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चरबी के कारतूस और क्रान्ति का प्रारम्भ

चरवी के कारतूस और क्रान्ति का प्रारम्भ १४२१ बनारस के लिए आ रहे थे । उसी दिन रात को १७ नम्बर - - पलटन ने, जो आज़मगढ़ में थी, बिप्सव प्रारम्भ कर दिया । केवल दो को छोड़ कर शेप सच अंगरेजी की उन्होंने जान बख्श दी । यहाँ तक कि उनके और उनके बाल बच्चों के बनारस जाने के लिए गाड़ियों तक का प्रबन्ध कर दिया। किन्तु सात लात्र के उस खजाने परकम्पनी गोले बारूद पर और जेलक़ाने, दफ्तरों , क इत्यादि पर क्रान्तिकारियों ने कब्जा कर लिया । आजमगढ़ की पुलिस ने सिपाहियों का पूरा साथ दिया । आजमगढ़ के नगर पर उसी रात को हरा भए डा फहराने लगा । इस समय तक गबरनर जनरल लॉर्ड कैनिद् में मेरठ के विद्रोह और दिल्ली की स्वाधीनता का समाचार पाते जनरल की ही बम्बईमद्रास और रहून से मैंग कर बहुत सो गोरी सेंगा बहाल में जमा कर लो । ठोक उन दिनों ईरान के ‘साथ अंगरेजों का युद्ध समाप्त हुया था, और चीन के ऊपर श्रद्रेज़ हमला करने वाले थे । भारत के विप्लव के कारण प्राइरेनें को चीन पर हमला करने का विर छोड़ देना पड़ा । एक विशाल गोरी सेना ईरान से चीन की ओर जा रही थी। लड कैनिस ने इस ए समस्त सेना को भारत में रोक लिया। इसमें से बहुत सी सेना लेकर सुप्रसिद्ध जनरल नील वनारस पहुंचा । वनारस के श्रद्रेजों की हिम्मत बँध गई । ४ जून को आजमगढ़ का समाचार चनारस पहुँचा । उसी दिन तीसरे पहर बनारस के अंगरेज अफसरों ने देशी सिपाहियों स हथियार रखा लेने का निश्चय किया ।