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है! कैसा अद्भुत चमत्कार! घाटों पर खड़े हुए नर नारी
स्नान कर रहे हैं, पनिहारियाँ ताम्र कलशों में भर भरकर गंगा-
जल ले जा रही हैं, ब्राह्मण, संन्यासी और सब ही द्विजन्मा
शांत चित्त से घाटों पर लगे हुए लंबे लंबे तख्तों पर
आसन
जमाए, जपस्थलो में हाथ डाले जप कर रहे हैं। कोई
तिलक लगाता है, कोई गंगालहरी के पाठ से भगवती को
रिझा रिकाकर गा रहा है, कोई पत्र पुष्प से महारानी का
पूजन कर रहा है और कोई "हर हर महादेव" के प्र
गगनभेदी नाद से श्रोताओं का, अपना हृदय आनंदित कर रहा है। जो
स्नान करनेवाले अथवा करनेवालियाँ हैं वे भीतर और बाहर
के मलों को धो रहे है। जो बरतन मलनेवाली हैं वे बरतनों
के साथ ही अपने मन को मल मलकर साफ कर रही हैं और
जो यहाँ से ताम्रकलशों को भरकर अपने घरों को ले जा रही
है वे सानों कह रही हैं कि हमारा कोई कार्य गंगाजल के बिना
नहीं सरता। हम गंगाजी की और गंगाजी हमारी।
धन्य! करोड़ बार धन्ध!! जैसा संध्या-स्नान का आनंद,
जैसी शांति यहाँ है वैसी प्रयाग में भी नहीं! वहाँ प्रथम
तो शांतिपूर्वक प्रभु की आराधना करने के लिये घाट ही नहीं,
फिर पंडों, भिखारी और उठाईगीरों के मारे कल नहीं। गुंडों
की कमी काशी में भी नहीं है। भगवान् उनसे बचावे।
वहाँ "लाओ! लाओ" से नाक में दम कर देनेवाले हैं तब
यहाँ जान तक ले डालनेवाले हैं। यहां मगर और घड़ियाल