पृष्ठ:आदर्श हिंदू २.pdf/१३३

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"बस जमाना गया! आप वैसी जातियो जमीन के पर्दे पर नहीं रहीं और न यह गोविंद ही रहा! तू कहाँ भूली है? छोड़ इन झगड़ों को। और दुनिया के मजे लूट। और तू ही बता! तू सती कब से बनी? तेरे सब गुण मेरे पेट में है! वृथा होंगें न हाँक! छोड़ इस झूठे झगड़ों को और जन्म भर मेरी बनकर आनंद कर! यह अटूट खजाना, यह विशाल भवन और यह अप्रतिम वैभव, सब तेरे ही लिये है। केवल तेरी मृदु मुसकान पर न्योछावर है।"

"अपनी न्योछावर को फूँक दे! आग लगा अपने लोग विलास को! मैं कुलटा हूँ तो अपने मालिक की हूँ और सती हूँ तो उसकी! तुझो क्या? तू हजार सिर मारने पर भी, जान दे देने पर भी मुझे नहीं पा सकुंगा! मुझे पाने के लिय काच में, नहीं नहीं मेरी जूती में मुंह देख ले।"

"अच्छा देख लूँगा! देखूँ कहाँ तक तेरा सत निबहता है? तू झख मारेगी और मेरी होकर रहेगी। तू मेरी कैदी है। मेरी बनकर रहने के सिवाय तेरे लिये कुछ चारा ही नहीं। मान जा! प्यारी मान जा! तेरे पैरों पड़ता हूँ मान जा! न मानेगी, यों सीधी सीधी न मानेगी तो मैं जबर्दस्ती मनवा लूँगा।"

तैंने मेरे हाथ भी लगा दिया तो उसी समय मर मिटूँगी! मरना मेरे हाथ में है।"