पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज.pdf/४३८

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१५०३
दिल्ली, पंजाब और बीच की घटनाएँ

दिल्ली, पंजाब और वीव की घटनाएँ १५०३ में यह राय प्रकट की है कि किसी को भी अंग भंग नहीं किया गया और किसी की भी इजात नहीं ली गई ।’* एक दूसरा विद्वान् अंगरेज लन्दन के ‘टाइम्स’ पत्र का सम्वाद दाता सर विलियम रसल, जो विश्व के समय भारत में मौजूद था, कानपुर के इस हत्याकाण्ड के सम्बन्ध में लिखता है- “अनेक जालसाज़ और आस्ट्रयन्त नीच बदमा ने लगातार कोशिश करके इस मामले के साथ अनेक भीषण घटनाएँ जोड़ दीं। ये कल्पित घटनाएँ केवल इस आशा से गढ़ी गई थीं कि उनसे अंगरेजों के दिलों में फोध और बदले को प्रचण्ड इच्छा भड़क उठे ' मानों केवल पृणा इस क्रोध और बदले की इच्छा को भड़काने के लिए काफ़ी म थी । दूसरी बात यह है कि एक सजनजिन्हें ऐतिहासिक घटनाओं की खोज और जॉच का शौक है, इस पुस्तक के लेखक से कहते थे कि उन्होंने कानपुर फ़साइ के मोहल्ले में जाकर पूछ ताछ की तो वहाँ के बूढ़े लोगौं से मालूम हुआ कि वीवीगढ़ की हत्या के लिए कम से कम फ़साइयों का बुलाया जाना विलकुल ग़लत है ।

  • + The refinements of cuelry--he unatterable shame with which, in

some earonicies of the day, tais aideous massacre was attended, रere but fictions of an excited imagination, too readiy beliewed without enquiy, and circulated iabout thought None were mutilated, none were dishonoured . . . This is stated, in the most unqualifed manmer, by the official fanc ionories, who made the most diligent enquiries into all the circumstances of the massacres in June and in July. "-Kaye and Malleson's lauary g tहै? ntial thatiny, , 281. + 4 . . . the incessant efforts of a gang of forgers and atterly base। coundrels have surfounded it ith borrors that have been vainly invented