पृष्ठ:आदर्श हिंदू २.pdf/१३

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टोले के टोले ने आ हलचल मचाई। समुद्र की हिलेरे तूफान के समय जैसे आ आकर किनारे से टकराती हैं, छत्ते की बर्रे जैसे उड़ उड़कर आदमी पर टूट पड़ती हैं अथवा मारवाड़ की रेत जैसे टीले के टीले उड़ उड़कर आदमी पर गिरती और ढाँक लेती है उसी तरह इनको घेरा। किंतु लहरें जैसे किनारे से ले जाकर आदमी को फिर भी किनारे पर ही ला डालती हैं, रेत भी जैसे उड़कर आती हैं वैसे हवा के झोंके से उड़कर चली भी जाती है परंतु छत्ते की बर्रे एक बार आदमी को घेरने पर भी नहीं छोड़तों, स्थल में नहीं छोड़तीं और जल में नहीं छोड़तीं, यदि उनसे बचने के लिये पानी में गोता लगाया तो क्या हुआ वे जानती हैं कि अभी ऊपर सिर निकलेगा। बस इस कारण वहाँ की वहाँ ही मँडराती रहती हैं। सिर निकालते ही माथे में डंक मार मारकर काटने लगती हैं। बस यही दशा इन लोगों की हुई। मथुरा की घटना याद करके, प्रयाग का दृश्य देखकर ये सारे भागकर अपनी जान बचाने के लिये नाव पर चढ़े। कमर कमर पानी तक किनारे किनारे चलकर आधी मील तक उन लोगों ने इनका पीछा किया और जब इन्होंने अपनी जान बचाने के लिये उनको कुछ भी न दिया तब वे गालियाँ देते लौट गए।

पहले इनकी यह इच्छा हुई थी कि भोला के इस काम पर नियत कर चलें परंतु उस बिचारे के कपड़े बचने कठिन