पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज.pdf/२८४

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सन् १८५७ की क्रान्ति से पहले

सन् १८५७ की क्रान्ति में पहले 28,, सन१८५८ में मिरज़ा फ़र्मी की भी मृत्यु हो गई ।रेजिडेगट - - टॉमस मेटकॉफ बहादुरशाह के दरबार में मिलने गया । यहाथुर- शाह के उस समय नौ घंटे थे, जिनमें म्य से होगदार और होरीि यार मिरज़ा जबयत समझा जाता था । यहाथुरश्राष्ट्र ने एक पत्र रेजिडेण्ट को दिया जिसमें लिखा था कि जयाँबल को गुयगT धमाया जाय । इस पत्र के साथ फ अलग पत्र था, जिस पर याही ग्राठों शाहजाटों के दस्तख़त थे और यह तिमाथा कि हम सब जबाँचट्ठत के युवराज बनाए जाने में खुश में और यही चाहत है। इस पर अंगरेजों ने इन श्राठ शाहजाद्रों में से 1 थे मिनराजा फ़ोग्राश को फिर प्रपनी शोर फोड़ा। मिजा मिश्रा कोयाश के * फ़ोयाशा स गबरनर जनरल के नाम पर . गुप्त पर साथ साज़िश । लिख।या गया । इस अवसर पर गयरमर जनरल ने रेजिडेण्ट को लिखा ः ‘सन्नाट के ऊपरी थभय शैौर ऐश्वर्य के अनेक भूपए उतर के हैं, जिससे उस भय की पहली सी चमक दमक नहीं रही, पर सट्ट के से अधिकार, जिन पर तैमूर के कुल बा को धमपष्ट था, एय दूसरे फ के याद N छिन चुके हैं, इसलिए यहाथुरशाह के मरने के द ग्राम के एक शीर्ष में ‘यादशाह' की उपाधि का अन्त कर देना फुट भी कठिन नहीं है । दो। की गज़ार, जो गयरनर जनरल और कमाए दर-इन-5ी देते थे, ८२ द राई । कमी का सिप का जो पदशाह के नाम से दाता शाता का यह भी यद कर दिया गया 1 गयर नर जनरल की मोटर में जो पहले 'या 6 । t व३ 24