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भारत में अंगरेज़ी राज

१२६२ भारत में‘ आ गरेजी राज चुका था । राजा गुलाबसिंह ने सिख कौम, अपने देश और अपने स्वामी महाराजा रणजीतसिंह के नाबालिग पुत्रतीनों के साथ दगा – । करके अंगरेजों का साथ दिया, जिसके इनाम में उसे और उसके वंशजों को बाद में काश्मीर की विशाल रियासत प्रदान की गई। वास्तव में भारतीय चरित्र का वह पतनजिसके कारण अंग- रेजों ने इस देश में अपना साम्राज्य कायम कर भारतीय चरिन्न पाया, किसी भी दूसरे प्रान्त के इतिहास में का पतन इतनी बार और इतने जोरों के साथ नहीं चमकता जितना पजाब के इतिहास में । आज से सौ वर्ष पूर्व का एक अंगरेज अफ़सर लिखता है हमें फ़ौरन् यह स्वीकार कर लेना चाहिए कि भारत के एक एक संग्राम में हमारी विजय का कारण इतना अधिक इमारे अपने शानदार कारनामे नहीं हैं जितना कि एशियाई चरित्र की निर्बलता ।x ” उसी उसूल पर हमें यह निश्चित सम लेना चाहिए कि जब कभी भारत की आबादी का बीसवां हिस्सा भी इतना दूरदर्शी और इतना चालाक हो जायगा जितने कि हम हैं, तो हमें फिर उसी तेजी के साथ पीछे हट कर पहले की तरह एक तुच्छ चीज़ बन जाना पड़ेगा ।> • " we must at once admit that our conquest of India as, through every struggle more owing to the deakness of the Asiatie character than to the bare effect of our own briliant achievements : . . . . . on the same principle we ney set down as certain, that whonever one trientieth part of the population of India becomes as provident and as scheming as ourseive, We shall rul back again, in the same ratio of velocity, the same course of our original insignifinance, Carmaticus, in the Asiatie Jortuna, May1821.