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अन्य भारतीय नरेशों के साथ एलेनब्रु का व्यवहार

अन्य भारतीय नरेश के साथ पौनव्र का व्यवहार १२४३ पड़ रहे हैं, जिन्हें गालियर दरबार दमन करने में असमर्थ है । इतिहास लेखक जॉन होष ने इस बहाने के थोoपम और उस झूठ को बड़ी सुन्दरता के साथ साबित किया है । उसने लिया है कि ठीक उस समय जब कि लॉर्ड पलेनझू ने सींधिया राज के प्रबन्ध में यह दोप निकाला, बुन्देल खण्ड में जो कि अंगरेजों के अधीन था और सागर व नरवदा के अंगरेजी इलाके में जिनको सरहदें सींधिया की सरहद से मिली हुई थीं पिछले दो बर्ष से अनेक विद्रोह हो रहे थे, और जगह जगह डाक पड़ रहे थ । यहाँ तक की लींधिया की राजधानी ग्वालियर स केवल सौ मील दूर कुछ लोग खिमलासा नामक एक धनसम्पन्न नगर को जो अंगरेज़ी इलाके में था, नाश कर देना चाहते थे और सधिया की दो हज़ार सबसीडीयरी सेना द्वारा अंगरेज़ खिमलासा की रक्षा करने में लगे हुए थे । इसी समय अंगरेज़ी इलाके के एक दूसरे मगर बालाबेहत (१) को कुछ विद्रोही जता देना चाहते थे और ग्वालियर की विधवा महारानी की सेना बालाबेहत की रक्षा कर रही थी। निस्संदेह यदि विद्रोहियों या डाकुओं का दमन करने की ग्रयोग्यता के कारण किसी राज के शासन प्रवन्ध में एक पडोसी एक मरेश को हस्तक्षेप करने का अधिकार दिया जा सकता है। तो लॉर्ड एलेनझू को ग्वालियर के शासन में हस्तक्षेप करने के बजाय ग्वालियर दरबार को कम्पनी के शासन में हस्तक्षेप करने का अधिकार मिलना चाहिए था। किन्तु लॉर्ड एलेनषु के लिए कोई भी बहाना काफी था।