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भारत में अंगरेज़ी राज

१३५४ भारत म अंगरेजी राज क लूटा और उनका अपमान किया, जिस प्रकार जवारों की ज़मींदारियाँ जब्त करके, असंख्य प्राचीन घरानों का खात्मा किया। - । और गोरखपुर और बनारस के समान लाखों भारतीय किसानों को उनकी पैतृक जमीनों से बाहर निकाल कर टहविहीन बना दिया, इस सबकी शोकास्पद कहानी पिछले अध्यायों में वर्णन की जा चुकी है। निस्सन्देह इन सब बातों के कारण भारतीय नरेशों और भारतीय प्रजा दोनों में अंगरेजों के विरुद्ध असन्तोष की माग भीतर ही भीतर सुलग रही थी । सन् १७८० के क़रीब पूना दरबार के प्रधान मन्त्री नाना फड़नवीस और मैसूर राज के स्वामी हैदरआती का मिलकर, दिल्ली सम्राट और अन्य भारतीय मरेशों को अपनी और कर, अंगरेजों को भारत से निकालने का प्रयता करना इसी असन्तोषाग्नि का एक रूप और सन् १८५७ के विप्लव का पेशखेमा था । सन् १८०६ का वेलोर का विद्रोह भी इसी अग्नि का एक छोटा सा स्वरूप था। इसके बाद डलहौजी का समय आया । डलहौजी में के समय कम्पनी और इंगलिस्तान के नीतिज्ञों की साम्राज्य- राजघरा प्रति पिपासा हद को पहुंच गई । डलहौजी ने के डलहौजी का महाराजा रणजीतसिंह के साथ कम्पनी की बर्ताव सन्धियों को खाक में मिलाकर पश्ताव पर हमला किया, लाहौर दरबार के अन्दर फूट डलवाई, दलीपसिंह और उसकी विधवा माता महारानी झिन्दाँ को पजाब और भारत दोनों से देश निकाला दिया, और पचाव के उर्बर प्रान्त को कम्पनी