पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज.pdf/२२६

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१३०५
दूसरा सिख युद्ध

। दूसरा सिख युद्ध १३०५ यदि चाहता तो उस समय गफ़ और उसकी सेना के अस्तित्व को ख़ाक में मिला सकता था । किन्तु ऐसा करने के बजाय बद लाहौर की ओर बढ़ा । मार्ग में गुजरात नामक स्थान पर दोनों ग्रोर की सेना में फिर एक घमासान युद्ध हुथा 1 इस बीच श्रृंग- गुजरात का संग्राम रेलों को अपनी कूटनीति के लिए काफ़ी मीफ़ा मिल चुका था । जरात के मैदान ही में पजाब की स्वाधीनता और सिखों की राजसता दोनों का खात्मा हो गया । उधर मुलतान में भी 8 महीने तक बीरता के साथ मुकाबला करने के बाद दीवान मूलरा को अपने तई अंगरेजों के झाले कर देना पड़ा । कहते हैं। कि किसी ने दगा से मूलराज के मैगज़ीन में ग्राग लगा दी थी। २४ मार्च सन् १८४६ को गबरनर जनरल लॉर्ड डलहौजी ने एक एलान प्रकाशित कियाजिसमें सिग की पक्षय की। हुकूमत का श्राइन्दा के लिए रवात्मा कर दिया । स्वाधीनता का अन्त गया। पक्षाघ पर अंगरेजों की हुकूमत कायम हो गई, औौर पक्षाघ ब्रिटिश भारतीय साम्राज्य का एक प्रान्त बन गया । यह एक बात ध्यान देने योग्य है कि जब कि पाव के अनेक मुसलमान ग्रंगरों के बहकाए में जाकर विदेशी राष्ट्रीयता का शाक्रामकों का साथ दे रहे थे, उसी समय प्र३- ग़ानिस्तान का अमीर दोस्तमोहम्मद खाँ सिखों प्रांरलाहौर दरबार के साथ पूर्ण सहानुभूति प्रकट कर रहा था ।