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चरबी के कारतूस और क्रान्ति का प्रारम्भ

चरखी के कारतूस और क्रान्ति का प्रारम्भ १३४७ जाती हैं । इस प्रकार अपनी तसल्ली करने के बाद बैरकपुर के . सिपाहियों ने यह ख़बर सारे हिन्दोस्तान में फैला दी। लिरखा है। कि इसके दो महोने के अन्दर बैरकपुर से पेशावर और महाराष्ट्र तक हजारों पन्न इस विपय के भेजे गए और नए कारतूसों का समाचार बिजली के समान भारत के एक एक हिन्दोस्तानी सिपाही के कानों तक पहुँच गया । प्रत्येक हिन्दू और मुसलमान सिपाही अब अंगरेजों से इस अन्याय का बदला लेने के लिए बेचैन होगया, किन्तु सिपाहियों के नेताओं से उन्हें ३१ मई तक रोके रनने का हर तरह प्रयल किया। अब हमें यह देखना होगा कि नए कारतूसों में गाय और सुपर की चरवी का उपयोग किया जाना कहाँ चरखी के कारतूस तक सच था । आप कल : समस्त गरज इतिहास लक्क औौर चिशेप कर वे अंगरेज गौरहिन्दोस्तानी लेखक, जो सरकारी स्कूलों के लिए पाठ्य पुस्तकें लिग्नते हैं, इस अफ़वाह को झूठा बताते हैं और उस पर विश्वास करने वाले सिपाहियों का पागल कहते हैं । सम् १८५७ में गबरनर जनरल लॉर्ड कैमिस्र से लेकर छोटे से छोटे अंगरेज अफसर तक सबने गम्भीरता के साथ यह एलान किया और सिपादिर्यों को विश्वास दिलाने का प्रश्रत्ल किया कि कारतूसों में चरबी का जिम्मा बिलकुल झूठा है और बदमाश लोगों में फौज को बरबाद करने के लिए फैलाया है । किन्तु सर जॉन के जो सन् ५७ की प्रान्ति का सबसे अधिक प्रामाणिक इतिहास लेखक माना जाता हैलिग्षता है:-