पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज.pdf/५१६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
१५६३
अवध और बिहार

अवध यूर विहार १०६९ की स्वाभाविक योग्यता बहुत ही बढ़ी चढ़ी थो 16 गद्दा के किनारे ही उसने कैम्पबेल की सेना को जा घेरा । पहली कानपुर पर दिसम्बर से से दिसम्बर तक खूब घमासान अंगरेजी सेना का से संग्राम होता रहा। दोनों ओर की सेनाओं फिर से । की संख्या करीब करीब बराबर थी । तात्या 1 के हिनी औोर ग्वालियर की सेना थी। यह सेना अन्त में अंगरेज़ी और सिरलों के संयुक्त हमले के सामने पीछे हटने लगी । मैदान सर कॉलिन कैम्पबेल के हाथ रहा । कानपुर के नगर पर फिर से कम्पनी का क़ब्ज़ा हो गया। तात्या अपनी रही सही सेना और तोर्षों सहित फिर क्खिा की ओर निकल गया । अंगरेज़ी सेना ने। उसका पीछा किया । शिवराजपुर में फिर एक संग्राम हुआ । इस संग्राम में तात्या को कुछ तोपें भी अंगरेजों के हाथ आ गई । किन्तु तात्या फिर अपनी शेप सेना सहित वध कर कालपी की ओर चला गया । अंगरेजी सेना कानपुर लौट श्राई । सर कॉलिम कैम्पबेल ने इस बार विद्र के महल को गिरा कर जमीन से मिला दिया। दिल्ली के पतन के बाद अधिकांश क्रान्तिकारी सेना अवध औौर रुहेलखण्ड में जमा होती जा रही थी । यह प्रदेश

अवध और ही अब क्रान्ति का सबसे महत्वपूर्ण गढ़ बनता

रुहेलखण्ड में जाता था। इस प्रदेश को फिर से विजय करने दमन से पहले आवश्यक था कि अबध के पश्चिम • " A man of very great natural ability as leader . . . "-talleson's attar Earthy, voi. vि, 9, 186.