतियां |
नई किताब, जमालपुर, बिहार | २००३ | २२०० प्रतियां |
अन्य भारतीय भाषाओं में :
पंजाबी - श्री सुरेन्द्र बांसल, मालेरकोटला, पंजाब पहला संस्करण २००२ ५०० प्रतियां
बांगला – सुश्री निरुपमा अधिकारी, पुरुलिया, प. बंगाल पहला संस्करण २००२ ११०० प्रतियां
मराठी - साकेत प्रकाशन, औरंगाबाद, महाराष्ट्र पहला संस्करण २००३ ११०० प्रतियां
पंजाबी - श्री सुरेन्द्र बांसल, शाहाबाद मारकडा, हरियाणा दूसरा संस्करण २००४ २००० प्रतियां
बांगला - सुश्री निरुपमा अधिकारी, पुरुलिया, पं बंगाल दूसरा संस्करण २००४ २०००
नेशनल बुक ट्रस्ट, नई दिल्ली द्वारा असमिया, उड़िया,
उर्दू, कन्नड़, गुजरती, तमिल, तेलुगू, पंजाबी, बांगला,
मराठी, मलयालम हिन्दी और अंग्रेजी में प्रकाशित हो रही है पहला संस्करण २००४ २२१०० प्रतियां
पाल के किनारे रखा इतिहास ५
नींव से शिखर तक१०
संसार सागर के नायक१६
सागर के आगर२९
साफ माथे का समाज४१
सहस्रनाम४९
मृगतृष्णा झुठलाते तालाब५८
तालाब बांधता धरम सुभाव७२
आज भी खरे हैं तालाब८०
सन्दर्भ८७
शब्द सूची१०९
अचानक शून्य से
प्रकट नहीं हुए थे।
इनके पीछे एक इकाई थी
बनवाने वालों की, तो
दहाई थी बनाने वालों की।
यह इकाई, दहाई मिलकर
सैकड़ा, हज़ार बनती थी।
पिछले दो सौ बरसों में
नए किस्म की
थोड़ी सी पढ़ाई पढ़ गए
समाज ने इस इकाई,
दहाई, सैकड़ा, हज़ार को
शून्य ही बना दिया।
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