पृष्ठ:आदर्श हिंदू २.pdf/२३६

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वह क्रोध का भूत सवार होने पर पछताए भी किंतु उनसे कहे बिना न रहा गया। वह उस मेहतर की ओर मुँह करके कहने लगे --

"क्या तुम वास्तव में भंगी हो? मेहतर हो तब गले में जनेऊ क्यों डाल रखा है? राम राम! तुम्हें लाज नहीं आती! जब तुमने अपनी जबान से स्वयं भंगी होना स्वीकार कर लिया तब हो चुके। तुम्हारी जातिवालों को चाहिए कि तुम्हें जाति से बाहर कर दें। जैसी मनशा वैसी दशा। इस जन्म में नहीं तो दूसरे जन्म में अवश्य भंगी होगे। तुम्हारे कर्म तुमसे लातें मार मार कर पायखाना उठवावेंगे। खैर, दूसरे जन्म की बात जाने दो परंतु पुलिस के चालान करने पर जब अदालत में तुम्हें खड़ा किया जायगा तब?"

इस पर वह व्यक्ति घबड़ाया। वह रोने लगा और पुलिस की खुशामद करके उसने जैसे तैसे अपना पिंड छुड़ाया। इस समय भीड़ में से आवाज आई -- "हम जानते हैं। यह न भंगी है और न ब्राह्मण। यह उन जातियों में से है जो समय के फेर से ब्राह्मण बनना चाहती हैं।" बस, इसी समय घंटी हुई और सब अपनी अपनी गाड़ियों में जब सवार हो गए तब रेल सीटी बजाकर धक धक करती हुई वहाँ से चल दी। ऐसे ट्रेन यद्यपि वहाँ से रवाना हो गई परंतु पंडितजी का क्षोभ न मिटा। हिंदुओं की अवनति पर दुःखित होते, ऐसे ही विचारों की तरंगों में मग्न होकर चिंता करते हुए जब वह