पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज.pdf/५००

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अवध और बिहार

अवध और बिहार १५४७ । न हैं. (: ट, नाने के स्थान पर क्रान्तिकारियों ने फिर एक बार रेजिडेन्सी पर 7 ोरदार हमला किया। रेज़ि डेन्सी की दीवार का एक बहुत बड़ा हत टुकड़ा गिर पड़ा। दीवार के अपर लट्ठीनों और तलवारों की ने, लड़ाई शुरू होगई । लिखा है कि उस दिन क्रान्तिकारियां ने कई नक अंगरेज़ सिपाहियों को सहीने तक छीन लीं । किन्तु अन्त में क्रान्ति , कारी फिर नगर की ओर लौट आए। इसके बाद १८ अगस्त को क्रान्तिकारियों में रेजिडेन्सी पर तोसरी बार हमला किया । अभी तक हैवलॉक और उसकी सेना का कहीं पता न थr। इतने में ब्रिगेडियर इडेंतिस को हैवलॉक का एक पत्र मिला जिसमें लिखा था-"में अभी कम से कम २५ दिन और तखनऊ नहीं पहुंच सकता ।” रेजिडेन्सी के अंगरेजों की घबराइट हद को पहुँच गई । रसद का सामान इतना कम हो गया कि सब को आधा पेट खाना दिया जाने लगा। फिर भी लखनऊ के क्रान्तिकारी इस बीच रेज़िडेन्सी पर पूर्ण पर विजय प्राप्त कर बहाँ के समस्त अंगरेजों को ख़त्म न कर कद या सके । इसका मुख्य कारण या तो यह था कि दिल्ली के समान लखनऊ में भी एक योग्य और प्रभावशालो सेनापति की कमी थी, हर 4 या उन्हें शायद यह अनुमान था कि अंगरेज़ रसद की कमी औौर गोल की प्राग से घबरा कर स्वयं आत्मसमर्पण कर देंगे । दूसरी रि और अंगरेज हैबलॉक और उसकी सेना के लिए आतुर हो रहे जाता थे। इसलिए अब हम लखनऊ की रेजिडेन्सी को छोड़ कर जनरल , हैवलॉक की ओोर आते हैं। । है का हैं