पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज.pdf/५३८

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अवध और बिहार

अवध और बिहार १५८ कुंभरसिंह अपनी राजधानी जगदीशपुर से १०० मील से ऊपर निकल पाया था और अब बनारस के लई की माले की ठीक उत्तर में था । लखनऊ से भागे हुए अनेक क्रान्तिकारी इस समय कुंवरसिंह की सेना में प्राकर शामिल हो गए। लॉर्ड कैनिन ने तुरन्त सेनापति लॉर्ड मांक कर को सेना और तोपों सहित कुंवरसिंदू के मुक़ाबले के लिए भेजा। ६ अप्रैल को लॉर्ड मार्क कर की सेना और कुबरसिंह की सेना में संग्राम हुना । लिखा है कि उस दिन ८१ वर्ष का बूढ़ा कुंवरसिंह अपने सफेद घोड़े पर सवार ठीक घमासान लड़ाई के अन्दर बिजली की तरह इधर से उधर तक लपकता हुआ दिखाई दे रहा था। लॉर्ड मार्क कर हार गया, उसे अपनी तोपों सहित पीछे झटना पड़ा। लॉर्ड मार्क कर अघ मैदान छोड़ कर आजमगढ़ फी ओर बढ़ा । कुंवरसिंह ने उसका पीछा किया । सम्भव है। कि या तो कुरसद का विचार इस समय कुछ घटुल गया या यह लॉर्ड मार्क्स की चाल में श्रा गया। इतिहास लेखक मॉलेसन लिखता है कि कुरसिद्द का इस समय बनारस थाने का विचार छोड़ कर नाजमगढ़ की ओर लॉर्ड मार्क का पीछा करना बहुत बड़ी भूल थी। लॉर्ड माफ ने अपने बचे हुए यादमियों सहित ग्राजमगढ़ के किले में आश्रय लिया। आजमगढ़ का शहर प्रान्तिकारियों के हाथों में था। कुंवरसिंह न लॉर्ड मार्क और उसकी सेना को किले में कैद कर किले का मोहासरा शुरू कर दिया । 09