पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज.pdf/३८६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
१४५९
प्रतिकार का प्रारम्भ

प्रतिकार का प्रारम्भ यह बात ख़ास तौर पर ध्यान देने योग्य है कि प्रबंध के जिन 4 जनदारों और ताल्लुकेदारों ने इस अवसर पर स्वाधीनता के संग्राम में खुले भाग लिया, उनमें से अनेक ने अपने महल के अन्दर अंगरेज़ अफसरों और बच्चों को पनाह देने में बड़ी उदारता दिखलाई। इस समय के बचे हुए अनेक अंगरेजों के पत्रों और रिपोर्टों में इसका जिक्र आता है । अबघ के पूर्वी भाग में फैजाबाद का नगर सब से मुख्य था । सर हेनरी लॉरेन्स ने स्वीकार किया है कि फैज़ा मलावी वाद ज़िले के तालुकदारों के साथ अंगरेजों ने की गिरफ़्तारी भारी अन्याय किया था। कुछ की पूरी जागीरें ज़ब्त कर ली गई थीं और कुछ के प्राधे गाँव छीन लिए गए थे 10 मौलवी अहमदशाहजिसका कुछ परिचय हम ऊपर दे आए हैं, इन्हीं पदच्युत तालुक़दारों में से था । अवध की सरतनत के छिनने के समय से मौलवी अहमदशाह ने अपना सारा समय इस स्वाधीनता महायुद्ध की तैयारी में लगा रक्खा था 1 फैजावाद से लखनऊ और आगरे तक बह बराबर दौरे करता रहता था। क्रान्ति पर उसने अनेक वक्ताएँ दीं और अनेक पत्रिकाएँ लिख । के अंगरेजों को जब इसका पता चला, उन्होंने मौलवी अहमदशाह्न की गिरफ्तारी की आशा दी । अवध की पुलिस ने उसे गिरफ्तार करने से इनकार किया इसलिए फ़ौज भेजनी पड़ी 1 अहमदशाह पर बग़ावत का मुकदमा कायम किया गया । उसे फाँसी का हुकुम Kaye and AMalleson's laian Madhy, vol. Ki, p. 266.