पृष्ठ:आदर्श हिंदू २.pdf/२३७

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जा रहे थे तब उस दर्जे के एक मुसाफिर ने इनका मौन तोड़ा। वह बोला --

"देखिए! इस अधोगति का कुछ ठिकाना है? देश एक बार अवश्य डूबेगा! काटो तो हमारे शरीर से जैसे लहू निकलता है वैसे ही भंगी के शरीर में से। फिर इतनी घृणा क्यों? हमारा शरीर भी तो मल-मूत्र से भरा हुआ है। वे बिचारे हमारा इतना उपकार करते हैं और हम लातें मार नारकर उन्हें गिरा रहे हैं? इस छुआछूत ने हिंदुओं का सर्वनाश कर दिया।"

"वास्तव में अधोगति का ठिकाना नहीं और ऐसे लोगों की बदौलत जब तक भगवान् कल्कि अवतार धारणा न करें, राजा कलि अवश्य इस देश डुबो देगा किंतु आपके विचार में और मेरे विचार में धरती आकाश का सा अंतर है। छुआछूत देश को चौपट करनेवाली नहीं। 'आचारः प्रथमो धर्मः।' इस सिद्धांत से राजाधिराज मनु की आज्ञा के अनु- सार यह भी हिंदुओं के दस धर्मों में से एक है और एक भी ऐसा जिस पर शेष नवों का दारमहार है। जब तक शरीर में पवित्रता नहीं होती, मान पवित्र नहीं हो सकता और मन पवित्र हुए बिना -- 'धृतिः क्षमा दमोस्तेयं शौचमिंद्रिय- निग्रहः। धीर्विधा सत्यमक्रोधः दशक धर्मलक्षणम्।' का साधन नहीं हो सकता। अनेक जन्मों तक के घोर पापों का संचय होकर उसने भंगी का शरीर पाया है, अब भी वह वैसे