पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज.pdf/५४६

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अवध और बिहार

विहार और वध १५८8 ज़िम्दा ग्रच सके ! हमारा इस जश्न में जाना ऐसा ही । हुआ जैसा पशुओं का कसाई खाने में जाना, हम वहाँ केयन्र वध होने के लिए गए थे !” इतिहास लेखक व्हाइट लिखता है–"इस अवसर पर श्रद्घरेलू ने पूरी और बुरी से बुरी बार स्वाई । अंगरेज़ी सेना की सब तोपें औौर असबाब कुंवरसिंह के हाथ छाया । । इस प्रकार २३ अप्रैल सन् १८५८ को विजयी कुंवरसिंह फिर से अपनो पैतृक रियासत पर शासन करने लगा। घरद्द किन्तु ठ्बरसिंह के हाथ का घाघ अभी तक की श्रा म हुना था। उस घाघ ही के कारण २६ अप्रैल सन् १५८ को अपने महल के अन्दर राजा कुंवरसिंहू की मृत्यु हुई । ऊबरसिंह की मृत्यु के समय स्वाधीनता का हरा झण्डा उसको राजधानी के ऊपर फहरा रहा था और अंगरेज़ कम्पनी के नाधिपत्य से बह अपनी रियासत और प्रजा दोनों को सर्वथा स्वाधीन कर चुका था । इतिहास लेखक होम्स लिखता है - 'उस यूह राजपूत की, जो ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध इतनी घोरता और इतनी नाम के साथ कड़ा, २६ अमैत सन् १८५८ को मृत्यु हुई।

  • Chartes Ball's faiar Afriy, vol ii, p, 2SS.

+ " The Eaglish sustained on this occasion a complete defeat of the प्राorst kind. "White's fiew it htufty.

" The old Rajput who had fought se honograhly and so bravely

against the British power died on April 26th, 1858" "-fittery f tlk sy' "", by Holes.