पृष्ठ:आदर्श हिंदू २.pdf/२४२

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ही रहने दीजिए। उनसे जूता सिलवाने का काम न लीजिए। यदि उनमें कोई गिर गया हो तो उस पर लातें न मारिए।"

"बेशक आपका कथन यथार्थ है। आज बहुत वर्षों की भ्रांति दूर हो गई।" कहता हुआ वह मुसाफिर भुवनेश्वर के स्टेशन पर उतर गया। इच्छा इनकी भी हुई थी किंतु विचार करते करते ही गाड़ी चल दी। तब इन्होंने श्री जगदीश के चरणों में लौ लगाई। इस विचार में मग्न होते होते ही वह भक्तशिरोमणि सूरदासजी के पद गाने लगे --

बिलावल -- "आज वह चरन देखिहों जाय। टेक।
जे पद कमल रमा निज कर तें सकै न नेक भुलाय॥
जे पद कमल सुरसरी परसे भुवन तिहूँ जस छाय।
जे पद कमल पितामह ध्यावत गावर नारद चाय॥
जे पद कमल सकल मुनि दुर्लभ हौं देखों सात माय।
सूरदास पद का परसिद्दों मान अति भ्रमर उड़ाय॥
चकई री चल चरन सरोवर जहँ नहिं प्रेम वियोग।
जेहिं निस दिवस रहत इकबासर सो सागर सुख जोग॥
जेहिं किंजल्क भक्ति जब लक्षण काम ज्ञान रस एक।
निगम, सनक, शुक, शारद, नारद मुनि जन भृंग अनेक॥
शिव विरंचि खंजन मन रंजन छिन छिन करत प्रवेश।
अखिल कोश तहँ बसत सुकृत जल प्रकटल श्याम दिनेश॥
सुनु मधुकर भ्रम तजि कुमुदिनि को राजिव बट की आस।
सूरज प्रेम सिंधु में प्रफुलित तहँ चल करहिं निवास॥"