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भारत में अंगरेज़ी राज

१४४ भारत में अंग्रेजी राज ग्वालियर का अंगरेज़ रेज़िडेराष्ट करनत स्पायर्स एलेनझू के दिल का आदमी न था। इसलिए स्पायर्स को रेज़िडेण्ट स्लीमैन फ़ौरन ग्बालियर से हटा कर उसकी जगह कर- नल स्लीमैन को, जिसकी बावत उस समय के इतिहास से साफ पता चलता है और उन दिनों यह बात मशहूर थी कि उसका भारत के ठों और डाकुओं पर बहुत बड़ा प्रभाव था, रेज़िडेण्ट

नियुत करके ग्वालियर भेजा गया है यह स्लीमैन आगे चलकर

अवध के अन्दर भी अपनी कूटनीति के लिए ख़ासा प्रसिद्ध हुआ । लॉर्ड पलनवु ने मलका विक्टोरिया के नाम १३ अगस्त सन् १८४३ के एक पत्र में स्वीकार किया है कि दादा दादा ब्राजीवाला एक अत्यन्त योग्य शासक था । ख़ासजीवाला की सर्वप्रियता ग्वालियर की सेना की तनखाहें कुछ दिनों से अढ़ो हुई थीं । दादा ख़ासजीवता ने तमाम पिछली तनख़ाहें अदा में कर दीं और भविष्य में ठीक समय पर सव को तनख़ाहें मिलने का प्रबन्ध कर दिया। । मामासव ने राज के अनेक योग्य पदाधि . कारियों को लॉर्ड एलेनन के इशारे पर बरखास्त कर दिया था| में दादा ट्रासजीबारल ने इन सब को फिर से अपने अंपने पदों पर बहाल कर दिया । गालियर राज की सेना में उस समय कई यूरोपियन और अर्ध यूरोपियन फ़सर थे । इनमें से कुछ ने अपनी मातहत सेना को दरबार के विरुद्ध भड़काना शुरू किया। कहीं कहीं छोटे मोटे विद्रोह भी हो गए दादा ख़ासजीबाला ने इनमें से कई अफसरों को बरखास्त करके रियासत से बाहर निकाल दिया।