पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज.pdf/४९७

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अड़तालीसवाँ अध्याय अवध और बिहार अब हम लखनऊ की ओर आते हैं । वास्तव में सन् ५७५८ के स्वाधीनता युद्ध में बीरता और बलिद्यान की येगम हजरत दृष्टि से लखनऊ का पद दिल्ली से कहीं ऊंचा मए रहा। दिल्ली के पतन के छे महीने बाद तक अवध और लखनऊ में स्वाधीनता का झण्डा फहराता रहा । चिनहट की विजय के बाद अबध को प्रजा ने कैदी नवाब वाजिद-ली शाह के पुत्र विजील क़दर को लखनऊ के सिंहासन पर बैठा दिया और चूंकि नवाब विरसीज कदर अभी नाबालिग है था इसलिए शासन की बाग विरजीस क़दर की माँ हज़रतमहल के हाथों में सौंप दी गई । अवध के सब जमींदारों और प्रज्ञा ने बड़े हर्ष के साथ बेगम इज़रतसइल को अपना अधिराज स्वीकार कर लिया ।