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भारत में अंगरेज़ी राज

१५७ भारत में अंगरेजी रा आस पास के ग्रामवाले श्रतीकरीम से मिले हुए थे । उन्होंने कम्पनी के सिपाहियों को धोखा देकर ग़लत राह बता दो और अंगरेजी दस्ते को असफल पीछे लौट आना पड़ा। पटने के कमिश्नर टेलर को पता लगा कि शहर के तीन प्रभाव शाली मौलबो क्रान्ति के सड़न में शरीक हैं । टेलर ने उन तीन को बातचीत के बहाने अपने घर बुलाया और धोखे से गिरफ्तार कर लिया। ३ जुलाई को पटने में कुछ बिप्लव हुआ, किन्तु सिखों की सहायता से आसानी से दमन कर दिया गया । क्रान्तिकारियों का मुख्य नेता पीरअली फाँसी पर चढ़ा दिया गया। लिखा है कि पोरथली को यातनाएँ दे देकर मारा गया। कमिश्नर टेलर स्वयं लिखता है कि पीरअली ने बड़ी वोरता औौर धार्मिक भाव के साथ यातनाओं औौर मृत्यु दोनों का सामना किया। दानापुर में उस समय तीन हिन्दोस्तानी पलटनें, एक गोरी पलटन और कुछ तोप नाना था । पोरअली की त्यु के बाद २५ जुलाई को दानापुर की देशी पलट ने स्वाधीनता का एलान कर दिया। ये पलटनें अब जगदीशपुर की ओर बढ़ीं। शाहाबाद के जिले में जगदीशपुर एक छोटी सी पुरानी राजपूत ? रियासत थी। सम्राट शाहजहां के द्वार से रजा चरस जगदीशपुर की रियासत के के मालिक को ‘राजा’ की उपाधि प्रदान हुई थी और उसी समय से चली आती थी। अब यह रियासत भी लॉर्ड डलहौजी की अपहरण नीति का शिकार