पृष्ठ:आदर्श हिंदू २.pdf/१४१

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न लगता। सचमुच आपने हमको विपत्ति के दारुण दावा- नल में से, जैसे प्रह्लाद भक्त को भगवान नृसिंह ने बचाया था, वैसे ही उधार लिया। हम आपकी कहाँ लो प्रशंसा करें। आपने भय से, घोर कष्ट से हमारी रक्षा की।

"अन्नदाता भयत्राता पत्नीतातस्तथैव च।

विद्यादाता मंत्रदाता पंचैते पितरः स्मृतः॥

आप जब हमारे पिता है तब आपका धन्यवाद ही क्या है?"

इस कथन का गौड़बोले ने अनुमोहन किया, घूँघट की ओट में संकेत से प्रियंवदा कृतज्ञता प्रकाशित की, बूढ़े बुढ़िया ने "हां सच है! बेशक सच है।" कहा और गोपी- बल्लभ से जब कुछ कहते न बना सब लपककर उसने उनके पैरों में सिर जा दिया। उसका सब ही ने एक एक करके अनुकरण किया। पंडित दीनबंधु यद्यपि सबके इस काम से लज्जित हुए, उन्होंने अपने पैर छिपाने में, उन्हें हटाने में कमी नहीं की किंतु कोई भी ऐसे महात्मा के चरण स्पर्श का पुण्य लूटने से वंचित न रहा। इस तरह पर लूटालूट समाप्त होने पर पंडित दीनबंधु बेले --

"आप लोगों ने आज मेरा असाधारण आदर किया। भगवान् भूतभावन से वरदान पाकर भस्मासुर के समान जगज्जननी अंबिका को छीन लेने की पापबासना से अपने उप- कारक, इष्टदेव के मस्तक पर हाथ फेरनेवाले सैकड़ों हैं किंतु