पृष्ठ:आदर्श हिंदू २.pdf/१४६

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उन्होंने पोटली खोलकर सबको दिखलाई। उसमें कोई बहोशी की दबा नहीं थी। उसमें खून से भरी हुई एक अंगुली थी और एक अंगूठी रक्त में मरावीर उस अँगुली में पहना रखी थी। इससे स्पष्ट हो गया कि पंडितजी ने अँगूठी को पहचानकर प्रियंवदा का मारा जाना और तब उसकी अँगुली काट लेना मान लिया था। बस यही कारण उस समय उनके मुर्च्छित होने का था। किंतु इस समय दिन में जब अच्छी तरह आँखें फाड़कर देखा गया तो न तो वह अँगुली अँगुली ही निकली और न बह रह रक्त ही। अँगुली मोम की बनी हुई थी और लहू की जगह लाल रंग। तब प्रियानाथ फिर कहने लगे --

"हा ते वे दोनों रमाणियाँ?"

"उसी मुहल्ले में घुरहू का मकान है। श्यामा उसी मकान में रहती है जिसमें उन दोनों में की एक रहती है। उसी से उन्होंने भेद पाया होगा।"

"तब घुरहू ने प्रियंवदा को दाल की मंडी में क्यों रखा और जो आदमी मुझे धोखा देकर रंडी के यहाँ पहुँचा देने में था उसने क्या दो शरीर धारण कर लिए थे? एक से मेरे साथ और दूसरे से (प्रियंवदा की ओर इंगित करके) इसे सताने में रहा?"

"नहीं यह आपका भ्रम है। नसीरन की गलती है। प्रियंवदा के रोने की भनक जब आपके कानों पर पड़ी तब वह घुरहू उसके पास मौजूद था। आपको बहका ले जानेवाला