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सिन्ध पर अंगरेज़ों का क़ब्जा़

सिन्ध पर अंगरेज़ों का ज़ा १९३५ कि जो लगान सन् १८३ में ३, , ३३७ रुपए था वह १८४ट में Y २७, ४०, ७२२ रुपए हो गया और सन् १८५० में २३, ७५० । , सन् हेनरी पॉटिवर, जिसकी अपेक्षा सिन्ध के अंगरेजों साथ के सम्पर्क ऑौर व्यवहारों से कोई दूसरा अंगरेज़ अधिक परिचित न था और जो वाद में मद्रास का गबरनर हुथा, लिखता है मेरी राय में चाहे हम किसी तरह की भी वकील फ् न दें, सिन्ध के अमीरों के साथ हमारे व्यवहार से जो कलहमारी ईमानदारी चौर हमारी आबरू पर करा चुका है यह किसी सरह नहीं भूल सकता ।"e श्रान्त में हम सिन्ध के विजेता जनरल सर चार्ल्स नेपियर के ही कुछ शब्द उसके अपने कृत्य के विषय में 7 सिन्ध विजय पर उद्धृत करते हैं । जनरल नेपियर लिखता है जनरल नेपियर। “भारत में ज़्यादती ग्रंगरेजों की श्योर से की गई। क उद्गार × × · कभी किसी भी बढ़ी क़ौम ने इससे अधिक है नीच और आर प्रम्याय के लिए प्रपनी शक्ति का उपयोग नहीं कियाभारत । i ( सिन्ध ) को विजय करने में हमारा लक्ष्य, हमारे समस्त प्रश्याचारों का तघय धन था—पैसा था; कहा गया है कि पिट्ठले साठ वर्ष के अन्दर एक

ि , हजार मिलियन पाउण्ड ( यानी क़रीब दस अरब रुपया ) भारत से

त) : निचोड़ा जा चुका है । इस धन का एक एक शिरति बून में से उठाया। आ गया है, उसे पछा गया है और हरयारों ने उसे चपनी जेबों में रन दिया है; किन्तु हम इस धन को चाहे कितना भी क्यों न पछे गौर धोखे उस पर से ० " No reasoning can, in my opinion, remove the fowl 5taian it (the case of the Anmirs) has lett on our feith and honour ;"-Sir tely ottinger'के ctter to the Foreia Crick, 8th January 1844. as के