पृष्ठ:आदर्श हिंदू २.pdf/४२

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वाला न मिलता है। शायद दिल निकलकर रात्रि भी योही निकल जाती, क्योंकि न तो इन लोगों की यही इच्छा होती थी कि "चलें आप देरी बहुत हो गई।" और न किसी का उस चुप्पाचुप्पी को तोड़ने का हियाब था।

अस्तु! वृक्ष की ओट में से दूसरा साधु बोला -- मौनी बाबा हैं। अपने अपने घर जाओ। इनको सताओ मत। तुम्हें जो कुछ प्रश्न करना हो काशी के वरुणासंगम की गुफा में इनके गुरु महाराज से करना। चले जायेा।" यह कहकर वह चल दिया। पहले वह धीरे धीरे चला और फिर इन लोगों को देखकर मानो उसने किसी को पहचान लिया हो, ऐसी मुद्रा दिखाई और त आँख फड़कने के साथ ही वह कर यह गया! बह गया!! हवा हो गया! जैसे उसने इनको पहचानना वैसे ही इनमें से भी दो जनों ने उसे पहचाना। बूढ़ा भगवानदास बोला -- "हाय! हाय! हाथ आया हुआ गया।" और प्रियंवदा नै --"वही है! हाँ वही!! का इशारा करके पति को समझाने का प्रयत्न किया। पति राम समझे या नहीं, सो नहीं कहा जा सकता परंतु ये लोग जब महाराज के आगे साष्टांग प्रणाम करके गंगातीर आए तब इन्होंने दूर से देखा कि उस भागनेवाले साधु को चार आदमी बाँधे लिए आ रहे हैं और वह उनसे हाथ जोड़कर, चिरौरी करके हाहा खाकर कहता जाता है -- "मैं तुम्हारी गौ हूँ। मुझे छोड़ दो ।"किंतु लानेवाले मानो उसकी खुशामद पर काम