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भारत में अंगरेज़ी राज

११३६ भारत में अंगरेज़ी राज इसका मतलब यह है कि बिना योग्य भारतवासियों की सहायता के केवल अंगरेजों के बल ब्रिटिश १८३३ में बीस भारतीय साम्राज्य का चल सकना सर्वथा। ला की मंजूरी असम्भव था, और इसीलिए थोड़े बहुत भारत- वासियों को किसी न किसी प्रकार की शिक्षा देना भारत के विदेशी शासकों के लिए अनिवार्य हो गया । इस काम के लिए सन् १८१३। वाली एक लाख रुपए सालाना की मंजूरी को सन् १८३३ में बढ़ा कर दस लाख सालाना कर दिया गया, क्योंकि इन बीस वर्ष के अन्दर भारत का बहुत अधिक भाग विदेशी शासन के रस में रंगा जा चुका था। सन् १७५७ से लेकर १८५७ तक भारतवासियों की शिक्षा के विषय में अंगरेज़ शासकों के सामने मुख्य प्रश्न केवल यह था कि भारतवासियों को शिक्षा देना साम्राज्य के स्थायित्व की दृष्टि से हितकर है या अहितकर, और यदि हितकर या आवश्यक है तो . उंन्हें किस प्रकार की शिक्षा देना उचित है।

  • उस समय अनेक अंगरेज़ नीति भारतवासियों में ईसाई धर्म

प्रचार के पक्षपाती थे । इन लोगों को ईसाई धर्म ईसाई धर्म प्रचार ग्रन्थों का भारतीय भाषाओं में अनुवाद कराने, इंगलिस्तान से आने वाले पादरियों को सहायता देने और सरकार की ओर से मिशन स्कूलों को आार्थिक मदद करने की आवश्यकता अनुभव हो रही थी । यह भी एक कारण था कि जिससे अनेक