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भारत में अंगरेज़ी राज

१५५८ भारत में अंगरेजी राज इस याहे ( सिकन्दर यात्रा ) पर क़ब्ज़ा करने के लिए जो संग्राम हुआ , वह अयस्त रसमय था और जानों को हथेली पर रख कर बड़ा गया । फ्रान्तिकारियों ने अपनी जानें पर खेल कर पूरी वीरता के साथ युद्ध किया। हमारी सेना रास्ता चीरती हुई अन्दर घुस ग्राई, तब भी संग्राम बन्द नहीं हुआ । प्रत्येक कमरे के लिएप्रत्येक सीढ़ी के लिए और मीनारों के एक एक कोने के लिए संग्राम होता रहा है न किसी ने किसी से क्या चाही औौर म किसी ने किसी पर दया की। अन्त में जब माक्रामक सेना ने सिकन्दरबाड़ा | पर लटका कर लिया तो दो हज़ार से ऊपर क्रान्तिकारियों को ताशों के ढेर । उनके चारों पर पड़े हुए थे । कहा जाता है कि जितनी सेना सिकन्दरबारा। की रक्षा के लिए नियत थी उसमें से केवल चार आदमी अपनी जगह छोड़ कर निकल गएकिन्तु इन चार का याग़ छोड़ कर जाना भी सन्दिग्ध है ।'s लखनऊ का सिकन्द्रवारा उस दिन शब्दशः रक्षक की झील बना हुआ था । इसके बाद २४ घण्टे तक दिलखुश्बाननालमवाग औौर शाहन जफ़ में घमासान संग्राम होते रहे । अगले दिन नौ दिन का भयवर हुई मोती महल में उतनी ही लड़ाई । लगातांर संग्राम २३ नवम्घर तक लड़ाई जारी रही, किन्तु दिल्ली के पतन ने अंगरेज़ी सेना के हौसले बढ़ा दिए थे और अनेक क्रान्ति- । कारो नेताओं के दिल बुझा दिए थे। अन्त में २३ नवम्बर को नौ दिन के लगातार संग्राम के बाद सर कॉलिन कैम्पबेल की सेना और रेज़िडेन्सी के भीतर की आइग्ज़ी सेना दोनों एक दूसरे से मिल गई।

  • GB. Madlesons afas Zetyvoliv, p, 132