तुलसी चौरा/८

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तुलसी चौरा  (1988) 
द्वारा ना॰ पार्थसारथी, अनुवादक डॉ॰ सुमित अय्यर

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पर तेल कैसे छूटेगा? चेहरे पर नहीं फैलेगा? कमली ने पूछा। ‘न! शैंपू से भी इतना साफ नहीं होगा, जितना इसमें होता है। तुम भी तेल लगा लो।’ कमली ने मना नहीं किया। ‘तेल लगाये बिना वहाँ चली गयी तो गले और कनपटी पर खून जम जाएगा।’ बसंती ने समझाया।

पहले वेणु काका, रवि और नायडू नहाकर निकले। कमली और बसंती का तो निकलने का मन ही नहीं हो रहा था।

देर हो गयी तो रवि और काका ने आवाज लगायी। बसंती ने ठीक कहा था, ‘बाल एकदम रेशम की तरह हो गए थे। कमली को आश्चर्य हुआ।

नायडू के सिर पर तेल का नाम निशान नहीं था। उनका गंजा सिर चमचमा रहा था काका ने छेड़ा, ‘क्यों नायडू, लगता है सिर कुछ नहीं रहा। एकदम खाली हो गया।’

'वाक्य ठीक नहीं बना, काकू। कुछ और मतलब निकलता है इसका।' रवि ने कहा।

'देखिये, मजाक छोड़िये। बाल झड़ना अनुभव के पकने का लक्षण है। गंजापन तो आपके भी बालों में है। आप भी जल्दी ही हमारी बिरादरी में शामिल हो जायेंगे हाँ......।'

'नायडू! अच्छा हुआ हमारे देश में बस एक यही दल तो नहीं बना है। पर लगता है, जल्दी ही एक दल ऐसा भी बन जायेगा।'

'तो इसमें गलत क्या है।'

'गलत तो कुछ भी नहीं है। जितनी जनसंख्या है अगर सभी एक एक दल बना डालें तो वोट डालने के लिये कौन बचेगा? एक-एक दल को एक-एक वोट मिलेगा। फिर हर व्यक्ति देश का नेता बन जाएगा। जनता तो रहेगी ही नहीं।'

वणु काका और नायडू जैसे युवा हो गए थे। युवतियों के कपड़े बदलने तक यह राजनीतिक चर्चा चलती रही। [ ८० ]'देखा जाए तो हमारे यहाँ की राजनीति और प्लांटेशन की स्थिति एक सी है। रोपाई, कटाई, निराई सबकी बातें दोनों मिलती जुलती हैं। राजनीति की बातें भी प्लांटेशन की ही भाषा में की जाती हैं। युवा आगे निकल आएँ तो कहते हैं, दो पसे भी नहीं फूटे, चला आया राजनीति में। चुनाव में जो जैसा खर्च करता है बाद में वैसी कंटाई भी करता है। असंतुष्ट और विरोधी कार्यकर्तानों की निराई की जाती है।

'अरे रे, आप तो इस पर पूरी थीसिस लिख डालेंगे, लगता है।' रवि हँस पड़ा।

'अरे यही नहीं। आगे भी सुन लीजिए! खेत में जैसे बीज पड़ जाता है और फसल उग भाती है, ठीक इसी तरह परिवार में एक राजनीतिज्ञ ऊँचे पद पर पहुँच जाए तो फिर उस परिवार में वह पद पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होने लगता है।

'एलीफंट वैली' चलें?

वेणु काका ने बातों की दिशा बदली। कमली और बसंती ने कपड़े, बदल लिये थे। जीप से फिर चल दिए वे लोग।

'आपके घर से कोई साथ नहीं आया, नायडू?'

'है कौन यहाँ साथ लाने के लिये! बच्चे नीचे मैदान में पढ़ रहे हैं। पत्नी बीमार रहती है। गरम पानी में ही नहायेगी। ठंडा पानी उसे रास नहीं आता।' कोई बारह मील चलने के बाद एक मोड़ पर जीए रुक गयी। सौ डेढ़ सौ फीट नीचे हरी घाटी फैली थी। एक झील भी नजर आया। झील के किनारे काले-काले धब्बों की तरह कुछ हिल डुल रहे थे।

'वह देखिए,―हाथियों के झुंड…।'

दूरबीन कमली की ओर नायडू बढ़ाया।

कमली ने दूरबीन से देखा। दस बीस बड़े हाथी एकाध छोटें हाथी―झूमते खेलते साफ उसे नजर आए उसे छोड़ कर बाकी लोग [ ८१ ]
वहाँ कई बार आ चुके थे इसलिए उन्हें अधिक आश्चर्य नहीं हुआ। कमली ने हाथियों के बारे में कई सवाल किए। सभी प्रश्नों का उत्तर वेणुकाका और नायडू बारी-बारी से दिए जा रहे थे।

'एलीफेंट बैली' से लौटते कमली ने नायडू से वंदन का पेड़ देखने की इच्छा प्रकट की। कुछ दूर बाद जीप रुकवा कर नायडू ने कमली को चंदन का एक पुराना पेड़ दिखाया। वन विभाग के लोगों ने पेड़ की एक शाखा पर कुल्हाड़ी चलाई होगी, वहीं से भंध फूट रही थी। कमली ने सूंघ कर देखा। नायडू ने आश्वासन दिया कि दो तीन दिन में वे चंदन का एक टुकड़ा भिजवा देंगे।

लौटते में रवि और कमली पिछली सीट पर पास बैठे थे। पहाड़ी हवा की ठंडक और झरने के पानी के सुख ने उसके उत्साह को दूना कर दिया था। कमली के कानों के पास झुक कर बोला 'कमली मेरे लिये तो तुम ही चंदन का पेड़ हो। तुम्हारे शरीर में लो इतनी सुगंध है, वह चंदन के पेड़ में क्या होगी। मैं इसीलिये तो जीप से उतरा ही नहीं। चंदन का वृक्ष तो मेरे पास है ही……।'

कमली उसे देख कर मुस्कुरा दी। बंगले की ओर लौटते दूर क्षितिज में इन्द्र धनुष निकल आया था। पहाड़ की हरियाली हल्की बूँदा-बाँदी, जंगल की महक, इन्द्रधनुष, पूरे माहौल में बिल्कुल बच्चे हो गए थे वे। दोपहर में नायडू ने भोज का आयोजन किया था। भोजन समाप्त करके, कुछ देर आराम करने के बाद ही वे निकल सके।

'आप जब तक भारत में हैं, कभी भी यहाँ आकर ठहर सकते हैं। आपका अपना ही घर समझें।' रवि और कमली से नायडू बोले। हरी इलायची की एक माला, कमली को भेंट में दी। कमली उसकी बुना- बट को देख आश्चर्य में पड़ गयी।

'बीक एंड में कहीं निकलना हो, तो इससे बढ़िया जगह कोई नहीं हो सकती।' वेणु काका ने कहा। [ ८२ ]'वे लोग यहाँ आयेंगे, तो अबकी बार अपने गेस्ट हाउस की चावी भी दे देंगे।' बसंती ने कहा।

नीचे आते-आते तीन बज गये थे। रवि और कमली जब घर पर कार से उतरे साड़े चार बज गए थे।

ओसारे पर शर्मा जी इरैमुडिमणि से बातें कर रहे थे। इरैमुडिमणि ने रवि का उत्साह के साथ स्वागत किया। कमली का परिचय करवाया गया। इरैमुडिमणि–नाम का उच्चारण करती हुई कमली ने नाम का अर्थ पूछ लिया। रवि ने बताया कि यह देव शिखामणि का रूपांतरण है।

मरै-भलै अडिगल, परिदिगात्र कलेंडर जैसे ही यह भी नाम है न।' कमली ने रवि से पूछ लिया।

'अरे, तमिल भी जानती है यह तो। बैंठो बेटा। उनसे भी कहो, बैठ जाएँ।' इरैमुडिमणि ने कहा। रवि सामने वाले ओसारे पर बैठ गया। कमली नहीं बैठी। शर्मा जी के सामने बैठते सकुचा रही थी। शर्मा जी ने भांप लिया।

'आप लोग बातें करें, मैं अभी मठ के कारिदे को बुला लाता हूँ।' कहते हुए वे निकल गये। उनके जाने के बाद तीनों को बातें शुरू करने की स्वतन्त्रता मिल गयी। कमली रवि से थोड़ा हटकर बैठ गयी।

'तमिल ही नहीं, हमारे रीति रिवाज भी आपने इन्हें सिखाया है। इस बात की बहुत खुशी हैं, मुझे।' इरैमुडिमणि ने कहा।

उनकी गुरु गंभीर आवाजा, मंचीय भाषण का सा सधा हुआ बात- चीत का लहजा…कमली उनके विषय में जानने को उत्सुक हो गयी। रवि ने उसे सविस्तार समझाया। उसकी बातों को इरैमुडिमणि ने विभन्नता से नकारा।

'बेटे का मेरे प्रति प्यार ही है कि मेरी बहुत तारीफ करने लगा।' हैं। मैं तो एक साधारण सा व्यापारी हूँ। बस रेशनल मूवमेंट से जुड़ा हूँ। [ ८३ ]'आप अपने मूवमेंट के बारे में कुछ बताएँगे?'

'बहुत दिनों से ताँबे का कोई बर्तन कोने में पड़ा रहे, तो उसकी चमक बिल्कुल गायब हो जाती है। इसी तरह…इस देश के ज्ञान और विवेक पर जाति और धर्म प्रथाओं, रीति रिवाजों का और अंधविश्वास की परत चढ़ गयी है, उन अंधविश्वासों को दूर करना हमारा आधार भूत सिद्धांत है। ताकि उसका असली रूप निखर कर सामने आए। ठीक उसी तरह से ताँबे के बर्तन को इमली से माजकर चमकाते हैं। यह आत्म-मर्यादा का आंदोलन इसी कारण शुरू किया गया था। इन बाह्य आडम्बरों और कर्मकांडों से असली ज्ञान और विवेक ही महत्वपूर्ण है।

'यह आत्म मर्यादा क्या है…।'

'किसी भी स्थिति में दूसरों से अपने को अपमानित न होने देना और दूसरों का अपमान न करना यही आरम-मर्यादा का आन्दोलन का मूलभूत सिद्धांत है।'

'आपका स्पष्टीकरण बहुत सुन्दर है।' कमली ने जी खोलकर प्रशंसा की।

'अरे, हाँ, बाऊ जी किसलिये कारिदे को बुलवाने गए हैं। रवि ने पूछा।

इरैमुडिमणि ने रवि को बताया कि मठ की जमीन को किराये पर ले रहे हैं।

कमली को ओसारे पर बैठे देखकर आस-पास के मकानों से कुछ चेहरे झाँकने लगे। रवि और इरैमुडिमणि ने इसे ध्यान से देखा?

'गाँव के लोग, अपने घर से ज्यादा दूसरों के घरों के मामलों में रुचि लेते हैं।'

'यही नहीं, चाचा। इस वक्त गाँव का सारा ध्यान मुझ पर और कमली पर है। हमारी ही वातें घर-घर होने लगी होंगी।'

'हाँ, हाँ, होंगी। तो इससे क्या? तुम घबरा मत जाना बेटे। [ ८४ ]शर्मा जी कारिदे के साथ लौर आए। रवि और कमली ऊपर चले गए।

'स्टाम्प पेपर ले आया हूँ। जो लिखवाना है, लिख ले। दुकान मेरा दामाद चलाएगा, पर करारनाम मेरे नाम पर हो जाए तो ठीक है।'

'दो महीने का किराया पेशगी देना होगा। जमीन पर कुछ भी बनवाना हो, तो वह भी आपके ही जिम्मे होगा।'

'ठीक है, मँजूर है। पेशगी लाया हूँ।'

शर्मा जी को उत्तर देकर इरैमुडिमणि रूपये गिनने लगें। सीढ़ियों पर किसी के चड़ने की आवाज बायी। दोनों ने सिर उठाकर देखा। कपड़ों के व्यापारी बहमद अनी सीढ़ियाँ चढ़कर भीतर आ गए थे, और हाथ जोड़कर खड़े हो गये।

'क्या बात है?' अहमद अली में शर्मा जी ने पूछा।

अहमद अली हँसते हुए बोले, 'आपकी कृपा चाहिए। लीजिए,' एक पत्र शर्मा की ओर बढ़ाते हुए बोले 'सीमावय्यर ने आपके लिए भिजवाया है।'

शर्मा जी ने पत्र खोलकर पढ़ा। उनके चेहरे पर किसी तरह के भाव नहीं उभरे।

'सीमावय्यर से कहिए पत्र मैंने पड़ लिया है। मैं आपको बाद में कहूला भेजूँगा 'पैसों की कोई चिंता मत करें। आप जो भी निर्णय लें, मैं स्वीकार कर लूँगा।'

'कहा न, मैं कहला भेजूँगा।'

'तो चलूँ। आर जरूर कहना भेजियेगा। आज ही कुछ तय कर लें……।'

'हाँ कहला दूँगा।'

अहमद अली ने शर्मा जी से विदा ली। कारिंदे से और वहाँ बैठे इरैमुडिमणि से भी विदा लेकर उतर गए। [ ८५ ]शर्मा जी को लगा, इरैमुडिमणि तुरन्त पूछेंगे, मियां किसलिए आये थे, पर उन्होंने नहीं पूछा। बर्मा जी को आश्चर्य सा हुआ।

करारनामा तैयार करवा कर इरैमुडिणि से पेशगी ले ली। फिर कारिंदे को देकर बोले, 'लो इसे मठ के खाते में जमा कर देना।'

उसे भिजवा कर फिर बोले, 'देशिकामणि, इसे पढ़ लेना।' पत्र उनकी ओर बढ़ा दिया।

इरैमुडिमाणि उनसे पत्र ले कर पढ़ने लगे। पन सीमावय्यर का था। मठ की जमीन अहमद अली मियां की नई दुकान को बीस साल की पट्टेदारी पर देने की सिफारिश की गयी थी। यह भी लिखा था कि मियां अच्छी खासी रकम देने को तैयार हैं और मठ को अच्छी पेशगी भी दे सकते हैं। मठ को इससे कितना लाभ होगा। इसका व्यौरेवार विवरण था।

'तो तुम क्यों चुप रह गए?'

'तो फिर क्या, आदमी बेईमानी करे! बचन मैंने तुम्हें दिया था। अगर कोई लालच दे, तो क्या मैं बचन से मुकर जाऊँ? मैंने तो मठ से सलाह भी ले ली थी। अब किसी का डर नहीं पड़ा है।'

'देखा, कैसे वक्त पर पहुँच गए। सीमावय्यर और अहमद अली मियां के बीच 'धड़ल्ले से लेन-देन चलता है।'

'कुछ भी चलता हो। इस जमीन पर परचून की दुकान खुलेगी तो लोगों का फायदा होगा। कपड़ों की दुकान को खास फायदा नहीं होगा। यूँ भी बाजार में दस बीस दुकानें हैं कपड़ों की। इन सब में कई दुकानें इन्हीं मियाँ की हैं। फिर यह जमीन क्यों किराये पर लेना चाहते हैं? सिंगापुर से पैसा अनाप शनाप आ रहा है। गाँव के आधे से ज्यादा मकान, खेत खलिहान खरीद डाले। अभी तक लालच नहीं गया।'

'ऐसा नहीं लगता कि यह जान बूझकर मेरी प्रतिद्धिंता के लिए किया गया है। पता नहीं इन्हें सब कुछ पहले कैसे मालूम हो जाता [ ८६ ]
है?'

'मुझे तो अपने इस कारिदे पर ही शक है। सीमावय्यर का खास आदमी है यह!'

'हो सकता है। किसी से पता लगा होगा। तभी तो, सीमावय्यर ने मियां को सीधे यहाँ भिववा दिया। यहाँ तो हम लोगों को एक एक पाई जोड़नी पड़ती है और एक यह अहमद अली है, चारों ओर से पँसा ही पैसा। समझ में नहीं आता होगा इन्हें कि कैसे खर्च किया जाए। शान में किराया पर खर्च किए चले जा रहे हैं।'

'पैसा केवल सुन या सुविधाएँ दे सकता है पर अनुशासन और ईमानदारी नहीं दे सकता। कितने लोग हैं, जिनके पास अथाह पैसा है, पर अनुशासनहीनता और बेईमानी की वजह से चैन से सो भी नहीं पाते हैं।'

'अच्छा है। हम इससे दूर ही रहें। ईमानदार होते हुए गरीब बने रहना ज्यादा अच्छा है। हमारे लिये तो यही काफी है।'

इरैमुडिमणि और शर्मा दोनों अच्छी तरह जानते थे कि सीमा- वय्यर और अहमद अली इस बात को यूं ही नहीं छोड़ेंगे।

शर्मा इरैमुडिमणि से बोले, 'लालच, राजनीतिक दाँँव पेंच, उठापटक, दूसरों को धोखा देकर पैसा कमाने की ये तमाम बुराइयाँ पहले शहरों तक ही सीमित थीं। अब हमारे गाँवों में भी आ गयी हैं। और तो और अब तो ये लोग दलीलें देने लगे हैं कि इस तरह कमाना कहीं से गलत नहीं हैं। आज का नया दर्शन ही यह है कि अपनी गलतियों को प्रमाणित करते चले जाओ।'

'विश्वेश्वर, तुम्हारे इस उपकार का आभार किस तरह प्रकट करुँ, मैं समझ नहीं पा रहा। मुझसे भी अधिक किराया देने वाले तुमें मिले, पर तुमने मुझे ही यह जगह दिलवाई। है यह आस्तिकों का मठ है। उनकी जमीन है। मैं नास्तिक हूँ यह जानने के बाद [ ८७ ]
भी तुमने बचन को निभाया है।'

'ऐसा क्या कर दिया है, मैंने! जो सही था वही किया।'

'नहीं यार! यह सचमुच बहुत महत्वपूर्ण कार्य था। इस अग्र- हारम के तीनों मोहल्लों में मैं किसी का भी इज्जत नहीं करता। पर तुम्हें! तुम्हें इज्जत दिए बिना भी नहीं रह पाता।'

अपने अजीज, मित्र के मुँह से अपनी प्रशंसा सुनकर शर्मा भी सकुचा गए। बोले, 'हम लोग परस्पर एक दूसरे की प्रशंसा करें, कुछ अच्छा नहीं लगता।'

'झूठ कह रहा हूँ, क्या?'

'यदि एक ऐसा सच, जिसके कहने से सामने वाले का सिर चढ़ जाए, उसे भीतर ही रखना बेहतर और श्रेयस्कर है।'

'देखो यार, जो सही और ईमानदार व्यक्ति होता है, उसकी तारीफ तुरन्त कर देनी चाहिए। ऐसे लोगों की तारीफ में कुछ कड़े शब्द भी प्रयोग किए जा सकते हैं न।'

'तभी न, ऐसे लोग पैदा होते जा रहे हैं, जो प्रशंसा की अपेक्षा में अच्छे कार्य करते हैं, या प्रशंसा का तामझाम जुटाते हैं। फूल में महक हो सकती है पर उसे सूँघने वाले उस महक को समझ सकें, जरूरी है। जरूरी नहीं कि वह फूल अपनी महक को जान सके। शास्त्रों में यश की खोज में भागने वाले व्यक्ति को, शराब की खोज में भटकने वाले शराब के समान बताया गया है। यशेच्छा भी एक तरह का व्यसन ही है।'

इरैमुडिमणि ने बात की दिशा बदल दी।

'बेटे के साथ जो फेंच युवती आयी है, वह बहुत अच्छी लड़की लगती है। तमिल बढ़िया बोलती है। तुम यहाँ जब तक बैठे रहे, तुम्हारे सामने बैठी ही नहीं। बहुत इज्जत देती है यार तुम्हें।'

'यही नहीं, बहुत बुद्धिमान भी है। काफी कुछ पड़ रखा है।'

'एक फ्रेंच लड़की इतनी अच्छी तमिल बोले, यह सचमुच आश्चर्य [ ८८ ]की बात है। तुम्हें आपत्ति न हो, तो हमारे वाचनालय में एक दिन एक गोष्ठी कर दें। बेटा बहुत भाग्यशाली है। सुन्दर, बुद्धिमान और व्यवहार कुशल जीवन साथी मिलना बहुत भाग्य की बात है।'

'यह तो अब तय करना है कि जीवन साथी बनेगी भी या नहीं' शर्मा जी हँसते हुए बोले। पर इरैमुडिमणि ने नहीं छोड़ा। उसी समय उन्हें झिड़क दिया।

'किसी के जीवन साथी के बारे में तो उसे तय करना है कि दूसरे ही तय करेंगे?'

'पर व्यावहारिक जीवन में दूसरों के विचार भी तो महत्व रखते हैं। माँ बाप, घर समाज यह भी तो देखना पड़ता है?'

'बच्चे खुश रहें, बस काफी है! जाति, धर्म, कुल, गोत्र आदि भी बातें कहीं उनकी खुशियों को कहीं मार न दें।'

'देखते हैं।……और कुछ?'

'मैं चलता हूँ। उन लोगों से कह देना। फिर आऊँगा, फुर्सत में। मलरकोडि वाले मामले में सीमावय्यर को जरा चेता देना। भूलना मत।' इरैमुडिमणि ने कहा।

इरैमुडिमणि अभी गली के मोड़ तक ही गए होंगे कि शर्मा जी में अहमद अली भाई और सीमावय्यर को पश्चिमी दिशा से आते देखा।

भीतर जाते-जाते ओसारे पर ही रुक गए। इससे पहले कि वे लोग बातें शुरू करते शर्मा जी बोल पड़े, 'क्यों मियाँ, मैंने तो कहा था कि मैं कहला दूँगा। इन्हें क्यों तकलीफ दी।'

'नहीं! सरकार खुद ही बोले कि हम भी चलेंगे।'

'बैठिए सीमावय्यर जी। आपने इतनी तकलीफ क्यों ली?'

सीमावय्यर ने पानदान और छड़ी दोनों को ओसारे पर रखा और बैठ गए