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भारत में अंगरेज़ी राज

१५६४ भारत में अंगरेजी रा में विली से पूर्व के समस्त इलाके को पूरी तरह अधीन कर लिया जाय। कई गज सेनापति अलग अलग सैन्यइल लेकर इस कार्य के लिए दिल्ली, कानपुर इत्यादि से विविध दिशा में निकल पड़े। ग्रामीण जनता को वश में करने और उन पर अपने बत की धाक जमाने के लिए इन लोगों ने स्थान स्थान पर उसी तरह के उपायों का उपयोग किया जिस तरह के उपाय नील, बलॉक औौरघंटइंड जैसे सेनापति इससे पूर्व काम में ला चुके थे । इन समस्त प्रयलों में इटावा और फरु खाबाद की घटनायें विशेष वर्णन करने योग्य हैं । १ दिसम्बर को जमरल बालपोल कुछ सेना और तोपों सहित कानपुर से उत्तर की ओर बढ़ा । माग में इटाचे के २५ क्रान्तिकारियों के साथ कई छोटे मोटे संग्राम आमर शहीद हुए । इनमें इटाबे के निकट रास्ते के उपर एक छोटा सा मकान था जिसकी छत पर और दीवार के अन्दर ' खुराक़ों में बन्दूक लगी हुई थीं । इस मकान के अन्दर केवल २५ भारतीय क्रान्तिकारी थे । वालपोल के साथ एक बाज़ाता सेना और कई तोप थीं। फिर भी इन २५ मनुष्यों ने बिना लड़े वालपोल को आगे बढ़ने न दिया । बालपोल ने उनसे सुलह करना चाहा, किन्तु उन्होंने स्वीकार न किया । उन्हें तोर्षों से डराया गग्रा. इसका भी कोई असर न हुआ 1 इटावे के इन २५ बीरों और वहाँ की शेप घटना के विषय में इतिहास लेखक मॉलेसन लिखता है "ये लोग गिनती में थोड़े से थे, इनके पास केवल साधारण बन्दूकें थीं,