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कृतार्थता समझें! इससे बढ़कर "प्रेमलक्षण" भक्ति क्या होगी? शास्त्रकारों ने --

'श्रवण कीर्तने विष्णो: स्मरणं पादसेवनं:
अर्चनं वंदनं दास्य सख्यामात्मनिवेदनम॥"

इस प्रकार नवधा भक्ति का निरूपण किया है। उनमें यहाँ गोपियों में आत्मनिवेदन की सीमा है। इससे बढ़कर आत्मविसर्जन क्या होगा?"

"अच्छा भाई! अच्छा अमृत पिलाया। जरा इस नवधा भक्ति की थोड़ी सी व्याख्या तो करो। वास्तव में तुम पंडित हो, भक्त हो और ज्ञानी हो। तुमसे बढ़कर समझानेवाला कौन मिलेगा? इस तरह समझाओ जिससे मेरा शुष्क अंत:- करण स्निग्ध होकर पिघल जाय।"

"हैं महाराज! आप जैसे विद्वानों के सामने? मैं 'कोटस्य कीटायते।' अस्तु पिताजी, यदि पुत्र के मुख की तोलली वाणी सुनकर मन को प्रसन्न करना है तो सुनिए। मैं थोड़े में, सूत्ररूप से निवेदन करता हूँ। भक्ति के सिद्धांत, उसके तत्व जानने के लिये शांडिल्य ऋषि के "भक्तिसूत्र" देवर्षि नारद की "नारदपंचरात्र" श्रीमद्भागवत और रामा- यणादि ग्रंथों में भगवान् की अवतारकथाएँ और ध्रुव, प्रह्लाद, हनुमान्, अर्जुन, गोपिकाओं का -- इस प्रकार प्राचीन और सुर- दास, तुलसीदास आदि अर्वाचीन भक्तों के चरित्र पढ़ने चाहिएँ। भक्ति का पर्याय श्रद्धा, और तर्क श्रद्धा का विरोधी