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प्रकरण--३१
काशी की छटा

प्रयाग के त्रिवेणी संगम पर प्रकृति देवी ने जो अलौकिक छटा दिखलाई है उसमें और काशी के दृश्य में धरती आकाश का सा अंतर है। वहाँ नैसर्गिक छटा अधिक और यहाँ प्राकृतिक और संसारी दोनों समान है। वहाँ गंगा और यमुना का जैसा संगम है, मिल जाने पर भी दोनों जैसे भिन्न भिन्न दर्शन दे रही हैं वैसे यहाँ इहलौकिक और पारलौकिक इन दोनों महानदी का संगम है। दोनों ही वास्तव में एक दूसरे से स्वतंत्र है किंतु दोनों ही से दोनों की शोभा है। एक अलौकिक सुंदरी ललना की शोभा जैसे वस्त्राभूषणों से बढ़ती है वैसे ही स्वाभाविक सुंदरी गंगा की शोभा तटों के सुंदर सुन्दर घाटों से, विशाल विशाल भवनों से है। गंगा हिमा- लय गिरि-शिखर से लेकर समुद्र-संगम तक है। समुद्र में प्रवेश कर जाने के अनंतर भी भगवती के कोसों तक दर्शन होते हैं। गंगातट के प्रत्येक तीर्थ में, एक से दूसरे में किसी न किसी प्रकार का अलग ही चमत्कार है किंतु वह शोभा काशी के समान नहीं। काशी से बढ़कर हो तो हो परंतु काशी के समान नहीं। ऐसे अवश्य ही यहाँ के घाटों ने, विशाल विशाल भवनों ने, काशी-तल-वाहिनी गंगा की शोभा बढ़ाई है।