पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज.pdf/३७३

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प्रतिकार का प्रारम्भ

प्रतिकार का प्रारम्भ . १४४७ घाट से चलने वाली थीं । नाना उस समय अपने महल में था। घाट पर सिपाहियों और जनता की भीड़ थी। कहा जाता है कि क्रोध से उन्मत्त सिपाहियों में से किसी एक ने पहले करनल ईवर्ट पर हमला किया 1 तुरन्त मार काट शुरू हो गई. करीब करीव समस्त अंगरेज़ इतिहास लेखक स्वीकार करते हैं कि ज्योंही नाना को इसका समाचार मिला, उसने तुरन्त श्राज्ञा भेजी कि-"अङ्ग रेज़ पुरुषों को मारो, किन्तु बच्चों और स्त्रियों को कोई हानि न पहुँचायो !" नाना की आज्ञा के पहुंचते ही १२५ अंगरेज़ स्त्रियाँ और बच्चे कैद करके सौदाकोठी पहुँचा दिए गए । अगरेज़ पुरुषों को लाइन बाँध कर'सतोचौरा घाट पर खड़ा किया गया । उनमें से एक ने जो शायद पादरी था, प्रार्थना की कि मरने से पहले मुझे इजाजत दी जाय कि मैं अपने भाइयों को इञ्जील में से कुछ ईश्वर प्रार्थना पढ़ कर सुना दूँ। उसकी प्रार्थना स्वीकार कर ली गई। जब वह ईश्वर प्रार्थना कर चका तो हिन्दस्तानी सिपाहियों ने समस्त अंगरेजों के सर तलवार से कलम कर दिए । अंगरेज़ पुरुषों में से केवल चार एक किश्ती में बैठकर भाग निकले । इस प्रकार ७ जून को कानपुर के अन्दर, जो करीब एक हज़ार अंगरेज़ थे, उनमें से २७ जून की शाम को केवल चार आदमी अपनी फुरती से और १२५ स्त्रियाँ और बच्चे नाना की उदारता से जिन्दा बचे।

• Forrest's State Papers, also Kaye and Malleson's Indian Mutiny, vol. ii, p. 258. + Kaye and Malleson's Indian Mntiny, vol. ii, p. 263.